'वेदांग ज्योतिष'

     मान्यवर,जो ज्योतिष केवल आपके ग्रन्थ से प्रमाणित होती हो मैं मुझे ऐसी किसी किताब से क्या लेना देना क्योंकि मुझे प्राचीन और ऋषि प्रणीत ग्रंथों को पढ़ने की आदत है आधुनिक किसी लेखक का लिखा हुआ कोई ग्रन्थ इस कसौटी पर खरा कैसे उतर सकता है मैं सोलह वर्ष तक काशी में स्वाध्याय करता रहा ,काशी के विद्वान भी मुझे इसी रूप में जानते हैं कि अप्रमाणित एवं अशास्त्रीय बात बोलना अपना स्वाभाव नहीं है इसीलिए ऐसे किसी विषय पर शास्त्रीय वाद विवादों से मेरा भी अच्छा संबंध है चूँकि शास्त्रार्थ में किसी की विजय और पराजय नहीं अपितु विजय हमेंशा शास्त्र की होती है इसी भावना से मान्यवर , सामने बैठ कर बात करने का तो इतनी जल्दी अवसर नहीं मिलता दिखता है और फिर बात पुरानी हो जाएगी इसलिए मेरा निवेदन है कि आप ऋषि प्रणीत ज्योतिष के ग्रंथों को ईरानी ज्योतिष कैसे कह सकते हैं  उसका आधार क्या है आपके पास वो रखिए !क्योंकि इस भ्रम का भंजन हमारे आपके बीच ही हो जाए तो अच्छा है । 
    आपके कथनानुशार वर्णित 'वेदांगज्योतिष' लगध मुनि प्रणीत तो है उनकी प्रमाणिकता पर भी कोई संशय नहीं है किंतु वह ज्योतिषीय आवश्यकताओं की कसौटी पर खरी भी नहीं उतरती है क्योंकि उसका निर्माण ही केवल यज्ञ कर्म में सहायतार्थ हुआ था ,यज्ञ उचित काल और मुहूर्त में किये जाने से ही फलदायक होते हैं। अतः काल-ज्ञान के लिए जिस ज्योतिष का विकास हुआ इसका प्राचीनतम ग्रन्थ लगधमुनि-रचित वेदांग ज्योतिष है किंतु इस प्रसंग में उसे उद्धृत करना ठीक नहीं है क्योंकि उसका कोई सन्दर्भ ही नहीं बनता है और यदि आपको लगता है कि बनता है तो सिद्ध कीजिए !
      महोदय,हम यहाँ यज्ञ कर्म की चर्चा तो कर नहीं रहे हैं फिर उस 'वेदांग ज्योतिष' को यहाँ उद्धृत करके भ्रमित करने की आपको आवश्यकता क्या थी ?दूसरी बात आपके कहने का मतलब तो ये निकला कि यज्ञीय काल गणना से अतिरिक्त  जो ज्योतिष है वो ईरानी ज्योतिष है भारतीय प्राचीन विद्याओं के प्रति ये सोच ठीक नहीं है आपके इस भ्रम से ज्योतिष विद्वानों में हीं भावना आएगी कि हम जो ज्योतिष पढ़ रहे हैं वो हमारी नहीं हैं जिसे हजारों वर्षों से अपनी मानकर वो हृदय से लगाए हुए हैं और वो उनकी अपनी है किंतु आपके भ्रम से उनका कितना बड़ा नुक्सान होगा !इसलिए ये आपका भ्रम है इसे ठीक कीजिए या तो प्रमाण दीजिए यदि  आपका इशारा ताजिक  ग्रंथों   या रामलादि ग्रंथों की ओर है तो वो भी परतंत्रता के समय में अरबी में अनुवाद किए गए थे मूलतः वो ग्रन्थ अपने थे अन्यथा उनमें लिखित मन्त्र देवी देवताओं के क्यों होते !आदि आदि ।
   जो  ज्योतिष हमने पढ़ी है या विश्व विद्यालयों के पाठ्यक्रमों में पढ़ाई जाती है या पराशर जैमिनि जैसे ऋषियों के द्वारा लिखित है उसे ईरानी ज्योतिष कैसे मान लें आचार्य ! वैदिक युग में यह धारणा थी कि वेदों का उद्देश्य यज्ञों का प्रतिपादन है किंतु अब ज्योतिष की आवश्यकता सांसारिक कार्यों के लिए भी मानी जाने लगी है उसकी पूर्ति 'वेदांग ज्योतिष' से कैसे हो सकती है ?

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