मौसमविज्ञान के पूर्वानुमानों का सच क्या यही है कि प्रधानमंत्री के दो दो वाराणसी दौरे रद्द हुए मौसम के कारण !ब्यर्थ में बर्बाद हुए करोड़ों रूपए !
प्रधानमंत्री जी के कार्यक्रम के आयोजन करने में सुना है कि करोड़ों में खर्च आता है और मौसम विभाग के संचालन में भी करोड़ों से कम क्या खर्च होते होंगे !आखिर प्रधानमंत्री जी का कार्यक्रम आयोजित करने से पहले मौसम विभाग के पूर्वानुमान का सहारा क्यों नहीं लिया गया और यदि लिया गया तो चूक कहाँ हुई वो सही सही बता नहीं सके या उनकी भविष्यवाणी गलत हुई !और यदि दो में से कोई भी बात रही हो किंतु ये तो सच है ही कि प्रधानमंत्री के दो दो वाराणसी दौरे रद्द तो मौसम के कारण ही हुए हैं चूक तो किसी एक में हो सकती थी और चूक यदि दोनों में हुई है तो मौसम विभाग का औचित्य ही क्या है ?और यदि मौसम विभाग की इसी प्रकार की भविष्यवाणियों के आधार पर कहा जाता है कि इस वर्ष वर्षा अधिक होगी या कम तो इसका भरोसा किया जाना चाहिए क्या !
बंधुओ ! मैंने भारत सरकार को भी पत्र लिखा था और मौसम विज्ञान विभाग को भी कि भारत के प्राचीन मौसम विज्ञान के आधार पर भविष्य में होने वाली वर्षा संबंधी पूर्वानुमानों का अध्ययन एवं उस पर रिसर्च करने के लिए यदि सरकार सहयोग करे तो आधुनिक मौसम विज्ञान विभाग की अपेक्षा भारत के प्राचीन मौसम विज्ञान का पूर्वानुमान अधिक सटीक हो सकता है और यदि ऐसा हो पाता है तो इसका पूर्वानुमान भी वर्षों पहले लगाया जा सकता है जबकि आधुनिक मौसम विज्ञान की क्षमता ऐसी नहीं है जिससे यह मौसम विभाग वर्षा सम्बन्धी भविष्य बता पाने में पूरी तरह असक्षम एवं अनुपयोगी है ।
भारत
कृषि प्रधान देश है कृषि विकास के लिए वर्षा का पूर्वानुमान बहुत आवश्यक
होता है क्योंकि फसलें उसी हिसाब से उगाई और संरक्षित की जा सकती हैं ।
मार्च अप्रैल में रवि की फसल काट कर किसान लोग अपनी जरूरत भर के लिए आनाज
एवं पशुओं का चारा रख लेते हैं बाक़ी रख रखाव की समस्या एवं धन की आवश्यकता
के कारण बेच लेते हैं उन्हें सहारा होता है कि अगस्त सितम्बर में खरीफ की
फसल आ जाएगी बाक़ी जरूरतें उससे पूरी होंगी !किंतु यदि जुलाई अगस्त में
सूखा हो जाता है या अधिक वर्षा हो जाती है तो उससे फसलें बर्बाद हो जाएँगी
जिससे किसान का परेशान होना स्वाविक है । ऐसी परिस्थिति में किसान को मार्च अप्रैल में ही यदि
पता लग गया होता तो किसान आनाज एवं चारे के लिए रवि की फसल को बचा कर रख
सकता था साथ ही खेतों में उस प्रकार की फसलें बो सकता था जो आगामी जुलाई
अगस्त में अनुमानित वर्षा की संभावना के अनुकूल हों !जबकि जून जुलाई तक
किसान अपना आनाज और पशु चारा तो बेच चुके होते हैं इसलिए तब वर्षा के
पूर्वानुमान का किसानों को उतना लाभ नहीं हो पाता है ।
ऐसी परिस्थिति में मौसम सम्बन्धी अनुमान ज्योतिष के द्वारा महीनों पहले और
कुछ मामलों में तो वर्षों पहले लगाया जा सकता है प्राचीन काल में उसी मौसम
विज्ञान के सहारे कृषि कार्यों का निर्वाह सुगमता पूर्वक किया जाता था !
यदि वर्तमान समय में भी हमारा संस्थान उसी प्राचीन पद्धति के हिसाब से
शास्त्र विधि द्वारा मौसम का पूर्वानुमान लगाकर कृषि कार्यों में सहायक
होना चाहता है जिसमें सरकारी मदद की आवश्यकता है क्या ऐसे विषयों में मदद
करने का कोई प्रावधान है और यदि हाँ तो प्रक्रिया क्या है ?
बंधुओ !इस RTI के जवाब में आया कि यहाँ ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है ।
बंधुओ !इस RTI के जवाब में आया कि यहाँ ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है ।
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