चिकित्साशास्त्र को सरल एवं प्रभावी बना सकता है समयविज्ञान !

मानसिक तनाव विज्ञान -
     मनोरोगी धीरे धीरे गंभीर शारीरिक बीमारियों से ग्रसित होते चले जाते हैं ।समय विज्ञान की दृष्टि से कुछ समय विंदु ऐसे होते हैं जिनमें जन्म लेने वाले लोग बिना तनाव के रह ही नहीं सकते !ऐसे लोग अच्छी से अच्छी एवं अनुकूल से अनुकूल बातों व्यवहारों से भी अपने लिए मानसिक तनाव खोज ही लेते हैं इस प्रकार से ऐसे लोग धीरे धीरे मानसिक तनाव में रहने के आदी होते चले जाते हैं।
      कुछ जन्मसमय विंदुओं में ऐसी परिस्थितियाँ सारे जीवन के लिए होती हैं तो कुछ में दो चार दस पाँच वर्ष के लिए होती हैं । ऐसे समय विन्दुओं का अध्ययन करके ये पता किया जा सकता है कि यह तनावी मानसिकता किसमें कितने समय के लिए है यदि आजीवन के लिए है तो वो स्वभाव में आ जाती है और स्वभाव बदल पाना कठिन ही नहीं असम्भव भी होता है जैसे आग की लव ऊपर को चलेगी और पानी की धार नीचे को बहेगी ये इन दोनों का स्वभाव है इसे क्या बदला जा सकता है यदि नहीं तो जिसके स्वभाव में ही मानसिक तनाव हो उसे समयविज्ञान की परामर्श चिकित्सा के द्वारा एक सीमा तक ही बदला  जा सकता है अधिक नहीं !
     इसी प्रकार से जिन जन्मसमय विंदुओं के परीक्षण में मानसिक तनाव कुछ वर्षों के लिए होता है ऐसे स्त्री पुरुषों के जीवन में ये देखना होता है कि मानसिक तनाव के ये कुछ वर्ष किस उम्र में या किस  वर्ष में आएँगे  साथ ही उन वर्षों में इससे बचने के लिए क्या कुछ सावधानी बरती जानी चाहिए आदि आदि विषयों पर समय विज्ञान की दृष्टि से व्यापक रिसर्च की आवश्यकता होती है ।
       तनावग्रस्त स्त्रीपुरुषों को तनावी जीवन या वर्षों में अकारण तनाव होता रहता है और तो और इन्हें कोई नमस्ते न करे तब तो तनाव समझ में आता है किंतु इन्हें कोई नमस्ते करे तब भी तनाव होता है । किसी के नमस्ते करने से इस बात का तनाव कि कोई स्वार्थ होगा तभी ऐसा कर रहा है और नमस्ते न करने से इन्हें लगता है वो घमंडी  हो गया है या मुझ में कोई ऐसी कमी हो गई है या मेरा चेहरा भद्दा लगने लगा है इसलिए ये मुझे नमस्ते नहीं कर रहा है । आफिस में या घर में इनकी आज्ञा लेकर कोई काम करे तो इन्हें चमचा गिरी लगती है और इनसे बिना पूछे करे तो इन्हें लापरवाह घमंडी अवारा आदि वो सब कुछ लगता है जिससे अपना तनाव बढ़ाया जा सके !इसीलिए मनोरोगियों या तनाव ग्रस्त लोगों के साथ समय बिताना बहुत कठिन होता है जीवन साथी के रूप में इनके साथ निर्वाह करना अत्यन्त कठिन होता चला जाता है।ऐसे स्त्री पुरुषों की सेवा करने वालों को बड़े धैर्य से काम लेना होता है सब कुछ करने के बाद न जाने कौन सी बात पकड़ कर बैठ जाएँ और कलह तैयार कर दें । 
      ऐसे लोग स्वयं अपने इतने बड़े शत्रु होते हैं कि ये अपनों पर तो शक करते ही रहते  हैं साथ ही इन्हें अपने प्रति स्नेह करने वालों पर, अपनी शिक्षा पर ,अपनी कार्यक्षमता पर ,अपनी ताकत पर, अपनी सुंदरता पर हमेंशा शक बना रहता है किंतु ऐसी बातें ये मन खोलकर कभी किसी के सामने रखते नहीं हैं वो पीड़ा ये लोग केवल अंदर ही अंदर सहते रहते हैं ऐसे लोग अपने  गलत चिंतन से तैयार हुआ दिमागी कूड़ा कचरा खुद ढोया करते हैं इन्हें अपने को अकारण व्यस्त और सम्मानित मानने की लत होती है बहुत काबिल समझते हैं अपने आपको इसीलिए इन्हें एक एक करके धीरे धीरे अपने सारे लोग छोड़ते चले जाते हैं। यहाँ तक कि पति पत्नी और बच्चों के संबंध भी इतने अधिक बोझिल हो जाते हैं कि कुछ को ये छोड़ देते और कुछ इन्हें छोड़ देते हैं जो नितांत अपनेपन से जुड़े होते हैं वो तो सब कुछ सहकर भी साथ देते  ही हैं बाक़ी स्वार्थ से जुड़े सम्बन्धी यदि सामाजिक सम्मान प्रतिष्ठा धन दौलत मान मर्यादा आदि बहुत अच्छी हुई तो  दिखावटी रूप से तो जुड़े रहते हैं किंतु मन से औरों के प्रति समर्पित हो जाते हैं उसका भी  इन्हें तनाव होता है ऐसे तनाव प्रिय लोग अपनी सोच के कारण अपने घर को एक घोसला बना लेते हैं जहाँ रात्रि में केवल सोने के लिए घर के लोग इकट्ठे हो जाते हैं बाकी उनकी सारी  सुख सुविधाएँ दूसरों पर आश्रित एवं घर के बाहर होती हैं । 
       ऐसे लोग सुखों एवं अपनेपन  के अभाव में आजीवन तड़पते रहते हैं इनकी मदद के लिए समयविज्ञान महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है और इन्हें भी सामान्य जीवन की सुख सुविधाओं का एहसास करवा सकता है । 

रोग क्या हैं ?
' द्रव्य' - से अभिप्राय भोजन संबंधी चीजों के साथ साथ औषधि आदि अच्छी बुरी वे सारी चीजें जो खाने पीने से संबंधित हों !
    'गुण' -सतोगुण रजोगुण तमोगुण आदि !सतोगुण के प्रभाव से सुख प्राप्ति होती है रजोगुण से दुःख मिलता है और तमोगुण से ग्लानि होती है ।  ये तीनों गुण समान हो तो 'प्रकृति' और आसमान हों तो विकृति होती है !
सतोगुण-ईश्वर को मानना, शुद्ध भोजन करना,सत्य बोलना,दया,ज्ञान विनम्रता युक्त आचरण आदि ! 
 रजोगुण- क्रोध करना मारना पीटना ,दुखी होना ,दम्भ करना ,अधिक कामी होना ,झूठ बोलना,धैर्य न रखना ,घमंड ,अधिक घूमना आदि !
 तमोगुण-ईश्वर को न मानना,हमेंशा पश्चात्ताप करते रहना,आलसी होना ,दुष्ट बुद्धि होना,निंदित कर्म करके भी सुख भोगना अधिक सोना,अज्ञान रहना ,क्रोध से अंधा रहना, मूर्खता करना आदि !
 इनके अलावा 5 ज्ञानेंद्रियाँ और 5 कर्मेन्द्रियाँ होती हैं मन  बुद्धीन्द्रिय और कर्मेन्द्रिय दोनों है  क्योंकि बिना मन के कोई इंद्रिय अपने विषय को ग्रहण नहीं कर सकती है ! वाणी का विषय है बोलना ,हाथ का विषय है ग्रहण करना,पैर का विषय है जाना ,लिंग का विषय है आनंद ,गुदा का विषय है त्याज्य करना और मन का विषय हर इन्द्रिय की जानकारी रखना है
  स्वाभाविक रोग -भूख -प्यास ,निद्रा ,वृद्धावस्था और मृत्यु !ये रोग मन और शरीर का आश्रय लेकर होते हैं !
आगंतुज रोग दो प्रकार से होते हैं -एक   शरीर में और दूसरेे  मन में ! 
 मनोरोग -
मनो रोगों की चिकित्सा के लिए सुश्रुत ने कहा है कि शब्द स्पर्श रूप रस और गंध का सुखकारी उपयोग  किया जाना चाहिए !
               मानसानां तु शब्दादिरिष्टो  वर्गः सुखावहः -सुश्रुत
         इसलिए मनोरोगियों या मानसिक तनाव ग्रस्त स्त्री पुरुषों को  काउंसलिंग (परामर्श) चिकित्सा की विशेष आवश्यकता होती है मनो चिकित्सकों के लिए आवश्यक  होता है कि वो पीड़ित स्त्री पुरुषों के मन का अध्ययन करें किंतु मन का अध्ययन किया कैसे जाए इसके लिए आधुनिक चिकित्सा पद्धति में कोई विधा ही नहीं है और न ही कोई विशेष पाठ्यक्रम ही है आधुनिक चिकित्सा पद्धति में ऐसी बातों को मानने की मान्यता बिलकुल न के बराबर है ,ऐसी परिस्थिति में मन को समझे बिना मनोरोगियों को समझपाना अत्यन्त कठिन ही नहीं अपितु असम्भव भी है इसीलिए मनोचिकित्सा के विषय में विश्वास पूर्वक कुछ भी कह पाना ये आधुनिक चिकित्सा पद्धति के बश की बात ही नहीं है इसीलिए मनोरोगियों या मानसिक तनावग्रस्त  स्त्री पुरुषों को दी जाने वाली काउंसलिंग (परामर्श) जैसी सेवाओं के नाम पर अधिकांश तीर तुक्के ही लगाए जा रहे हैं ।
    मन का अध्ययन करते समय आत्मा मन बुद्धि जैसी सारी चीजों को एक साथ समझना पड़ेगा इसीलिए इन्हीं बातों के अध्ययन के लिए आयुर्वेद में महर्षि चरक सुश्रुत आदि ने बहुत कुछ समझाया है इसका उद्देश्य यही है कि अच्छे काउंसलर का स्वभाव वैज्ञानिक होना बहुत आवश्यक होता है क्योंकि स्त्री पुरुषों के स्वभावों  का अध्ययन किए बिना ही कैसे की जा सकती है मनोचिकित्सा ! स्वभाव अध्ययन के लिए भी आधुनिक चिकित्सा पद्धति में तो कुछ विशेष होता नहीं है यहाँ भी तीर तुक्कों  से ही काम चलाया जा रहा है ।
    सभी स्त्री पुरुषों के स्वभाव अलग अलग होते हैं दूसरी बात प्रत्येक स्त्री पुरुष में उसका  अपना  दो प्रकार का स्वभाव होता है एक तो जन्म से ही हर किसी को मिलता है यही वास्तविक और मूल स्वभाव होता है इसी स्वभाव के अनुसार हर व्यक्ति को सारा जीवन यापन करना होता है यही मूल स्वभाव होने के कारण स्थाई माना जाता है इसे  प्रयास करके भी बदला नहीं जा सकता है ये जीवन पर्यंत  साथ ही रहता है । 
        इसके अलावा भी देश काल  परिस्थिति के अनुसार एक स्वनिर्मित या परिस्थिति निर्मित स्वभाव भी होता है ये स्वभाव परिवर्तनशील होता है इसलिए जीवन में तरह तरह के आने वाले बदलावों एवं उतार चढ़ावों के अनुसार ये स्वभाव भी बदलता रहता है जिस समय से स्वनिर्मित या परिस्थिति निर्मित स्वभाव और जन्म से प्राप्त जीवन के मूल स्वभाव में आपसी अंतर जैसे जैसे बढ़ने लगता है इस खिंचाव को ही मानसिक तनाव कहते हैं और मानसिक तनाव यदि अधिक बढ़ गया  या अधिक दिन रुक गया तो उससे  मनोरोगी होकर धीरे धीरे शारीरिक रोगी होने लग जाते हैं स्त्रीपुरुष !
  किसी पीड़ित स्त्री-पुरुष को काउंसलिंग अर्थात परामर्श चिकित्सा उपलब्ध कराते समय काउंसलर के लिए आवष्यक होता है कि वो पीड़ित व्यक्ति के मूल स्वभाव एवं परिस्थिति निर्मित दोनों स्वभावों का अध्ययन करे और दोनों के आपसी अंतर को समझे और वर्तमान स्वभाव को मूल स्वभाव में बैठाने का प्रयास करे चूँकि वही रोगी का मूल स्वभाव होता है इसलिए उधर आसानी से मुड़ता चला जाता है प्रयास पूर्वक परामर्शचिकित्सक रोगी के कृत्रिम स्वभाव को मूल स्वभाव में जैसे जैसे बैठाता जाता है वैसे वैसे मनोरोग या मानसिक तनाव धीरे धीरे स्वतः समाप्त होते चला जाता है ठीक उसी प्रकार से जैसे किसी के पेट में अपने स्थान से हटी हुई नाभि या हाथ पैर कमर आदि में अपने स्थान से हटी हुई नस जैसे जैसे अपने स्थान पर बैठने लगती है वैसे वैसे दर्द दूर होने लगता है इसी प्रकार से धीरे धीरे मनोरोग से मुक्ति मिलती चली जाती है ।
         परामर्शचिकित्सक के सामने सबसे बड़ी समस्या यह होती है कि वो रोगी के कृत्रिम स्वभाव को तो देख और समझ रहा होता है किंतु रोगी का मूल स्वभाव समझने का उसके पास कोई स्रोत नहीं होता है इसलिए रोगी के मूल स्वभाव के विषय में परिजनों से पूछकर जो जानकारी अर्जित की जाती है उसमें प्रायः एकरूपता का अभाव रहता है रोगी के विषय सम्बंधित लोग अपने अपने अनुसार बताते हैं चूँकि रोगी की अवस्था बिगड़ चुकी होती है इसलिए उस समय उसके आचार व्यवहार से रोगी के मूल स्वभाव का पता कर पाना संभव नहीं  हो पाता है जबकि रोगी के विषय में अध्ययन करने का परामर्शचिकित्सक  का अपना दृष्टिकोण  होता है ।
       समयविज्ञान - रोगी का मूल स्वभाव जानने समझने का ये सबसे सशक्त विज्ञान है इसके आधार पर रोगी के जन्म समय पर रिसर्च किया जाता है जिसके द्वारा  रोगी के मूल स्वभाव को लगभग संपूर्ण रूप से समझा जा सकता है न केवल इतना अपितु इसके द्वारा इस बात का भी काफी सटीक अनुमान लगाया जा सकता है कि रोगी को किन कारणों से कब से मनोरोग या मानसिक तनाव सम्बन्धी समस्या का सामना करना पड़ा रहा है और आगे कब तक रहेगा ! वर्तमान स्थिति तक पहुँचने में देश काल  परिस्थिति की अहम भूमिका होती है उसके अध्ययन की प्रॉपर व्यवस्था के बिना किसी रोगी को केवल तीर तुक्के के आधार पर कब तक टाला जा सकता है ।
      मानसिक तनाव को नियंत्रित करने के लिए औषधि स्थान और परिस्थिति से भी बहुत अधिक भूमिका समय की होती है सबसे पहले ये पता करना होता है मनोरोगी जिस परिस्थिति को आज सहने के लिए किसी भी कीमत पर तैयार नहीं है क्या यही मनस्थिति उसकी पहले भी थी और यदि नहीं तो आज क्यों हो रहा है ऐसा कई बार उस तरह का समय बीतने के बाद वह व्यक्ति उसी परिस्थिति को हँसते हँसते सह जाता है ।कई बार रोगी स्वयं नहीं समझ पा रहा होता है कि आज अचानक ऐसा क्या हुआ कि सम्बन्धित विषय में मेरी परेशानी दिनोंदिन बढ़ती जा रही है जो लोग नशे का विरोध करते रहे हों वो स्वयं नशा करने लगें जो स्त्री पुरुष किसी से हँसी मजाक तक करने में हिचकते हों वो न कवक किसी से प्रेम कर बैठें अपितु उसमें इतना डूब जाएँ कि उसके लिए सारी लोक लाज छोड़कर मरने मार डालने पर उतारू हो जाएँ ! जिन पति पत्नियों के बीच आपस में बहुत अधिक मधुरता रहती रही हो एक दूसरे से अलग होते ही व्याकुलता बढ़ने लगती हो ऐसे लोगों के जीवन में ऐसा समय आ जाए कि एक दूसरे को देखने में व्याकुलता बढ़ने लगे ! ऐसी ही परिस्थिति में सामाजिक पारिवारिक आदि सभी संबंघों को जिस समय के प्रभाव से बनते बिगड़ते देखा जाता है इसके लिए परिस्थितियाँ तो कारण बनती ही हैं किंतु इनका मूलकारण  तो समय ही होता है समय यदि अनुकूल हो तो परिस्थितियाँ तो सही जा सकती हैं क्योंकि समय ही सहनशीलता प्रदान करता है इस लिए 'समय' पर रिसर्च की जानी चाहिए ।
    समय विज्ञान के द्वारा की जाने वाली रिसर्च से ये पता लगाया जा सकता है कि किस व्यक्ति में किस परिस्थिति को सहने की कब  कितनी शक्ति होगी उसका अनुमान लगाकर ही किसी रोगी को परामर्श चिकित्सा दी जा सकती है अन्यथा आपकी कही हुई अच्छी से अच्छी बातों पर भी उसे कोई भरोसा ही नहीं होगा आपकी बातें सुनने सहने के लिए वो तैयार ही नहीं होगा जब जिसका समय अच्छा होता है तब वो अच्छी बातें सुनता और सहता है करता है अच्छे लोगों के संपर्क में रहता है बुरे समय में उसे बुराई ही अच्छी लगती है । ऐसी परिस्थिति में समय यदि अच्छा ही होता तो ऐसी तनाव पूर्ण परिस्थिति पैदा ही क्यों होती और यदि समय बुरा है तो परामर्श चिकित्सक के द्वारा कही गई अच्छी बातों पर भरोसा ही क्यों करेगा !ऐसी परिस्थिति में सर्वप्रथम रोगी के समय का परीक्षण करके उसी के अनुमान के सहारे हितकारी बातों को उसके लिए स्वीकार्य बनाने का प्रयास करना होता है । 
      इस प्रकार से समय विज्ञान की दृष्टि से यदि काउंसलिंग (परामर्श) दिया जाए तो अभी तक की प्रचलित प्रक्रियाओं की अपेक्षा बहुत अधिक लाभकारी सिद्ध हो सकता है ऐसे स्त्री पुरुषों की सबसे बड़ी समस्या ये होती है कि ये जो या जैसा चाहते हैं वो इन्हें मिलेगा या नहीं और मिलेगा तो कब ! उन्हें केवल अपने प्रश्नों के अपने अनुकूल उत्तर चाहिए होते हैं । ऐसे प्रकरणों में आधुनिक चिकित्सा पद्धति की अपेक्षा समय वैज्ञानिक  चिकित्सा पद्धति विशेष कारगर सिद्ध होती है ।

 समय वैज्ञानिक  चिकित्सा पद्धति -



    समय विज्ञान  है क्या ?
    नदी ,तालाब या समुद्र का पानी ही क्यों न हो है तो वो बूँदों का समूह ही !उसी प्रकार से घंटा दिन महीना ऋतुएँ वर्ष युग आदि ही क्यों न हों हैं तो वो एक क्षण ,त्रुटि ,पल, प्राण, या फ़िर सेकेंड  आदि  का ही समूह  !जैसे जल की शुद्धि या अशुद्धि का विचार करते समय सारे तालाब नदी समुद्र आदि के जल का परीक्षण तो नहीं किया जाता है कुछ  बूँदों के ही सैंपल उठा लिए जाते हैं उसी प्रकार से समय का परीक्षण करने के लिए समय की कोई शिरा पकड़नी होती है और उसी का परीक्षण करना होता है वो शिरा जितनी अधिक से अधिक सूक्ष्म हो  रिसर्च  उतना अच्छा होता है किंतु ब्यवहारिक जीवन में मूर्त समय मिनट आदि को ही महत्त्व दिया जाता है उससे सूक्ष्म का परीक्षण किया जा पाना संभव नहीं हो पाता है । 
     किसी नदी के पानी का परीक्षण करने के लिए बूँदों के सैंपल जैसे पूरी नदी से नहीं उठाए जाते हैं अपितु जिन जिन स्थानों पर आशंका होती है उसके भी कुछ मानक स्थान निर्धारित किए गए होते हैं वहीँ से जल विंदुओं का आहरण करके उनका परीक्षण किया जाता है और पता लगा लिया जाता है कि नही का पानी कहाँ कितना शुद्ध या अशुद्ध आदि है । इसी प्रकार से समयबिंदुओं  का भी परीक्षण करना होता है इनकी संख्या बहुत अधिक है प्राकृतिक दृष्टि से समय का परीक्षण करते समय किसी भी मिनट घंटा दिन महीना ऋतु वर्ष आदि के प्रारंभ होते समय के उस छोटे से छोटे समय विंदु का परीक्षण करके ये पता लगाया जा सकता है कि ये  मिनट घंटा दिन महीना ऋतु वर्ष आदि शुभ या अशुभ अच्छा बुरा आदि कैसा बीतेगा! 
      इसीप्रकार से जिस समय भूकंप तूफान  वर्षा आदि कोई भी छोटी बड़ी घटना घटित हुई होती है तो वो भविष्य में होने वाली अच्छी बुरी किसी दूसरी घटना का संदेश देती है इसलिए इस घटना के घटित होने वाले समय विंदु का यदि परीक्षण किया जाए तो इससे उस घटना का अनुमान आसानी से लगाया जा सकता है और संभव है कि वो अनुमानजन्य ज्ञान समाज के लिए वरदान सिद्ध हो उस समय का संसार और समाज हित में अधिक से अधिक उपयोग किया जा सके और वो समय यदि अशुभ हुआ तो उसके परिणाम स्वरूप होने वाले बुरे फल से बचने के लिए यथा संभव सावधानियाँ वर्ती जा सकती हैं। 
                 इसी प्रकार से यदि कोई घटना अपने आप से न घटे अपितु घटाई जाए अर्थात छोटा बड़ा कोई भी काम स्वयं प्रारंभ करना हो तो उसके लिए आगामी विभिन्न समयों का परीक्षण करना होता है इससे जो समयविंदु क्षण या मिनट घंटा आदि सबसे शुभ होते हैं ऐसे समय में कोई काम यदि प्रारंभ किया जाए तो उसमें बिघ्न बाधाएँ रूकावटें आदि न आकर वो काम आसानी पूर्वक उत्तम रीति से पूरा हो जाता है अन्यथा न केवल बिघ्न बाधाएँ आती रहती हैं अपितु कई बार कार्य नष्ट भी होते  देखा जाता है इस विधा से समय का परीक्षण करके गर्भधारण करना ,शिक्षा प्रारंभ करने से लेकर जीवन से जुड़े विवाह आदि सभी महत्त्व पूर्ण कार्य समय का परीक्षण करके शुभ समय में ही करने चाहिए !चिकित्सा प्रारम्भ करना ,ब्यापार प्रारम्भ करना ,भवन निर्माण करना आदि और भी जीवन से जुड़े जितने महत्त्वपूर्ण कार्य होते हैं वे यदि अच्छे समय में प्रारंभ किए जाएँ तो उनके परिणाम बहुत अच्छे निकलते देखे जाते हैं !

जीवात्मा और शरीर के संबंध को आयु कहते हैं  -
    24 तत्वों, 8 प्रकृति,16विकारों से बने हुए शरीर रूपी घर में शुभ और अशुभ कर्मों के आधीन होकर मन रूपी दूत के साथ   जीवात्मा निवास करता है !
 जीवात्मा के गुण - इच्छा - द्वेष ,सुख -दुःख ,विषयों का ज्ञान, प्रयत्न, मनसंकल्प, विचारणा, स्मृति, बुद्धि, कलाओं की अनभिज्ञता ,  प्राण का ऊपर को ले जाना, गुदा के मार्ग से वायु का नीचे की ओर आना, ऑंखें खोलना बंद करना,उत्साह,आदि ! 
कैसे पड़ता है मानव जीवन पर समय विज्ञान का असर ?
     मनुष्य सहित समस्त प्राणियों के जीवन का प्रारंभ दो बार होता है पहला जब वो गर्भ में प्रवेश करता है और  दूसरा जब वो अपनी माँ के पेट से बाहर निकलता है ।जीवन के सभी क्षेत्रों में संभावित विस्तार की सीमाओं को समझने के लिए इन दोनों समयविंदुओं पर गंभीर अनुसंधान की आवश्यकता होती है । ऐसे समयविंदुओं का  परीक्षण करके ये पता लगाया जा सकता है कि इस समय पर पैदा हुए स्त्री पुरुष का जीवन कैसा होगा वो अपने जीवन के किस क्षेत्र में कितना विकास  कर सकेगा ! उसकी शिक्षा कैसी रहेगी !किस विषय को पढ़ने में उसकी रूचि अधिक होगी शिक्षा की दृष्टि से उसके जीवन का कौन वर्ष कितनी सफलता या असफलता प्रदान करने वाला होगा !
         ऐसे स्त्री पुरुष अपने जीवन के किस भाग में किस काम से कितना विकास कर सकेंगे।स्वास्थ्य कैसा  रहेगा कोई बीमारी तो नहीं होगी और यदि होगी तो क्या और किस उम्र या किस वर्ष में और उससे बचने के लिए प्रिवेंटिव क्या कुछ किया जाए जिससे नुक्सान कम से कम हो ।इसी प्रकार से धन कमाने की दृष्टि से उसके जीवन का कौन सा वर्ष कितनी सफलता या असफलता प्रदान करने वाला होगा !सामाजिक पद प्रतिष्ठा मिलेगी या नहीं, मिलेगी तो किस क्षेत्र में और कितनी आदि । विवाह होगा या नहीं यदि हाँ तो किन किन वर्षों में संभव होगा !जिन जिन वर्षों में  विवाह होना संभव होता है उन वर्षों में निजी मजबूरी या हठ से विवाह यदि न किया जाए तो बड़े आत्मसंयम पूर्वक पार करने होते हैं वो वर्ष ! अन्यथा उस वर्ष विवाह समय का प्रभाव ऐसा रहेगा कि अविवाहित होने पर भी किसी से वैवाहिक सुख प्राप्त होने के समीकरण निरंतर बनते जाएँगे लोग ऐसे समयों में आचार व्यवहार पर यदि संयम पूर्वक नियंत्रण न रख पाए और कहीं प्रेम प्यार के पचड़े में पड़ गए तो अक्सर  जीवन के कई कई वर्ष बिगड़ते देखे जाते हैं और कई बार तो सारा जीवन ही बिगड़ते देखा जाता है प्रायः ऐसे शारीरिक संबंध हत्या और आत्म हत्या के कारण भी बनते  देखे जाते हैं । जो अशिक्षित कुरूप बीमार बेरोजगार निर्धन नशेड़ी आदि होते हैं उन्हें ऐसे विवाह सुख संबंधी समय आने पर भी किसी से विवाह संबंधी सुख नहीं मिलता है ऐसे समयों में ये लोग बलात्कार जैसी गतिविधियों में आसानी से सम्मिलित होते देखे जाते हैं । यदि समय विज्ञान की दृष्टि से ऐसी परिस्थितियाँ विशेष प्रबल हुईं तो विवाहित लोगों को भी प्यार बलात्कार जैसी गतिविधियों में सम्मिलित होने में देर नहीं लगती है ।
     जीवन से जुड़े समयविंदुओं का महत्त्व !   
      कुछ समय विंदु ऐसे होते हैं जिनका परीक्षण करने पर जन्म के समय ही पता लगा लिया जाता है कि इस समय में जन्म लेने वाले लोग विवाह के बाद बीमार  रहने लगेंगे या उनका चलता हुआ व्यापार बंद हो जाएगा इसी प्रकार के और भी भविष्य में घटित होने वाली अच्छी बुरी बातें बीमारियाँ आदि बचपन में ही पता लगाई जा सकती हैं जिससे उन उन परिस्थितियों से निपटने के लिए अपने को बचपन से ही सावधान रहना होता है जिससे अच्छे समय का  लाभ अधिक से अधिक उठाया जा सकता है और बुरे समय के दुष्प्रभाव का असर कम से कम करने का प्रयास  किया जाता है ।
      समय संबंधी ऐसी बातों की जानकारी के अभाव में कई बार विवाह के बाद अपने समय प्रभाव से आने वाले संकटों का भी सारा दोष जीवन साथी और उसके दुर्भाग्य पर मढ़ दिया जाता है कई बार ऐसी परिस्थिति में जीवन साथी जीवन भर घुट घुट कर जीता है या फिर भयंकर कलह या विवाह विच्छेद आदि कुछ भी हो जाता है अथवा कई बार तो मरने मारने तक परिस्थितियाँ पहुँच जाती हैं जबकि ये सब हो अपने या जीवन साथी के जन्म समय से जुड़े समय विंदु  के कारण रहा होता है इसमें अपना या जीवन साथी का कोई दोष नहीं होता है ।
   इसी प्रकार से कुछ समयविंदुओं में जन्म लेने के प्रभाव से स्त्री पुरुषों में संतानहीनता होती है कई बार ऐसा भी होता  है जब चिकित्सकीय दृष्टि से संतान हीनता के कोई कारण दिखाई ही नहीं देते फिर भी संतान नहीं हो रही होती है वस्तुतः समय विज्ञान संबंधी इस समस्या का समाधान चिकित्सा विज्ञान में होता ही नहीं है इसी लिए ऐसे लोगों की उतनी मदद  चिकित्सा विज्ञान नहीं कर पाता है जितनी की आवश्यकता होती है ।  ऐसी परिस्थिति में समय विज्ञान का लाभ उठाया जा सकता है संभव है कि उससे अपेक्षित सफलता मिल जाए ।
     कुछ समय विन्दुओं में जन्म लेने वाले लोगों का जन्मसमय परीक्षण करने पर पता लगता है कि ऐसे स्त्री पुरुषों के जन्मसमय के प्रभाव से इनके माता पिता भाई बहन पति पत्नी संतान आदि निजी संबंधी अमुक वर्ष या इतनी उम्र में सुख या दुःख भोगेंगे ! प्रतिकूल लक्षणों के कारण अक्सर उनका स्वास्थ्य बिगड़ जाता है कई बार तो ऐसे सेज संबंधियों की मौत तक होते देखी जाती है ।समय विज्ञान के द्वारा ऐसी परिस्थितियों का पता लगाने के लिए संबंधित व्यक्ति के जन्मसमय विंदु पर  गम्भीर अनुसंधान  करके सम्बन्धियों के सुख दुःख बीमारी आरामी  के कारणों का पता लगाया जा सकता है न केवल इतना अपितु पता तो ये भी लगाया जा सकता है कि ऐसी दुर्घटनाएँ घटेंगी किस उम्र या वर्ष में उतने समय के लिए उन सम्बन्धियों के साथ न रहकर अपितु  संबंधित व्यक्ति से अलग रहना प्रारम्भ कर दिया जाए तो भी काफी बचाव हो जाता है ।
      समय विज्ञान की दृष्टि से देखे जाने पर कुछ समयविंदु ऐसे भी होते हैं कि उनमें  जन्म लेने वाले स्त्री पुरुषों के जीवन में पति या पत्नी का सुख अत्यंत कम होता है ऐसे लोगों के मन में बासनात्मक  दृष्टि से इतनी अधिक असुरक्षा की भावना होती है कि ये युवा होने से पूर्व ही यौन गतिविधियों में सम्मिलित पाए जाते हैं ये इज्जत बेइज्जत की परवाह किए बिना पशुओं की तरह राहों चौराहों पार्कों पार्किंगों झाड़ों जंगलों में प्रेम प्यार के नाम पर किसी न किसी  से लिपटे चिपटे दिखाई पड़ते हैं । इसी प्रकार से कुछ समयविंदु ऐसे भी होते हैं कि उसमें जन्म लेने वाले लोगों के जीवन में जन्म से ही ये निश्चित होता है कि इन्हें पति या पत्नी का सुख अत्यंत कम मिलेगा जबकि इनके पास धन धान्य अच्छा होगा ।
       ऐसे लोग जन्म समय के ऐसे प्रभाव को न जानने या न मानने के कारण अपने धन बल से या किसी अन्य छल छद्म से किसी ऐसी सुन्दर कन्या या पुरुष से विवाह कर लेते हैं कि जिसे विवाह सुख बहुत अच्छा मिलना होता है अब कम विवाह सुख योग वाला  जीवन साथी अपने अच्छे विवाह सुख वाले जीवन साथी की इच्छाओं की पूर्ति कैसे कर सकता है ऐसी परिस्थिति में बहुत अच्छे विवाह सुख के धनी लोग अपने पति या पत्नी के अलावा किसी और से भी वैवाहिक सुख प्राप्त करके अपने वैवाहिक सुखयोग की पूर्ति करते देखे जाते हैं ।     इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि जिसके जीवन में जीवनसाथी से कामसुख का योग  60 प्रतिशत हो जबकि जीवन साथी को 100 प्रतिशत कामसुख मिलने का संयोग हो तो  ऐसे लोग अवशिष्ट 40 प्रतिशत कामसुख कहीं और से अरेंज करते हैं या फिर उतनी काम पीड़ा सहकर संतोष पूर्वक जीवन यापन कर लेते हैं !
      ऐसे समयविंदु भी होते हैं जिनमें जन्म लेने वाले लोग बाल ब्रह्मचारी रहते हैं कुछ योग वे भी होते हैं जिनमें एक निश्चित समय तक संयम पूर्वक रह  पाते हैं उसके बाद बिलकुल कामपिशाच बन जाते हैं और अक्सर ऐसे बाबा लोग अपने चेला चेलियों से ही बासनात्मिका दृष्टि से जुड़ जाते हैं !
    कुल मिलाकर जो स्त्री पुरुष जैसे समयविंदु में जन्म लेता है उसका सारा जीवन उसी दिशा और उन्हीं क्षेत्रों में  मुड़ता चला जाता है जिसमें अत्यन्त प्रयासपूर्वक  कुछ प्रतिशत में तो बदलाव किया जा सकता है जबकि लगभग 50 प्रतिशत तो वही होता है जो जन्म के समय ही निश्चित हो चुका होता है ।जिसकी जानकारी केवल जन्म समय विंदु के गहन शोध से मिलती है उसे बदलना केवल  कठिन ही नहीं कई मामलों में असंभव भी होता है ।
 मनोरोग और तनावग्रस्त लोगों में धीरे धीरे पनपने लगती हैं तरह तरह की बीमारियाँ !जानिए कैसे -
     गंदगी कहीं कुछ दिन कहीं पड़ी रहे तो जैसे उसमें कीड़े पड़ने लग जाते हैं ठीक इसीप्रकार से मनोरोगियों और तनाव ग्रस्त लोगों में पनपने लगती हैं अनेकों प्रकार से शारीरिक बीमारियाँ और एक से एक जुड़कर बड़ा भयानक रूप रखते चली जाती हैं कई बार तो ऐसे लोग जीवन की आशा तक छोड़ देते हैं।इनका इलाज चिकित्सा पद्धति की दृष्टि से अत्यंत कठिन एवं कम प्रभावी होता है ऐसे लोगों को समयविज्ञान की पद्धति से कुछ समय तक यदि लगातार काउंसलिंग अर्थात परामर्श चिकित्सा दी जाए तो उसके बाद शारीरिक चिकित्सा करने से घट सकती हैं जीवन से जुडी अनेकों बीमारियाँ !
       आजकल मानसिक तनाव बहुत बढ़ता जा रहा है असहिष्णुता इतनी की छोटी छोटी बातों पर तलाक हो रहे हैं किसी को किसी की बात बर्दाश्त ही नहीं है पति पत्नी में आपसी तनाव के कारण एक दूसरे को देखकर ख़ुशी नहीं होती ! जीवन साथी की बुरी बातें, बुरी आदतें,बुरे आचार व्यवहार आदि हमेंशा याद बने रहने के कारण लोग मानसिक नपुंसकता के शिकार होते जा रहे हैं ऐसे स्त्री पुरुष अपने जीवन साथी के साथ खुश नहीं रह पा रहे हैं जबकि प्रसन्न मन से बासना अर्थात सेक्स प्रकट होता है और जब मन ही न प्रसन्न हो तो सेक्स कैसा ! ऐसे में इधर उधर मुख मारते घूम रहे हैं अच्छे खासे दिखने वाले लोग !
     स्त्री पुरुषों के शारीरिक संबंध प्रभावित हो रहे हैं इससे  दिमागी तनाव बढ़ता जा रहा है यहाँ तक कि दिन में तीन से छै बजे के बीच और यदि नींद खुल जाए तो रात्रि में तीन से छै बजे के बीच बहुत तनाव बढ़ जाता है जुलाई अगस्त  के महीनों में तो ऐसे लोग विशेष बेचैनी का अनुभव करते हैं इन्हें नींद नहीं आती है । ऐसे स्त्री पुरुषों को नींद न आने से पेट ख़राब रहता है पेट खराब रहने से भूख नहीं लगती है कुछ खाने का मन नहीं होता है जब तीन सप्ताह ऐसा रह जाता है तो गैस बनने लगती है ये गंदी गैस ऊपर को चढ़ कर हृदय में पहुँचती है इससे घबड़ाहट बेचैनी हार्टबीट आदि बढ़ने लग जाती है ब्लड प्रेशर जैसी दिक्कतें बढ़ने लगती हैं ! जब यही गैस और ऊपर जाकर मस्तिष्क में चढ़ती है तो शिर में दर्द होना चक्कर आना ,आँखों में जलन या आँखों के आगे अचानक धुँधला दिखाई पड़ना या अँधेरा छा जाना,शरीर में अचानक झटका सा लग जाना,ऐसा समझ में आना जैसे कोई अपने ऊपर बैठ गया हो या पास से निकल गया हो इससे भूतों का भ्रम होना ,कानों में आवाजें आने लगना ,मसूड़ों में दर्द होना सूजन हो जाना ,मुख के अंदर छाले पड़ना या घाव होने लगना ,जीभ में बलगम लिपटा रहना मुख से दुर्गंध आने लगना,बाल फटना ,बाल सफेद होना ,बाल झड़ना , उलटी लगना,त्वचा ढीली पड़ने लगाना,झुर्रियाँ पड़ने लगना,आँखों के आसपास काले घेरे होने लगना आँखों के नीचे गड्ढे पड़ने लगना,गर्दन और कंधों में जकड़न होने लगना,महिलाओं के मुख पर बाल उगने लगना, सीने एवं कंधों पर मांस बढ़ने लगना पेट के ऊपरी भाग में जलन होते होते गले तक पहुँचने लगना ,दबाने से बायीं ओर दायीं छाती से नीचे पेट के ऊपर ज्वाइंट में दर्द होने लगना या कुछ अड़ा सा प्रतीत होने लगना होने लगना ! पेट के निचले भाग में बाईं ओर दबाने से दर्द होने लगना ,6 महीने तक यदि ऐसा ही चलता रहा तो मांस बढ़ने लगाना पेट लटकने लगना,कमर चौड़ी होने लगना ,कमर तथा घुटने जाम होने लगना ,जाँघें भारी होने लगना,होने लगना ,हड्डियों के जोड़ बजने लगना, तलवों सहित पूरे शरीर में जलन होने लगना आदि दिक्कतें बढ़ती चली जाती हैं !ऐसी दिक्कतें बढ़ने पर पीड़ित स्त्री-पुरुष थर्मामीटर से नापते हैं तो बुखार नहीं होता वैसे शरीर जला करता है शरीर में दिन भर टूटन होती है उठकर कहीं चलने का मन नहीं होता किसी से मिलने बोलने का मन नहीं होता है किसी शादी विवाह उत्सव आदि में जाने का  मन नहीं होता है किसी से आँख मिलाने की हिम्मत नहीं पड़ती ! ऐसे स्त्री-पुरुष मेडिकली चेकअप करवाते हैं तो प्रारम्भ में तो कोई खास बीमारी नहीं निकलती है किंतु इन परिस्थितियों में यदि समय रहते नियंत्रण न किया जाए तो इन्हीं कारणों से बीमारियाँ धीरे धीरे बनने और बढ़ने लगती हैं !ऐसे लोग अपने को असमय में बूढ़ा होने का अनुभव करने लगते हैं किंतु इस अनचाहे बुढ़ापे को रोकने के लिए या इसे न सह पाने के कारण ये बचे खुचे बाल काले करने लगते एवं भारी भरकम  मेकअप करने लगते हैं किंतु उससे और कुछ तो होता नहीं वो श्रृंगार और मुखचिढ़ाने सा लगता है क्योंकि उसमें सजीवता नहीं आ पाती है धीरे धीरे अपने को भी झेंप लगने लगती है !
     कुल मिलाकर ऐसी सभी परेशानियाँ दिनोंदिन बढ़ती चली जाती हैं इसमें चिकित्सकीय इलाज से काम चलाऊ  सहयोग तो मिलता है किंतु वो स्थाई नहीं होता है थोड़े दिन बाद फिर वैसा ही हो जाता है दूसरी बात छोटी छोटी बीमारियाँ इतनी अधिक हो जाती हैं कि दवा किस किस की लें साथ ही बहुत सी बीमारियों का भ्रम बहुत अधिक बढ़ जाता है कोई  बड़ी से बड़ी बीमारी किसी के मुख से या न्यूजचैनल  में सुनने पर ऐसे लोग उस  बीमारी के लक्षण अपने अंदर खोजने लगते हैं मानसिक दृष्टि से ये इतने अधिक कमजोर हो चुके होते हैं कई बार बात बात में या बिना बात के सकारण या अकारण रोने लग जाते हैं ऐसे स्त्री पुरुष !
       ऐसे लोगों पर कोई भी इलाज बहुत अधिक कारगर नहीं होते हैं इलाज की प्रक्रिया तो ऐसी है कि आप गैस बताएँगे तो वो गैस की गोली दे देंगे ,चक्कर बताएँगे तो चक्कर की गोली दे देंगे किंतु ये इसका पर्याप्त इलाज नहीं है ।  धीरे धीरे वो भी यही बताने लगेंगे कि सलाद खाओ,पानी अधिक पियो ,सैर करो,कहीं घूमने फिरने जाया करो मौज मस्ती  करो आदि आदि ! इससे आंशिक लाभ तो होता है किंतु वो स्थाई नहीं होता और बहुत अधिक कारगर नहीं रहता है थोड़े दिन बाद फिर वैसे ही हो जाते हैं क्योंकि ये सब उपाय बहुत अधिक कारगर नहीं रहते !
     चिकित्सा करने के लिए  समयविज्ञान के द्वारा परामर्श चिकित्सा की मदद से ऐसे लोगों का सर्व प्रथम मानसिक तनाव कम करना चाहिए । जब  मानसिक तनाव घटकर चिंतन सामान्य हो जाए तब ऐसे लोगों की चिकित्सा में धीरे धीरे कुछ महीना  या अधिक दिक्कत हुई तो वर्ष भी लग सकते हैं ठीक ढंग से सविधि चिकित्सा करने में समय तो लगता है किंतु धीरे धीरे सब कुछ नार्मल होता चला जाता है !कंडीशन पर डिपेंड करता है ! सबसे पहले तो हमें ऐसे लोगों के विषय में गंभीर रिसर्च इस बात के लिए करनी होती है कि ये परिस्थिति पैदा क्यों हुई !दिमागी तनाव बढ़ा क्यों और कब से बढ़ा तथा रहेगा कब तक और उसे ठीक करने के लिए क्या कुछ उपाय किए जा सकते हैं !कई बार दिमागी तनाव तैयार होने की परिस्थिति ऐसी डरावनी होती है जिसके विषय में रोगी कुछ भी नहीं बताना चाहता इसके लिए उसे जीवन की ही कुर्वानी क्यों न देनी पड़े ऐसे रोगियों में समय विज्ञान की भूमिका और अधिक महत्त्व पूर्ण हो जाती है इसी के द्वारा अनुसंधान करके खोलनी पड़ती है उसके मन की गाँठ और रोगी को विश्वास में लेकर साफ करनी पड़ती है उसकी दिमागी सारी गंदगी ।   
      दूसरी स्टेज वो आती है जब पता करना होता है कि इतने दिनों तक तनाव बना रहने से सम्बंधित व्यक्ति के शरीर में किस प्रकार से किस की अंग में कितना नुक्सान हुआ और उसे रिकवर कैसे किया जाए !यदयपि इसका इलाज करना औषधीय चिकित्सा का काम है फिर कोई बीमारी यदि ऐसी हो गई हो समय विज्ञान की दृष्टि से जिसके विशेष बढ़ जाने का खतरा हो तो उसमें समय विज्ञान के अनुमान के आधार पर ही चिकित्सा की जानी चाहिए अन्यथा खान पान औषधि आदि से उतना लाभ नहीं होगा जितना होना चाहिए और समय विज्ञान से संबंधित यदि कोई ऐसी बाधा न हो औषधि टॉनिक आदि  चीजों के साथ साथ उचित आहार व्यवहार से स्वास्थ्य सामान्य होने लग जाता है । इन सबके साथ साथ अपने विरुद्ध सोचने की आदत ऐसे लोगों की इतनी जल्दी नहीं छूटती है कुछ समय तक ये डर हमेंशा बना रहता है कि ऐसे स्त्री पुरुष पुरानी स्थिति में कहीं फिर न लौट जाएँ इसलिए कुछ समय तक ऐसे लोगों को समय समय पर आवश्यकता अनुशार उचित काउंसेलिंग अर्थात कुशल समय वैज्ञानिक से परामर्श चिकित्सा लेनी होती है ।
आधुनिक चिकित्सा पद्धति में मन की मान्यता ही नहीं है तो क्या रोग क्या चिकित्सा !
     एक विशेष बात और ध्यान रखनी चाहिए कि  किसी को कभी अकारण तनाव तो होता नहीं है जो इतनी जल्दी सामने वाले को तनाव मुक्त किया जा सकता है । आधुनिक चिकित्सा पद्धति में जो काउंसेलिंग की पद्धति है वो उतनी प्रभावी भी नहीं है क्योंकि उसमें तनाव पीड़ित व्यक्ति को केवल समझाना होता है "तनाव न करो" "तनाव करने से क्या होगा" "'शरीर ख़राब हुआ जा रहा है' 'शरीर ठीक करो' 'फिर धीरे धीरे सबकुछ ठीक हो जाएगा" आदि आदि वही बातें बोलनी होती हैं जो पहले भी उसके घर गाँव वाले नाते रिश्तेदार आदि सभी लोग बोल बोल कर समझा चुके होते हैं यहाँ तक कि पीड़ित स्त्री पुरुष स्वयं भी कई बार पहले दूसरों को यही सबकुछ समझा चुका होता है किंतु आज उसे खुद लोग समझा रहे होते हैं किंतु समझ में नहीं आता है ।इसलिए आधुनिक चिकित्सा पद्धति में उपलब्ध काउंसेलिंग व्यवस्था रोगी की मानसिक परिस्थितियों को सामान्य कर पाने में सक्षम नहीं हो पाती है ।
समय विज्ञान से ऐसे पहुँचा जाता है रोगी के मन तक ?
      इसीलिए भारतवर्ष की प्राचीन मनोचिकित्सा पद्धति इस विषय  में सबसे अधिक प्रभावी  है जो समय विज्ञान के नाम पर आज सुस्थापित होती जा रही है क्योंकि उसमें रोगी के बिना बताए भी तनाव का कारण अपनी चिकित्सा पद्धति के अंदर उपलब्ध सूत्रों से भी खोजे जा सकते हैं साथ ही ये भी पता लगाया जा सकता है कि तनाव हुआ क्यों और तनाव है कबसे और रहेगा कब तक !ठीक कैसे होगा या कम कैसे होगा या फिर तबतक का समय सकुशल पार कैसे करना होगा आदि आदि !
         कई बार  कुछ कारण ऐसे होते हैं जिसका निवारण आधुनिक मनोविज्ञान के हिसाब से कितना कुछ हो सकता है कितना नहीं हमारे लिए कहना बहुत कठिन है किंतु प्राचीन मनो विज्ञान के हिसाब से तो मैं विश्वास पूर्वक कह सकता हूँ कि इसका निदान काफी सटीक रूप से निकाला जा सकता है ! हाँ ठीक होने में समय तो लगता है किंतु समस्या की जड़ तक पहुँचा तो जा सकता है ।
    इस विषय में हमारे बहुत सारे अनुभवों में से एक है "दिल्ली के ही किसी व्यक्ति का एक प्रकरण था जब उनकी पत्नी अपने दो बच्चों  को  साथ लेकर  अपने मायके यह बोलकर चली गई थी कि मैं अब तुम्हारे साथ कभी नहीं रहूँगी मुझे तलाक चाहिए !पति तनाव में था ही वो तनाव और अधिक बढ़ता चला गया ! घर के लोग दिल्ली के एक प्रसिदध  हॉस्पिटल लेकर दिखाने गए तो वहाँ के काफी सीनियर डॉक्टर साहब जो आज रिटायर्ड हैं उन्होंने जो आवश्यक  दवा समझी वो दवा लिखी सामान्यतौर पर दवा तो नींद लाने की ही थी ! अंत में उसे समझाते हुए कहने लगे क्यों इतना परेशान हो !पत्नी गई है तो जाने दे तुम दूसरी शादी कर लेना किंतु वो घबड़ा गया क्योंकि वो अपने उन्हीं बच्चों और उसी पत्नी के साथ खुश था !वो डॉक्टर साहब से पूछने लगा कि पत्नी दुबारा आएगी या नहीं और आएगी  तो कब और नहीं आएगी तो उसके लिए  उपाय क्या है ? किंतु इसका डॉक्टर साहब के पास कोई जवाब नहीं था !रोगी की स्थिति स्थिति दिनोंदिन बिगड़ती जा रही थी अंत में कुछ दिनों बाद किसी के कहने पार उसे मेरे पास लाया गया और मुझे तनाव का कारण पत्नी का वियोग बताया गया ।
      उसी प्राचीन समयविज्ञान के हिसाब से उस व्यक्ति के जीवन के विषय में मैंने  गंभीर अध्ययन करके  उससे बिना कुछ पूछे एक कागज में लिखा कि पिछले एक वर्ष सात महीने से पति पत्नी का झगड़ा चल रहा था और अभी एक वर्ष तीन महीने ये दोनों आगे भी साथ नहीं रह पाएँगे और रहेंगे तो कलह होगा इसके बाद ये सभी लोग उसी परिवार में शांति पूर्वक रहने लगेंगे ! ये पर्ची मैंने उसी लड़के के हाथ में दी तो उसने पर्ची पढ़ी और पूछा क्या ये सच है तो मैंने कहा कि यदि इस पर्ची में लिखा हुआ 'पास्ट' सच है तो 'फ्यूचर' भी सच होगा क्योंकि मैं आपके परिवार को जानता तो हूँ नहीं हमें कैसे पता कि आपके घर में तनाव कब से चल रहा है किंतु जिस प्राचीन समय विज्ञान के आधार पर मैंने बताया है उसके आधार पर यदि सही होगा तो बीता और आगामी दोनों सही होगा और गलत होगा तो दोनों गलत होगा !इस बात पर उसे भरोसा हो गया और  उसकी आधी बीमारी वहीँ समाप्त हो गई !पहले वो कभी कभार पत्नी को फोन मिलाकर गाली गलौच कर दिया करता था इससे पत्नी और खीझ जाती थी । मैंने उसे समझाया कि इस समय जितना गाली गलौच करोगे उतनी बातें चुभती  रहेंगी तो जब समय अच्छा आए जाएगा तब भी इन बातों को याद कर करके तुम लोगों का मन लम्बे समय तक मिलने का नहीं होगा इसलिए ये बंद करो उसने मेरी बात मान ली वो शांत हो गया अब एक दिन उसके बच्चे का फोन आया पिता से बात हुई बच्चा रोने लगा उसने माँ से बात करवाई आज उसकी बातचीत का वातावरण बदल हुआ था अब तो दोनों में नार्मल बात चीत होने लगी कुछ दिन एस चला फिर उस खराब समय में ही पत्नी अपने घर आ गई दोनों ने उस समय को सहनशीलता पूर्वक पार किया !"फिर सबकुछ ठीक हो गया !इसके बाद वो परिवार हमारे संपर्क में कम से कम उतने दिन तो रहा ही जितने दिन तक वो परिवार फिर से एक साथ बस नहीं गया !
     यहाँ एक विशेेष बात ये भी है कि शुरू में ये बात केवल हमें पता थी कि ये दोनों पक्ष अभी आपस में कितनी भी बातें करें अभी इनको एक दूसरे की बात पसंद नहीं आएगी किन्तु जैसे ही इनका एक वर्ष तीन महीने का बुरा समय बीत जाएगा वैसे ही प्राचीन विज्ञान के हिसाब से इनके मिलने का समय तो प्रारम्भ हो जाएगा । किंतु ये बात इनको बताने एवं इस पर विश्वास करवाने की जिम्मेदारी तो किसी को लेनी ही होगी क्योंकि जब दोनों अलग अलग हुए होंगे तब एक दूसरे पर न जाने कितने आरोप लगे होंगे इन लोगों को वो संकोच मिटाने की भूमिका किसी को सौंपनी होगी जैसे ही थोड़ी पहल की जाएगी वैसे ही सब कुछ नार्मल हो जाएगा !ये हमें पहले से ही विश्वास  था !
      एक धनाढ्य परिवार और संपर्क में पहले से ही था लड़के का समय सात वर्षों तक के लिए गम्भीर मानसिक तनाव में रहने का था ये बात मैंने पहले से ही बोल रखी थी सारे घर वालों को पता थी हमारी कही हुई ये बात !फिर भी तनाव का समय था इसलिए तनाव तो होता ही है घर में अक्सर कलह चर्म सीमा पर पहुँच जाया करता था ,किंतु सारी बातें हो जाने के बाद पिता यह बोल कर उसे मना लिया करते थे " चल यार भोजन करते हैं तू मुझे तंग तो करता ही रहेगा वाजपेयी जी ने पहले से कह रखा है !"यह सुनते ही घरवाले हँसने लग जाते और घर का वातावरण विल्कुल बदल जाया करता था ।
      ऐसी ही जीवन से जुड़ी और भी हजारों घटनाएँ हैं जहाँ आधुनिक चिकित्सा विज्ञान चाहकर भी किसी प्रकार से कोई भूमिका ही नहीं निभा सकता है किंतु यदि समस्या है तो उसका समाधान तो खोजा  जाना चाहिए वो जहाँ मिले वहाँ से लेने में बुराई क्या है !
        इसी से जुड़ी हुई एक और बात है देश के एक बहुत बड़े डॉक्टर साहब हैं जिनकी केंद्र सरकार से लेकर कई राष्ट्रीय संगठनों में अच्छी पैठ रही है उनके भतीजे एक केंद्रीय मंत्री के पीए रहे हैं और अभी भी उन्हीं मंत्री जी के साथ हैं वो अभी भी हमारे संपर्क में हैं और उसी प्रकरण से वो आजतक मुझ पर भरोसा करते हैं वो हमारे मित्र हैं उनके चाचा का पूरा घर हमको उन्हीं के नाते जानता  था । डॉक्टर साहब आर्य समाजी होने के नाते समयविज्ञान  पर भरोसा नहीं करते थे जबकि उनकी पत्नी ये सब बातें मानती थीं !हमारे मित्र एक दिन  हमें अपने चाचा के घर ले गए बहुत सारी सामाजिक राजनैतिक आदि बातें होती रहीं अंत में उनकी बड़ी बेटी पास ही बैठी थी डॉक्टर साहब ने दुलार से उसके शिर पर हाथ सहलाते हुए हमसे हँसते हुए पूछा  कि इसे कभी गुस्सा आएगा !वास्तव में वो बहुत सीधी थी ।
      समय विज्ञान की दृष्टि से ही अनुमान लगाकर मैंने कहा कि 6 महीने के अंदर ये आपका जीना मुश्किल कर देगी एक वर्ष आपके यहाँ का बहुत भयंकर बीतेगा !वो बहुत जोर हँसे और कहने लगे कि हमारी छोटी बिटिया के विषय में आप कहते तो मैं शायद मान भी लेता किन्तु इसको आजतक कभी गुस्सा नहीं आया !इसके बिषय में नहीं माना जा सकता !खैर बात समाप्त हुई मुझे आना था ही मैं चला आया । हमारे मित्र हमें स्टैंड तक छोड़ने आए उनसे मैंने बोला ये लड़की किसी लड़के से जुड़ गई है बहुत जल्दी ही ये पूरे घर का जीना  मुश्किल कर देगी किंतु उन्होंने कहा ऐसा संभव है ही नहीं क्योंकि हमारी चाची बहुत शक्त हैं !खैर मैं चला आया दो तीन महीने बाद इसी विषय को लेकर घर में भयंकर कलह रहने लगा धीरे धीरे आपस में मारपीट तक होने लगी किंतु ये सब बातें घर के बाहर किसी को नहीं बताई गईं लड़की सिख लड़के को चाहती थी ये हिंदू  थे !धीरे धीरे समय बीता आश्विन नवरात्रि के 6 वें दिन उसने प्वॉइजन ले लिया सातवें दिन उसके बचने की सम्भावना न के बराबर बता दी गई अब डॉक्टर साहब का इस घटना के विषय में मेरे पास पहली बार फोन आया कि वो तो लगभग ख़त्म है मेरा क्या होगा उस समय वो बहुत घबड़ाए हुए थे तो मैंने कहा मैं परसों घर आऊंगा वो मुझे चाय बनाकर पिलाएगी !डॉक्टर साहब को लगा कि शायद मैं सुन नहीं पा रहा हूँ तो उन्होंने रिपीट किया मैंने फिर वही कहा खैर उन्होंने फोन काट दिया ।
       अंततः वो ठीक हुई और मैं तीसरे दिन उस घर गया उसने मुझे चाय पिलाई !खैर इस प्रकरण में अब मेरी इंट्री हो चुकी थी !अब उस कलह को शांत करने के लिए मुझे बुलाया जाने लगा था ! एक दिन मैं डॉक्टर साहब और उनकी पत्नी के सामने ये कलह ख़त्म करने के लिए एक फार्मूला लेकर पहुँचा कि लड़की जिससे चाहती है आप उसी लड़की से विवाह के लिए हाँ कर दो साथ ही ये भी कह दो कि विवाह इस वर्ष नहीं करेंगे अगले वर्ष होगा !
       वो पहले तो हिचकिचाए यह देखकर मैंने उनसे कहा कि आप मुझ पर भरोसा रखो वहाँ विवाह होगा नहीं जहाँ ये चाहती है उनकी नजर में हमारी ये असंभव सी बात किंतु मेरी थी इसलिए उन्होंने स्वीकार कर ली !उधर मैंने लड़की से कहा बेटा घर का कलह ख़त्म करने के लिए मैंने तुम्हारे मम्मी पापा को मना लिया है और विवाह उसी से करने को वो मान भी गए हैं किंतु अब एक बात तुम्हें माननी होगी वो बोली क्या तो मैंने कहा कि शादी अगले बर्ष की जाएगी तो ये शर्त उसने भी मान ली समय समय पर माँ बेटी एक दूसरे पर शक करते रहे किंतु मैंने दोनों को समझा समझाकर किसी प्रकार से 10 महीने बिताए !जून के अंतिम सप्ताह में एक दिन शाम को उस लड़की का मेरे पास फोन आया कि भैया मेरा रिजल्ट निकल गया मैं पास हो गई हमने कहा बधाई हो इसी पर उसने कहा कि भैया !वो साला फेल हो गया हमने कहा कौन तो उसने नाम लिया और कहा कि बहुत बन ठन कर आता था आज लड़कियों ने खूब खिंचाई की उसकी वो आँखें झुकाकर चला गया मैंने कहा जो कुछ भी हो सो हो अब विवाह तो होना ही है उसी के साथ !तो उसने कहा- अब उससे विवाह किसी भी कीमत पर नहीं करना है और हम सब लोग करने को कहते रहे किंतु उसने उसके साथ विवाह नहीं ही किया !
       समय वैज्ञानिक होने के नाते मैं स्वीकार करता हूँ कि जब मैंने ये सब शर्तें रखी थीं तब हमें ये तो पता था कि जुलाई के बाद ये लड़की इस लड़के में रूचि लेना बंद कर देगी किंतु ये नहीं पता था कि उसका कारण  क्या बनेगा !  कुलमिलाकर मेरे कहने का मतलब ये है कि एक परिवार का यदि इतना बड़ा कलह टाला जा सका तो यदि समयविज्ञान पर भरोसा क्यों न किया जाए ! 
        अंततः डॉक्टर साहब आज भी संपर्क में हैं उन्होंने कई बड़े लोगों से मिलाया भी । साथ ही इसी विश्वास के बलपर उन्होंने नेहरू स्टेडियम में आयोजित "स्वदेशीस्वास्थ्य मेला " में समयवैज्ञानिक दृष्टि से परामर्श चिकित्सक  के नाते निःशुल्क रूप से स्टाल हमें उपलब्ध करवाया था जिससे उस मेला के नाम पर लगभग हर अखवार में मेरी इस विधा की चर्चा थी !आज भी गुग्गल पर मेरा नाम डालने से कुछ अखवारों में उस समय प्रकाशित मेला से संबंधित स्टोरी दिख जाती हैं जिनमें मेरी इस विधा की चर्चा सविधि  की गई है ।
     ऐसा  ही एक सशक्त उदाहरण बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी के हिंदी विभाग का है जो उस विभाग के अधिकाँश शिक्षकों को पता है तत्कालीन विभागाध्यक्ष जी उस घटना के न केवल सशक्त साक्ष्य हैं अपितु समय विज्ञान की दृष्टि से उनके एक स्कॉलर के परिवार का भयंकर तनाव मिटाने का समृद्ध श्रेय मुझे मिला है जिससे प्रभावित होकर ही उन्होंने अपने गाइडेंस में हमारी पीएचडी करवाई !हमारी थीसिस का टॉपिक भी इन्हीं विषयों से मिलता जुलता था ।हमारे द्वारा वो थीसिस लिखने के बाद उसे जाँचने वाले देश में सुप्रसिद्ध कई बार के पुरस्कृत हमारे एक्जामनर साहब ने हमारी थीसिस के विषय में विश्व विद्यालय को दी जाने वाली अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि "श्री वाजपेयी की " थीसिस पढ़ने के बाद आज पहली बार मैं ये विषय समझ सका हूँ। उन्होंने 'वायवा' में हमसे एक भी प्रश्न नहीं पूछा था जबकि 'वायवा' से पहले गेस्ट हाउस में उन्होंने लगभग दो घंटे तक थीसिस के प्रत्येक विषय पर गम्भीर चर्चा की थी । विश्व विद्यालय को उन्होंने उसी स्थिति में थीसिस प्रकाशित करने के लिए भी लिखा था । 
      
समयविज्ञान की उपेक्षा नहीं की जा सकती !

     आधुनिक विज्ञान विकसित नहीं हुआ था तब भी समयविज्ञान तो यहीं बैठे बैठे पूरे आकाश की तलाशी केवल ज्योतिषगणित के बलपर ही तो लिया करता था आखिर सूर्य चन्द्र कब उगेंगे कब अस्त होंगे न केवल सूर्य चन्द्र ग्रहणों के प्रारम्भ और समाप्ति का एक एक सेकेंड एक्यूरेट टाईम पता लगा लेना अपितु सूर्य और चन्द्र मंडलों में किस दिशा से ग्रहण प्रारम्भ होगा और सूर्य - चन्द्र मंडलों  का कितना भाग काला  होगा ये तक यहीं बैठे बैठे पता लगा लेना अलग अलग शहरों में ये ग्रहण कहाँ कितना और कैसा दिखाई पड़ेगा !केवल इतना ही नहीं भविष्य में आने वाले ग्रहणों के विषय में सबकुछ पता लगा लेना क्या ये छोटी बात है आप ही सोचिए कि इतनी विराट क्षमता वाला ज्योतिष शास्त्र विज्ञान नहीं तो क्या है !   जो लोग आकाश में जहाँ कभी गए नहीं केवल गणित के बल पर जब वहाँ की इतनी खबर रखते थे तो जिस पृथ्वी पर रहते हैं उस धरती का क्या कुछ छिपा होगा उस शास्त्र से !

           समय विज्ञान से ही जुड़ा हुआ है वर्षाविज्ञान  !
    विशेष कर किसानों के लिए आधुनिक मौसम विज्ञान उतना सहायक नहीं हो पा रहा है जितना प्राचीन वर्षा विज्ञान है क्योंकि किसानों को कृषि कार्यों के मौसम संबंधी जानकारी महीनों और गन्ने आदि की फसलों के लिए तो वर्षों पहले चाहिए होती है उन्हें मौसम संबंधी जानकारी !उसी हिसाब से वो फसलों का चयन करते हैं उसी हिसाब से फसलों की सिंचाई करते हैं उसी हिसाब से आनाज एवं पशुचारे का आगे से आगे संग्रहण करना होता है इसलिए किस वर्ष या महीने में वर्षा का क्या अनुमान है ये किसानों के लिए पहले से जानना बहुत महत्वपूर्ण होता है। 
     वर्षा विषयक अनुमान समय विज्ञान सम्बन्धी खगोलीय गणित के बल पर बर्षों पहले लगा लिया जाता था उसी हिसाब से किसान अपनी फसलें बोने  का चयन किया करते थे जिससे फसलों का नुकसान कम से कम होता  था । वर्तमान आधुनिक मौसम विज्ञान दस पाँच दिन पहले लग पाता है पूर्वानुमान !वो भी कितना एक्यूरेट होता है इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि देश के प्रधानमंत्री के बनारस जाने के लिए करोड़ों रूपए लगाकर आयोजित किए गए दो बड़े कार्यक्रम केवल मौसम के कारण ही सन 2015 मैं कैंसिल करने पड़े थे जिन्हें करोड़ों रूपए खर्च करके संयोजित किया गया था !
     अब आप स्वयं कल्पना कीजिए जो मौसम भविष्य देश के प्रधानमन्त्री के एक आयोजन में मदद नहीं कर सका वो देश के किसानों के किस काम आएगा !किसानों को तो महीनों पहले फसलों के बोने आदि का चयन करना होता है उसके लिए कितना कारगर है ये मौसम विभाग  स्वयं सोचिए !किंतु इतने पर भी उस मौसम विभाग को संचालित करने के लिए सरकार करोड़ों अरबों रूपए खर्च करती है किंतु "राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान" के तहत हम जिस मौसम सम्बन्धी विधा के पूर्वानुमान पर रिसर्च कर रहे हैं यदि वो आंशिक मदद करने में भी सफल होती है तो मैं सरकार से सहयोग की अपेक्षा करता हूँ !
भूकंप विज्ञान -     
 इसी प्रकार भूकंप विज्ञान विभाग में हमने सूचना के अधिकार के तहत पूछा कि पिछले दस वर्षों में भूकंप का पूर्वानुमान लगाने में आप कितने कदम आगे बढ़ पाए  हैं किंतु पता लगा कि दस वर्ष की तो छोड़िए अभी तक भूकंप संबंधी पूर्वानुमान लगाने की दिशा  में कोई ख़ास प्रगति नहीं हो पाई है । 
   यदि ये बात सच है कि करोड़ों अरबों रूपए लगाकर हर भूकंप आने के बाद यह विभाग केवल इतना बताने के लिए ही  है क्या ?" जमीन के अंदर की प्लेटों वाली बात दोहरा दी जाती है ,डेंजर जोन  गिना दिए जाते हैं और अभी आफ्टर शॉक्स आते रहेंगे इसकी सूचना दे दी जाती है।" 
  यदि भूकंप संबंधी पूर्वानुमान लगाने में यदि आधुनिक विज्ञान अभी तक सक्षम नहीं है केवल इतना बताने के लिए सरकार इस मंत्रालय पर यदि इतना खर्च करती है फिर भी भूकम्प के पूर्वानुमान की दिशा में यदि कोई विशेष जानकारी हाथ लगी ही नहीं तो भूकंप मंत्रालय और भूकम्प विभाग पर खर्च होने वाली अकूत संपत्ति में से देश हित  में "राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान"का सहयोग भी क्यों न किया जाए प्राचीन विज्ञान के द्वारा भूकंप सम्बन्धी विधा पर रिसर्च कर रहे हैं यदि इससे भूकंप का पूर्वानुमान लगाने  की दिशा में सहयोग मिलने की आंशिक सम्भावना भी दिखती है तो हम सरकार से अपेक्षा करते हैं कि हमारा सहयोग किया जाना चाहिए !
   चिकित्सा विज्ञान- 
     बीमारियाँ  तीन प्रकार से होती हैं उनमें कुछ तुरंत के किए हुए कर्मों से होती हैं जैसे सर्दी लगेगी तो जुकाम होगा ही, छत से कूदेंगे तो चोट लगेगी ही इसके लिए तो चिकित्साविज्ञान के पास पर्याप्त औषधियाँ  हैं किंतु इसमें ज्योतिष की भूमिका 25 प्रतिशत होती है क्योंकि सर्दी लगने से हर किसी को तो जुकाम नहीं हो जाता है और ऊँचाई से गिरने या एक्सीडेंट होने पर या भूकंप आदि आने पर कुछ लोग उन परिस्थितियों में बिल्कुल बाल बाल बच जाते हैं उन्हें खरोंच तक नहीं लगती है जिन परिस्थितियों में सुरक्षित बच पाना चिकित्सकीय दृष्टि से कतई संभव नहीं होता है ऐसी घटनाओं में बचे हुए लोगों के बचने के कारण पर रिसर्च किया जा सकता है !
   दूसरे प्रकार की बीमारियाँ वो हैं जो इसी जन्म में किए हुए पुराने कर्मों के कारण होती हैं ऐसी बीमारियाँ कोई कर्म प्रतिकूल करने पर तुरंत न होकर बाद में होती हैं जैसे चीनी अधिक खाते रहने से शुगर होती है  बचपन से अधिक खाते रहने या ऊट पटांग आहार व्यवहार शराब आदि नशा सेवन से इसी जन्म में कालांतर में बीमारियाँ होती हैं किंतु ऐसा करने वाले सभी लोगों को तो नहीं होती हैं ऐसी परिस्थितियों में किसको हो सकती हैं किसको नहीं और हो सकती हैं तो कब और किस वर्ष में इसका पूर्वानुमान लगाने में ज्योतिष की बड़ी भूमिका होती है और ऐसी बीमारियाँ होने के बाद औषधियों से इसमें अधिक से अधिक पचास प्रतिशत ही लाभ हो पाता है ।  
   तीसरे प्रकार की वो बीमारियाँ होती हैं जो अपने द्वारा किए गए पिछले जन्म के कर्मों के कारण ही होती हैं जैसे पिछले जन्म में मैंने सर्पों को मारा है तो इस जन्म में सर्प काटेगा और यदि सर्प जागृत आदि हुआ तो उसके शाप के कारण इस जन्म में संतान नहीं होती है कोई बड़ी बीमारी लग जाती है ऐसे ही और तमाम प्रकार की पीड़ाएँ भोगनी पड़ती हैं ऐसी ही अन्य कर्मों से जुड़ी तमाम पीड़ाएँ होती हैं जिनमें ज्योतिष की भूमिका 75  प्रतिशत होती है और चिकित्सा विज्ञान 25 प्रतिशत में समिट कर बेबस होता है ऐसी परिस्थितियों में औषधियों की भूमिका केवल 25 प्रतिशत रह जाती है वो भी काम चलाऊ !
     ऐसी बीमारियों के होने से पहले पूर्वानुमान यदि ठीक ढंग से लगा लिया जाए तो शुरुआत से ही आचार व्यवहार में संयम करके ऐसी परिस्थितियाँ पैदा होने से काफी हद तक बचा जा सकता है इस विधा पर रिसर्च की जा  सकती है ज्योतिष के द्वारा बचपन में ही यदि इसका पूर्वानुमान लगा लिया जाए तो इनसे बचने के लिए बचपन से ही भगवान शिव की आराधना एवं सर्प पूजा आदि करके भगवान की कृपा से भवितव्यता पर  एक सीमा तक लगाम लगाई जा सकती है।ऐसी परिस्थितियोँ में ज्योतिष के द्वारा इन परिस्थितियों पर रिसर्च क्यों न की जाए !
    आत्मज रोग -ऐसी परिस्थितियों में पूर्व जन्मों के कर्मों के प्रभाव से व्यक्ति को मुख से  लेकर शरीर में श्वेतकुष्ठ जैसी कहीं कोई विकृति हो जाए जिससे  शरीर में कोई दर्द तो नहीं होता है किंतु ऐसे रोगों में समाज का दृष्टिकोण बदलने का मानसिक दुःख तो होता ही है । ये आत्मज रोग होते हैं इन पर रिसर्च होनी चाहिए । 
      रोग योग -कुछ ऐसे समय भी होते हैं जिनमें यदि कोई सुई भी चुभ जाए तो वो दिनोंदिन बढ़ते बढ़ते बहुत भयानक रूप ले लेती है ऐसे कोई नई  बीमारी होने पर भी ऐसा ही समझा जाना चाहिए ऐसे समयों में प्रारम्भ हुए रोगों पर रिसर्च होनी चाहिए क्योंकि शुरुआत में ही यदि ऐसी बीमारियों की चिकित्सा प्रारम्भ हो जाए तो बहुत हद तक नियंत्रण किया जा सकता है । 

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