भूकंपों के विषय में क्या कहता है आधुनिक विज्ञान और प्राचीन विज्ञान ! ?जानिए आप भी !

  भूकंप के विषय में क्यों कोई खोज नहीं कर पाए हैं वैज्ञानिक ?जानिए आप भी !

मंगलवार की शाम नेपाल से आया था जानलेवा तूफान
पटना। हिन्दुस्तान ब्यूरो
First Published: 22-04-15 11:34 PM
Last Updated: 22-04-15 11:34 PM
हर साल बिहार में बाढ़ से होने वाली तबाही का कारण बनने वाला नेपाल इस बार मानसून से पहले ही तूफानी तबाही दे गया। मंगलवार की शाम को नेपाल में कम दबाव के क्षेत्र के कारण उठे तूफान ने तीन घंटे के अंदर ही बिहार में बड़ी तबाही मचाई। इस तूफान में 40 लोग बेमौत मारे गए। बड़ी संख्या में कच्चे-पक्के मकान और झोपड़ियों के गिरने की सूचना है। फसलें भी बर्बाद हुई हैं।
मौसम विज्ञान केंद्र के मुताबिक नेपाल से चली आंधी (तूफान) शाम 7.30 बजे सीतामढ़ी के रास्ते बिहार में आई। महज दो घंटे 50 मिनट के अंदर ही इस आंधी ने आधा दर्जन से अधिक जिलों में तबाही मचा दी। केंद्र के निदेशक आरके गिरि का कहना है कि नेपाल में कम दबाव का क्षेत्र बना होने के कारण आंधी आई। हवा की रफ्तार 65 से 70 किमी. प्रति घंटे रही। यह सिस्टम बहुत ही कम समय में बना और उठ गया। 


18/04/2014यूपी में तूफान और आंधी से 18 लोगों की मौत
 
    विज्ञान से भूकंपों का पूर्वानुमान लगाना असंभव !भूकंपों से होने वाली त्रासदी को रोक पाना असंभव !यही कारण है कि आधुनिक विचार धारा वाले वर्तमान वैज्ञानिक  शास्त्रीय विज्ञान को अंध विश्वास तो बहुत जल्दी कहने लगते हैं किंतु भूकंपों के विषय में कुछ प्रमाणित जानकारी दे सकने में वे स्वयं सक्षम नहीं हैं । इसीलिए जब जब भूकम्प आता है तब तब टीवी चैनलों पर मीडिया के लोग इन्हें ही लेकर बैठ जाते हैं ये लोग हर बार वही पुरानी प्लेटें खिसकने वाली घिसी पिटी बातें लेकर बैठ जाते हैं और करने लगते हैं रस्म अदायगी भर !वर्षों से वही प्लेटों वाली चर्चा होती है दो  चार दिन फिर भूल जाते हैं लोग !अगर ये विषय प्लेटों पर ही आधारित होता तो उस पर रिसर्च करके सच्चाई रखी जा सकती थी समाज के सामने !किन्तु ऐसा नहीं हो सका आखिर क्यों ?केवल जमीन के अंदर की प्लेटों को ही ये भूकंपों के लिए जिम्मेदार बताने लगते हैं !  
हमारा सनातन शास्त्रीय विज्ञान केवल प्लेटें ही नहीं गिनता है अपितु हमें समझाते हुए कहता है कि भूकंप आने के चार प्रमुख कारण होते हैं -
 पहला कारण -जल में रहने वाले बड़े बड़े प्राणियों के धक्के से आता है भूकम्प !और धक्का तो कभी भी लग सकता है इसलिए इसका पूर्वानुमान कैसे लगाया जाए ! 
       दूसराकारण -पृथ्वी के भार से थके हुए दिग्गज जब विश्राम करने लगते हैं तब आता है भूकंप !इसलिए विश्राम तो वो कभी भी कर सकते हैं इसलिए इसका पूर्वानुमान कैसे लगाया जाए !
      तीसराकारण - वायु के एक दूसरे से टकराकर पृथ्वी पर गिरने से शब्द के साथ आता है भूकंप इसमें ध्वनि होती है इसलिए इसका पूर्वानुमान कैसे लगाया जाए !
       चौथाकारण - लोगों के अधर्म के कारण आता है भूकंप !अर्थात जब जितना पाप बढ़ता है तब आते हैं उतने बड़े भूकंप ! चूँकि पुण्य और पाप मन की वास्तु है इसका अनुमान कोई और कैसे लगा सकता है !

 इसी प्रकार से एक और कारण  भी है भूकंप आने का !
        एकबार देव सभा में इंद्र ने पृथ्वी से कहा था कि कहा गया था कि वायु अग्नि इंद्र और वरुण समय समय पर तुम्हें कँपाते रहेंगे !अर्थात इनके कारण भूकंप आते रहेँगे !इनका समय निश्चित करते हुए उन्होंने कहा कि सूर्योदय से दिन बारह बजे तक आने वाला भूकंप वायु देवता के द्वारा माना जाना चाहिए इसकी सूचना वायु देवता एक सप्ताह पहले प्राणियों को दे देंगे !सूचना के संकेत इस प्रकार के होंगे -एक सप्ताह पहले से आकाश में धुआँ धुँआ सा दिखाई पड़ने लगता है ,पृथ्वी से धूल उड़ाती हुई वृक्षों को तोड़ती तहस नहस करती हुई हवा अर्थात आँधी चलती है सूर्य की किरणें मंद हो जाती हैं आनाज,जल और औषधियों का नाश होता है ,व्यापार करने वालों के शरीरों में सूजन होने लगती है,दमा होने लगता है,उन्माद रोग,ज्वर रोग तथा खाँसी से उत्पन्न पीड़ा होने लगती है । 
    ऐसे भूकंप आने के दिन से  तीसरे ,चौथे,सातवें,पंद्रहवें ,तीसवें  और पैंतालीसवें दिन यदि फिर भूकंप आ जाता है जिसकी सम्भावनाएँ होती हैं तो राजा का नाश करता है अर्थात देश के शासक के लिए बहुत हानि कर होता है जिसकी अवधि 180 दिनों की होती है ।
      यह भूकम्प  हमेंशा दिन के पहले पहर में अर्थात लगभग दोपहर 12 बजे से पहले पहले आता है और यही भूकंप सबसे अधिक क्षेत्र को प्रभावित करता है शेष भूकंप इससे कम क्षेत्र को कवर करते हैं। इस भूकंप का स्थान भी निश्चित होता है ये भूकंप मगध अर्थात पटना गया नेपाल से बियत नाम तक का क्षेत्र  ,कुरुक्षेत्र,सौराष्ट्र ,दशार्ण अर्थात मध्य प्रदेश के विदिशा के आसपास का क्षेत्र और मत्स्य देश में विशेष प्रभाव डालता है । मत्स्य देश का केन्द्र आधुनिक जयपुर नगर था। इसकी राजधानी विराटनगर थी।इस प्रकार से ये संपूर्ण क्षेत्र इस भूकंप से प्रभावित होता है ।

    भूकंपों की दुर्घटानाएँ घटने पर घड़ियाली आँसू बहाने वाली ,राहत के लिए उतावलापन दिखाने वाली कर्तव्य भ्रष्ट सरकारें वास्तव में कितनी गैर जिम्मेदार होती हैं कि इनकी राहत भावनाओं पर भरोसा कर पाना अत्यंत कठिन होता है !पाँच पाँच इंच की चौड़ी दीवारों पर लोग चार चार खंड की बिल्डिगें खड़ी कर के उठा देते हैं किराए पर क्या उन्हें रोका  जाना सरकार का कर्तव्य नहीं है जो अपनी ही नहीं अपने पड़ोसियों की भी जिंदगी खतरे में डाले रहते हैं !आखिर क्यों नहीं कराया जा रहा है कड़ाई से भवन नियमों का पालन ! भूकंपों से तवाह हुए शहरों घायलों मृतकों एवं उनके परिजनों के रोने बिलखने के चित्र परोसने वाला बड़ा इंतजामी सा दिखने वाला मीडिया अपने कर्तव्य पालन से बुरी तरह भटका हुआ है ऐसी खबरें दिखाकर वो  सरकारों को कटघरे में क्यों नहीं खड़ा करता है ?   
      

बाबा केदार नाथ हों या पशुपति नाथ वहाँ  इतनी तवाही क्यों ?जहाँ आस पास सबकुछ तवाह हो जाता है केवल मंदिर बच जाता है आखिर क्यों ?

     बंधुओ !किसी क्षेत्र में अगर लूट की घटनाएँ सबके घर होने लगें और बीच में केवल एक घर बच जाए जहाँ कुछ न हो इसका मतलब उन लूट की घटनाओं में उस एक घर वाले का हाथ माना जाएगा इसीप्रकार से बाबा केदार नाथ से लेकर पशुपति नाथबाबा के मंदिर के चारों ओर का क्षेत्र तो ध्वस्त हो गया किंतु उनके अपने अपने मंदिर बच गए ! इसका सीधा सा मतलब है कि बाबा की ऐसी ही इच्छा थी किंतु उनकी इच्छा ऐसी थी क्यों इसके लिए हम लोगों को करना होगा आत्म मंथन !आखिर क्यों बदलते जा रहे हैं हम लोग !धर्म कर्म को अंध विश्वास मानने लगे हैं पढ़े लिखे आधुनिक लोग ! आखिर क्यों ?

   साईं जैसे पीरों फकीरों को पूजने के दुष्परिणाम हो सकते  हैं भूकम्प !     आखिर देवता क्यों सहेंगे अपना अपमान !साईं जैसे पीरों फकीरों को देवी देवताओं से ऊपर मानने लगे हैं लोग आखिर क्यों?  लगता है कि ये खबरें अब देवी देवताओं तक पहुँचने लगी हैं इसीलिए भूकंपों ,बाढ़ों,महामारियों  के रूप में वहाँ से बार बार आ रहे हैं मिस्डकाल !आखिर क्यों नहीं सुधर रहे हैं हम लोग ?


   कभी केदार नाथ बाबा का क्रोध और कभी पशुपतिनाथ बाबा का ! आखिर ये संकेत समझकर हमें सुधरना क्यों नहीं चाहिए ! 
     धर्म के मामले में देवी देवताओं को भूलाने के लिए साईं जैसे पीरों फकीरों को भगवान बताने का दुष्परिणाम भी हो सकती हैं प्राकृतिक आपदाएँ ! आखिर कितना अपमान सहें देवी देवता भी ?जब हम बिना दंड के सुधरने को तैयार ही नहीं हैं तो ईश्वर को इशारा तो करना ही पड़ेगा भले ही वो भूकंप के रूप में ही क्यों न हो !   
    बंधुओ ! भागवत कथाओं के नाम पर आज नाच गाना हो रहा है ! मासिक अशुद्धि में भी लड़कियाँ महिलाएँ आदि भागवत बाँचते घूम रही हैं ! एक से एक लवलहे लड़के लड़कियाँ भागवत को भोगवत के रूप में परोसने में आमादा हैं इसी प्रकार से सत्संग शिविरों में कैसे कैसे उपलब्ध कराई जा रही हैं सेक्स सुविधाएँ ! जिस बाबा के आश्रम में छापा पड़ता है वहाँ से और कुछ निकले न निकले किंतु अश्लील साहित्य अर्थात सेक्स सामग्री जरूर मिलते देखी जाती है ! सूखा ,बाढ़ ,भूकम्प ,महामारी या  और भी सभी प्रकार की महामारी आदि हमारे ऐसे ही धर्म विरोधी आचरणों के साइड इफेक्ट अर्थात दुष्परिणाम ही हैं जो तमाम आपदाओं के रूप में सामने आ रहे हैं !
     धर्म के नाम पर आज पाखंडियों ने अपने को आत्मज्ञानी ,योगी,सिद्ध आदि बता बता कर अपनी पूजा करवानी शुरू कर दी जिससे अनादि काल से चली आ रही यज्ञों की परंपरा धीरे धीरे बंद होने की कगार पर हैं पाखंडी पुज रहे हैं जो भूकंप ,सूखा और बाढ़ जैसी दुर्घटनाएँ बेचारे कैसे रोक सकते हैं और जो देवता  रोकते थे उनके यज्ञ बंद कर दिए गए ! यज्ञ बंद होने से अब जो बादल बनते हैं वो डीजल पेट्रोल के धुएँ से बनते हैं उन पर देवताओं का कंट्रोल नहीं होता है इसीलिए ऐसे निरंकुश बादल बड़ी निर्दयता पूर्वक बरसते हैं क्योंकि ये तो जड़ हैं इनके पीछे किसी देवता का नियंत्रण तो होता नहीं है इसीलिए ये समुद्र से भर भर कर उड़ेला करते हैं जिससे कभी भी कहीं भी आ जाती है बाढ़ और गाँव के गाँव और शहर के शहर बहा ले चली जाती है इसी प्रकार से कहीं कहीं  सूखा  पड़ता रहता है भूकंप आते रहते हैं ! और भी तरह तरह के प्राकृतिक विप्लव देखने को मिलते हैं !     योगी हों या योगगुरु क्यों नहीं कर पाते हैं वे समाज की मदद ?
       भूकंप जैसी आपदाओं से वे यदि रक्षा नहीं कर सकते थे तो क्या इसकी पूर्व सूचना भी नहीं दे सकते थे ? हमारे यहाँ जो भी असली योगी होते रहे हैं उन्होंने समय समय पर समाज की मदद की है हमारी संस्कृति में ऐसे प्रमाण मिलते हैं कि तपस्वी लोग अपने योग बल से त्रिकाल में घटित होने वाली घटनाओं को न केवल जान लिया करते थे अपितु उन्हें एक सीमा तक टाल सकने की क्षमा भी रखते थे !
  बड़ी बड़ी बातें करने एवं धर्म के लिए लड़ते मरते रहने वाले बाबा,पंडित,पादरी मुल्ला मौलवी जैसे सभी धर्मों के शीर्षों पर बैठे लोग बड़ी बड़ी प्राकृतिक आपदाओं पर अचानक मौन क्यों हो जाते हैं यदि उनके धर्मों में कोई शक्ति सामर्थ्य है और उन लोगों ने संयमी जीवन जीते हुए अपनी तपस्या के द्वारा उस शक्ति सामर्थ्य को अर्जित किया है तो उन्हें ऐसी प्राकृतिक आपदाओं और महामारियों के समय या बड़ी आतंकवादी घटनाओं के   के घटित होने से पूर्व उन्हें इनका आभाष हो जाना चाहिए जिसका उचित संकेत उन्हें सरकारों को देना चाहिए ताकि सरकारें अपने कर्तव्य का पालन करते हुए यथा संभव जनधन की सुरक्षा के लिए उचित प्रबंध कर सकें !धर्मों के शीर्ष लोगों को आखिर यह जिम्मेदारी क्यों नहीं सँभालनी चाहिए !अपने हिस्से का योगदान उन्हें करना चाहिए !वो जिस धर्म से जुड़े हैं उसका विस्तार करने के लिए भी ये आवश्यक है कि वो कुछ ऐसा करें जिससे समाज का विश्वास उनके बताए हुए ईश्वर पर एवं साथ ही साथ उन पर भी बने और बढ़े !
     हमारा इतिहास साक्षी है कि जब राजालोग भी किंकर्तव्यविमूढ़ होकर दिग्भ्रान्त हो जाया करते थे उस समय हमारे चरित्रवान तपस्वी महापुरुषों के द्वारा अपने तपोबल से अनेकों बार मानवता की रक्षा में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया गया है जिसके अनेकों उदाहरण हमारे धर्म ग्रंथों में मिलते हैं तभी तो राजा लोग उन्हें इतना सम्मान देते थे !इसलिए हमारी यह जिम्मेदारी आज भी  बनती है कि हमअपने तपोबल से ऐसे उदाहरण उपस्थित करें ताकि हमारे प्राच्य विज्ञान को अंध विश्वास बताने वालों की आँखें खोली जा सकें और मानवता की रक्षा भी हो सके अन्यथा धर्म कर्म निष्प्रयोजन होता चला जाएगा ! और हमारी इन्हीं कमजोरियों के कारण आजकल लोग धर्म कर्म से विमुख होकर साईं टाइप के कल्पित अनेकों पीरों फकीरों को अपना देवी देवता बनाने और बताने लगे हैं ।
     कहाँ योगसिद्ध त्रिकालज्ञ तपस्वी महापुरुषों के योगबल के अनेकों सक्षम उदाहरणों के आख्यान और कहाँ कहाँ केवल पेट हिलाने हाथ पैर तोड़ने मरोड़ने वाले वाले स्वयंभू लोगों को योगी या योगगुरु मान बैठना !क्या ठीक है और यदि हाँ तो योगसिद्ध लोगों को तो भूत भविष्य वर्तमान  की सारी घटनाएँ  दर्पण की तरह दिखाई पड़ जाती हैं ये हमारी दिव्य सामर्थ्य है और ऐसी ही कथा कहानियों के उदाहरण हम समाज के सामने बताया सुनाया भी करते हैं और जब आचरण की बारी आती है तो हम एक भी उदाहरण नहीं प्रस्तुत कर पाते हैं और जिन्हें हम योगी या योग गुरु कहते हैं वो दूसरों की कमियाँ तो खोज लाते हैं उनपर भाषण भी करते हैं उन लोगों की निंदा भी करते हैं किंतु क्या कभी अपने अंदर भी झाँक कर देखते होंगे ऐसे लोग कि जो हम हैं नहीं वो बने आखिर क्यों घूम रहे हैं क्यों धूल झोंक रहे हैं लोगों की आँखों में !आखिर योग सिद्ध तपस्वी महापुरुषों ने  अतीत में कितनी बड़ी तपस्या करके योग बल से जो गौरव बनाया था उसे यदि हम बढ़ा नहीं सकते हैं तो बचा तो रहने ही देना चाहिए !
     क्या ये योग जैसी दिव्य विद्या का अवमूल्यन नहीं है क्या इसके दोषी हम लोग स्वयं नहीं हैं !आखिर जिस योगी तपस्वी साधू संत के आचरणों का हमारे शास्त्र विज्ञान के उदाहरणों से मेल नहीं खाता है उसे हम योगी ,साधू संत, भगवंत,ज्योतिषी,पंडित पुजारी आदि कैसे और क्यों कहने लगते हैं !
     बंधुओ ! वास्तव में धर्म कर्म के मामले में हमारा आज इतना पतन होता जा रहा है कि सच में हमें हमसे घृणा होने लगी है !आपने सुना होगा कि बादलों के भी देवता होते हैं प्राचीन काल में उनकी पूजा के लिए यज्ञ किए जाते थे जिससे खुश होकर उचित मात्र में वो जल बरसाया करते थे बाढ़ और सूखा जैसी दुर्घटनाएँ बहुत काम देखने सुनने को मिलती थीं उन्हीं यज्ञों के धुएँ से बादल बनते थे ऐसे बादलों से बर्षा होती थी उस वर्षा से जो अनाज होता था उस आनाज से प्राणियों के शरीर पुष्ट होते थे बुढ़ापे तक निरोग रहते थे आदि आदि !
http://www.jagran.com/uttar-pradesh/lucknow-city-prone-of-earthquake-still-remains-12356127.html?src=fb

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