ग्रहों के उपायों के नाम पर वेद मंत्रों के जप की जगह कैसे कैसे पाखंड करवाए जाते हैं !
ग्रह शांति के लिए बताए जाते हैं कैसे कैसे उपाय!
ज्योतिष की जिन किताबों का ज्योतिष के विश्व
विद्यालयीय स्लेबस में कहीं कोई उल्लेख नहीं है ऐसी कोई किताब है भी या
नहीं किन्तु कुछ लोगों ने कलरों पर किताबें लिखी या लिखाई हैं जैसे लाल
किताब ऐसे ही लाल ,नीली ,पीली ,हरी ,गुलाबी आदि हर कलर में किताबें लोगों ने अपने अपने मन से एक एक किताब
लिखकर रख ली है ।इसका सबसे बड़ा लाभ यह है कि कुछ पढ़ना लिखना नहीं पड़ता है
ज्योतिष के नाम पर जो मन आवे सो बोलो या बको जब प्रमाण देने की बात आवे तो तथाकथित अपनी अपनी किताबों का नाम बता दो बचाव हो जाएगा।
इसी प्रकार उपायों के नाम पर
आधारहीन मनगढ़न्त बातों की बकवास होती है। कुत्ते, चींटी, चमगादड़, उल्लू,
बटेर, मुर्गी, मछली, हल्दी, सिन्दूर, नींबू, मिर्ची, काले उड़द, तिल, कोयला,
घास गोबर, नग, नगीने, यन्त्र-तन्त्र-ताबीजों आदि को तथाकथित लोग खाना,
पहनना, ओढ़ना, बिछाना, जेब में रखने आदि बातों के लिए प्रेरित किया करते
हैं। ऐसी थोथी बातों का शास्त्र में न तो कहीं आधार है और न ही प्रमाण?
मानने वाले सोचते हैं कि आखिर इन बातों को बताने वाले का स्वार्थ क्या है
और कर लेने में हमारा नुकसान ही क्या है?
क्या आपने कभी विचार किया कि आपके पूर्व जन्म के कर्म ही भाग्य का रूप लेते
हैं। वही कर्म अच्छे होते हैं तो सौभाग्य और बुरे होते हैं तो दुर्भाग्य
के रूप में इस जन्म में भोगने पड़ते हैं। पूर्व जन्म के अच्छे बुरे कर्मों
की सूचना देने का आधार ग्रह और ज्योतिष है। जिस ग्रह से सम्बन्धित अपराध
हम पिछले जन्म करते हैं इस जन्म में वही ग्रह प्रतिकूल हो जाता है। इसी
प्रकार अच्छा करने से ग्रह अनुकूल होते हैं। बुरे फल की सूचना देने वाले
ग्रहों को शान्त करने के लिए वेदों में मन्त्र लिखे होते हैं जिन्हें जपने
से संकट का वेग कम हो जाता है किन्तु नष्ट नहीं होता अपितु लम्बे समय तक
चलता है। क्योंकि गीता में लिखा है ‘‘अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुभम्’’ अपने किए हुए शुभाशुभ कर्म अवश्य भोगने पड़ते हैं।
अब आप स्वयं सोचिए कौवे-कुत्ते, चींटी-चमगादड़ गोबर कोयला, आदि आपका भाग्य कैसे सँभाल सकते हैं?
जहाँ
तक दान की बात है दान तो शास्त्र सम्मत है। दान पाने वाले का लाभ होता है
जिसको लाभ होता है वह आशीर्वाद देता है। उससे पुण्य का निर्माण होता है। जो
आड़े-तिरछे समय में रक्षा कर लेता है। कई बार एक गाड़ी का एक्सीडेंट होता
है। कुछ लोग बच जाते हैं कुछ मर जाते हैं। यह पुण्यों का ही खेल है ।
क्योंकि जहाँ आपका वश नहीं चलता वहाँ भी पुण्यों की पहुँच होती है।कई बार
लोग कोढियों या विकलांगों को जो धन देते हैं वह दान न होकर सहयोग होता है
।दान हमेशा अपने से श्रेष्ठ एवं सुखी को दिया जाता है।
जहाँ तक बात नग-नगीनों की है। यद्यपि ज्योतिष के ग्रन्थों में ग्रहों की
मणियों का वर्णन मिलता है, किन्तु इन्हें धारण करने से भाग्य लाभ में क्या
सहयोग मिलता है?यह स्पष्ट नहीं है। वेद में इस विषय
में कोई स्पष्ट संकेत नहीं मिलता। इतना अवश्य है कि आयुर्वेद स्वीकार करता
है कि जिस रोग के लिए जो औषधि आयुर्वेद में कही गई है उसे पहनने से,
उसे दवा के रूप में खाने से एवं उसकी भस्मादि का हवन करने से रोगों से
मुक्ति मिलती है। कम से कम भाग्य की दृष्टि से तो इतना उतना स्पष्ट प्रभाव
नहीं दीख पड़ता जितना मन्त्रों का है। मन्त्र जप तथा देवता की आराधना का
अत्यन्त फल होता है। यह सर्व विदित एवं स्पष्ट है। वैदिक विधा में तो
ग्रहों को प्रसन्न करने के लिए उनका वेदमंत्र जपना ही एकमात्र विकल्प है।
उपर्युक्त
ऐसे लोगों में भ्रम का कारण समाज में एक बड़ा वर्ग है जिसका कोई सदाचरण
नहीं मिलता, यह वर्ग अध्ययन, साधना आदि योग्यता से विहीन है। इनमें केवल
नकल करने की कला होती है। ऐसे कलाकार ज्योतिष वेत्ताओं की तरह अपना रंग रूप
सजा कर उन्हीं की देखी सुनी कही भाषा तथा वेष भूषा की नकल करने लगे हैं।
ऐसे लोगों ने न कुछ पढ़ा है न किसी के शिष्य हैं न ज्योतिष की कोई किताब
देखी है। उसका भी कारण है कि ज्योतिष ग्रन्थ संस्कृत भाषा में हैं वो
इन्हें आती नहीं है। ये लोग बात-बात में कहते हैं कि मैंने ज्योतिष में
रिसर्च की है। जो पढ़ा ही नहीं वो रिसर्च क्या करेगा खाक? कुंडली बनाना नहीं
सीखा इसलिए कम्प्यूटर रख लिया। वेद मन्त्र पढ़ना नहीं आता इसलिए कुत्ते
पूजना अर्थात इनके उपाय सिखाते हैं। यही पाखण्डियों की रिसर्च है।
बड़े भाग्य से मिले सुर दुर्लभ
मानव जीवन का भाग्य कौआ, कुत्ता, चीटी-चमगादड़ों में ढूँढ़ना सिखा रहे हैं।
ये कागजी शेर धन बल से विज्ञापनों में छाए हुए हैं। समाज इनसे छला जा रहा
है ऐसे कलाकारों और ज्योतिष के विद्वानों में उतना ही अन्तर है जितना चमड़ा
सिलने वाले मोची और हार्ट सर्जन में है। काटना सिलना तो दोनों जानते हैं
किन्तु प्राण रक्षा तो कुशल सर्जन की हर सकता है मोची नहीं। सर्जन और मोची
का अन्तर तो समाज को स्वयं ही करना होगा।
ऐसे वायरस डेंगू मच्छर की तरह
हर क्षेत्र में सक्रिय हैं। डेंगू मच्छर मैंने इसलिए कहा जैसे ये मच्छर साफ
पानी में ही पाए जाते हैं। उसी प्रकार ऐसे पाखण्डी लोग धार्मिक गतिविधियों
के आस-पास ही पाए जाते हैं। जैसे गंदगी के मच्छरों की अपेक्षा डेंगू मच्छर
अधिक घातक होते हैं। उसी प्रकार आतंकवाद आदि अपराधों से जुड़े लोगों की
अपेक्षा धार्मिक पाखण्डी अधिक घातक होते हैं। ज्योतिष एवं वास्तु संबंधी सभी सेवाओं के लिए कीजिए संपर्क -
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