ज्योतिष के नाम पर चल रही लप्फाजी ने सिद्ध किया ज्योतिष को अंध विश्वास !

    ज्योतिष जैसे अत्यंत प्राचीन विज्ञान की प्रतिष्ठा आज दाँव पर लगी है वो भी उनके कारण जिनका ज्योतिष से कोई सम्बन्ध ही नहीं है आखिर क्यों खिलवाड़ कर रहे हैं ऐसे लोग !

       अपने को विश्व का एकमात्र विद्वान ज्योतिषी सिद्ध करने में लगे लोग आखिर क्यों बोलते हैं इतना झूठ !बात बात में ज्योतिष जैसे कठिन विषय में रिसर्च करने का दावा ठोकते हैं आखिर किस आधार पर !वो भी वो लोग जिनका ज्योतिष से कोई सम्बन्ध ही नहीं होता है वो ज्योतिष जैसे पवित्र शास्त्र की बेइज्जती करवाते घूम रहे हैं आखिर ये अधिकार उन्हें किसने दिया है यदि वो ज्योतिष में इतने ही विद्वान हैं तो किसी प्रमाणित संस्कृत विश्व विद्यालय से ज्योतिषाचार्य अर्थात ज्योतिष सब्जेक्ट में एम.ए. जैसी डिग्री क्यों नहीं लेकर बैठते हैं जिससे समाज का विश्वास शास्त्र के प्रति मजबूत हो और बड़े पैमाने पर चल रही ज्योतिषीय धोखा धड़ी  बंद हो !इससे ज्योतिष जैसे प्राच्य विज्ञान की रक्षा हो सके !

      आज बनावटी ज्योतिषी लोग बिना पढ़े लिखे ही अपने को ज्योतिष का प्रकांड विद्वान बताने की होड़ में क्या कुछ नाटक नौटंकी करते नहीं घूम रहे हैं किसी नेता अभिनेता जैसे प्रसिद्ध पुरुष के साथ हाथ देखते हुए या उपाय समझाते हुए फोटो खिंचाकर रख लेते हैं पैसे देकर टी.वी. में घुस जाते हैं भाड़े के झुट्ठे या झुट्ठियों से अपने को गुरू, ज्योतिषगुरु,ज्योतिष जगद्गुरू,ज्योतिष ब्रह्मांडगुरू आदि और भी बहुत कुछ महिमा गायन करवाते हैं किन्तु ज्योतिष पढ़ नहीं पाए बिचारे इसका उन्हें कोई अफसोस नहीं होता है !ऐसे लोग बिना पढ़े लिखे ही ज्योतिषी कहलाने के शौकीन होने के कारण ये पढ़ने लिखने के अलावा बाकी सारे ड्रामे कर  लेते हैं ऐसे  लोग सौ दो सौ रूपए में कुछ पीतल के मेडल खरीद लाते हैं और किसी प्रसिद्ध नेता खूँटा को पकड़ कर उसके हाथ से ले दे लेते हैं। सबको उसकी फोटो दिखा दिखा कर अपने को गोल्ड मेडलिस्ट कहने लगते हैं इसी प्रकार से कुछ लोग अपने को ज्योतिषशिरोमणि, ज्योतिषगुरु, ज्योतिष मार्तण्ड,ज्योतिष सम्राट आदि अनेकों उपाधियाँ अपने नाम के साथ लगा लगाकर अपने को ज्योतिषी कहने लगते हैं ये सारी नाटक नौटंकी कर लेते हैं किंतु बेचारों की पढ़ाई करके ज्योतिषाचार्य करने की हिम्मत नहीं पड़ती है ऐसे लोग बात बात में कहते हैं कि ये ज्योतिष में हमारा रिसर्च है !बंधुओ !ये लोग ज्योतिष पढ़ते नहीं ज्योतिषी होते नहीं तो रिसर्च किस बात की !रिसर्च तो वो न करेगा जो पढ़ेगा !वैसे भी यदि इन्होंने ज्योतिष पढ़ी ही होती तो उसकी एक मात्र डिग्री 'ज्योतिषाचार्य' उनके पास होती फिर इसके अलावा इतने सारे नाटक नौटंकी क्यों करने पड़ते  !

   इस विषय में कुछ लोग तर्क देते हैं कि पुराने जवाने में तो लोगों के लिए तो डिग्रियों जैसी कोई व्यवस्था नहीं थी तो क्या वे विद्वान नहीं होते  थे ?इसविषय में केवल इतना ही कहा जा सकता है कि उस युग में शास्त्रीय विषयों में योग्यता की पहचान डिग्रियों से नहीं अपितु शास्त्रार्थ से होती थी इसलिए वो लोग उस युग में उस परंपरा का पालन करते थे यदि डिग्रियों जैसी भी परीक्षा की कोई व्यवस्था होती तो उसका पालन करने में भी वे लोग  पीछे नहीं हटते !
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