भविष्य का भय ही चिंता है जिसे जितना बड़ा भय उसे उतनी बड़ी चिंता !
जिसके स्वप्नों और परिस्थितियों में जितना बड़ा गैप उसे उतनी बड़ी चिंता !इस गैप को ही तो तनाव खिंचाव चिंता स्ट्रेस आदि कुछ भी कहा जा सकता है । गलत काम करने वालों को, अधिक कर्ज से रिस्क लेकर काम करने वालों को जीवन की आवश्यक आवश्यकताओं की पूर्ति न कर पाने वालों को !किसी न ठीक होने लायक बीमारी वालों को या दवा कराने की सामर्थ्य न होने वालों को भविष्य का भय बहुत अधिक रहता है ऐसे लोगों में मनोरोग होने की प्रबल संभावनाएँ होती हैं ।
जिसका मन नैतिकता, कानून ,सिद्धांत, सदाचार ,कृतज्ञता और ईश्वर पर विश्वास छोड़कर जितनी दूर चला जाता है उतनी ज्यादा गंदगी समेट लाता है ! गंदे काम करके आया कोई संस्कारित बच्चा जैसे अपने माता पिता का सामना करने में डरता है वैसे ही गलत काम करने वाले लोग अपनी आत्मा का सामना करने से डरने और बचने लगते हैं जैसे हम यदि सूर्य के सामने नहीं पड़ेंगे तो सूर्य की किरणे हमारे ऊपर नहीं पड़ेंगी और धूप न लगने से जैसे स्वास रोग, टीवी ,एलर्जी आदि अनेकों बीमारियाँ होने लगती हैं हड्डियाँ कमजोर हो जाती हैं । ठीक इसी प्रकार से आत्मसूर्य का प्रकाश मन पर न पड़ने से मन में होने वाली बीमारियाँ जोर पकड़ने लगती हैं और मन कमजोर होने लगता है । क्योंकि हमारे मन को बल (ताकत) आत्मा से ही मिलता है और आत्मा के सामने न पड़ने के कारण मन को आत्मा का बल नहीं मिल पाता है ऐसे आत्मबल से विहीन लोग हर किसी से डरने लगते हैं हर काम डर डर कर करते हैं । मन उदास रहता है काम करने का उत्साह नहीं रहता इसीलिए काम डरने के कारण काम धीरे धीरे करते हैं और धीरे धीरे काम करने के कारण ही सबसे पहले पेट की पाचन शक्ति समाप्त होने लगती है इसके बाद शरीर बिगड़ने लगता है और धीरे धीरे शरीर निष्क्रिय (जाम) होता चला जाता है यही स्थिति बढ़ते बढ़ते हृदय रोग शुगर रोग जैसी तमाम बड़ी बीमारियाँ पनपने लगती हैं और धीरे धीरे बीमारियों से बीमारियाँ बनने लगती हैं ।बीमारियों का जाल बनता चला जाता है
रग बिना कमजोर हो गया
सकने वाले न हमारे उससे हमारे देता है यही आत्मा ही हमारे आतंरिक जगत का सूर्य है जैसे सूर्य
सूर्य हमें प्रकाश देता है और बिटामिन 'D ' अर्थात शक्ति देता है सूर्य
भविष्य का भय हर किसी को रहता है हर कोई जानना चाहता है कि हमारे जीवन में कल क्या होगा !और यह जानना जरूरी भी है !भविष्य के विषय में ये पता हो कि हम अपने जीवन का विकास करने के किस क्षेत्र में कितना बढ़ सकते हैं तो वो उस सीमा में अपने को समेटने की कोशिश करता है या उससे अधिक जो प्रयास भी करता है उनसे बहुत अधिक आशा नहीं रखता है मिल जाए तो अच्छा और न मिल जाए तो विष तनाव नहीं होता !
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