मौसमविज्ञान है या अंधविश्वास! मोदी जी का वाराणसी दौरा पोल खोल रहा है मौसमवैज्ञानिकों की !

   " तीन बार पी.एम. मोदी का वाराणसी दौरा रद्द होने के बाद फिर 18 सितम्बर को नरेंद्र मोदी अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी आ रहे हैं पर बी.एच.यु के मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार 18 सितंबर को भी बारिश हो सकती है और पी.एम. का वाराणसी दौरा फिर खतरे में पड़ सकता है।"  मोदी के वाराणसी दौरे पर फिर मंडरा रहे हैं काले बादल!-एक खबर (पं.के.)  
प्राचीन मौसम वैज्ञानिकों का सहयोग लेने में शर्म क्यों लगती है !
   मोदी जी का वाराणसी दौरा क्या फिर होगा रद्द !वो भो मौसम के कारण !धन्य है मौसम विभाग !ये बात पहले क्यों नहीं बताई जा सकती थी !
    प्राचीन मौसम विज्ञान को जानने वाले प्राचीन मौसम वैज्ञानिक वर्षा सम्बन्धी भविष्य फल महीनों वर्षों पहले ही बता सकते हैं । वो तारीखें निकाल सकते हैं जिनमें यदि कह दिया जाए  कि वर्षा नहीं होगी तो नहीं ही होगी !फिर भी  उसके अनुमानों में भी लगभग बीस से तीस प्रतिशत गलती की गुंजाइस तो रह सकती है मैं इससे इनकार नहीं करूँगा किंतु इतना झूठ नहीं होगा जितनी बुरी तरह आधुनिक मौसम विज्ञान फेल होता है ।
  उसका कारण है कि प्राचीन मौसम विज्ञान प्राकृतिक वातावरण का विस्तारित और समग्र अध्ययन करता है उसे प्रकृति के सभी बदलावों पर बारीक दृष्टि रखनी होती है जो प्राकृतिक लक्षण महीनों वर्षों पहले प्राकृतिक शुभाशुभ का संकेत देने लगते हैं किंतु उन्हें समझने वाला चाहिए ! 
      पुराने जवाने में राजा महाराजा लोग प्राचीन मौसम विज्ञान के विद्वानों से अपने खर्चे पर मौसम समेत भविष्य में घटित होने वाली सभी प्रकार की घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगवाया करते थे उनकी सेवाओं के फल  स्वरूप प्रजा खुशहाल होती थी !यही सोचकर इस विषय में अध्ययन करने के लिए मैंने भी अपने संस्थान की सेवाएँ देने के लिए सरकारी मौसम विभाग से निवेदन किया था पत्र लिखा RTI डाली किंतु किसके पास इतना समय है कि वो इन विषयों पर हमसे बात करे !
   भारत के आधुनिक मौसमविज्ञान विभाग की ऊटपटांग भविष्य वाणियों के कारण देश विदेश के मीडिया में कई बार उपहास हो चुका है किंतु क्या इस जग हंसाई से कुछ सीख नहीं ली जानी चाहिए !आखिर अक्सर क्यों फेल होते देखे जाते हैं इनके मौसम सम्बन्धी पूर्वानुमान !क्या इसकी जवाबदेही किसी की नहीं होनी चाहिए और यदि हाँ तो क्यों नहीं ! और यदि तीर तुक्का ही लगाकर बोल देना है तो यह तो जनता स्वयं भी कर सकती है वैसे इसकी जरूरत भी क्या है !
    बंधुओ !जिस विभाग पर जनता की गाढ़ी कमाई की भारी भरकम धनराशि खर्च की जा रही हो उस विभाग की ये स्थिति ! कितने परिश्रम से जनता कमाती है ये धन !ये उस धन का सदुपयोग हो रहा है क्या कम से कम मौसम सम्बन्धी इन भविष्यवाणियों से तो ऐसा नहीं लगता है !कमी आखिर कहाँ है पता तो ये जनता को भी लगना चाहिए !
        वैसे तो ये लोग मौसम सम्बन्धी भविष्यवाणियों के नाम पर कुछ भी बोला बका करते हैं जनता सुनी अनसुनी किया करती है और ये  मौसम वैज्ञानिक अपनी पीठ थपथपा लिया करते हैं जैसा बाबा केदार नाथ  में घटी घटना के बाद इनके वक्तव्यों में सुना गया था !किंतु केवल मौसम के कारण प्रधानमंत्री जी के दो दो दौरे रद्द हुए हों जिसमें तैयारियों में लगने वाले करोड़ों रूपए बेकार हुए हों ये मौसम विभाग पर गंभीर सवालिया निशान  लगाता है !
       प्रधान मंत्री जी की गैर चुनावी  जन सभाओं की तारीख निश्चित करने से पूर्व उन तारीखों के विषय में मौसमविज्ञान विभाग की सहमति क्यों नहीं ली जाती है और यदि ली जाती है तो प्रधानमंत्री जी की दो दो सभाएं मौसम के कारण रद्द क्यों हुईं और यदि मौसम विभाग का यही हाल है तो कृषि और किसानों के लिए इससे  क्या लाभ होगा ! ऐसी परिस्थिति में इस अंधविश्वास पर भरोसा कैसे और क्यों किया जाए !
   मौसमविज्ञान के पूर्वानुमानों का सच क्या यही है कि प्रधानमंत्री के दो दो वाराणसी दौरे रद्द हुए मौसम के कारण !ब्यर्थ में बर्बाद हुए करोड़ों रूपए !
    प्रधानमंत्री जी के कार्यक्रम के आयोजन करने में सुना है कि करोड़ों में खर्च आता है और मौसम विभाग के संचालन में भी करोड़ों  से कम क्या खर्च होते होंगे !आखिर प्रधानमंत्री जी का कार्यक्रम आयोजित करने से पहले मौसम विभाग के पूर्वानुमान का सहारा क्यों नहीं लिया गया और यदि लिया गया तो चूक कहाँ हुई वो सही सही बता नहीं सके या उनकी भविष्यवाणी गलत हुई !और यदि दो में से कोई भी बात रही हो किंतु ये तो सच है ही कि प्रधानमंत्री के दो दो वाराणसी दौरे रद्द तो मौसम के कारण  ही हुए हैं चूक तो किसी एक में हो सकती थी और चूक यदि दोनों में हुई है तो मौसम विभाग का औचित्य ही क्या है ?और यदि मौसम विभाग की इसी प्रकार की भविष्यवाणियों के आधार पर कहा जाता है कि इस वर्ष वर्षा अधिक होगी या कम तो इसका भरोसा किया जाना चाहिए क्या !
      बंधुओ ! मैंने भारत सरकार को भी पत्र लिखा था और मौसम विज्ञान विभाग को भी कि भारत के प्राचीन मौसम विज्ञान के आधार पर भविष्य में होने वाली वर्षा संबंधी पूर्वानुमानों का अध्ययन एवं उस पर रिसर्च करने के लिए यदि सरकार सहयोग करे तो आधुनिक मौसम विज्ञान विभाग की अपेक्षा भारत के प्राचीन मौसम विज्ञान का पूर्वानुमान अधिक सटीक हो सकता है और यदि ऐसा हो पाता है तो इसका पूर्वानुमान भी वर्षों पहले लगाया जा सकता है जबकि आधुनिक मौसम विज्ञान की क्षमता ऐसी नहीं है जिससे यह मौसम विभाग वर्षा सम्बन्धी भविष्य  बता पाने में पूरी तरह असक्षम एवं अनुपयोगी है ।

     भारत कृषि प्रधान देश है कृषि विकास के लिए वर्षा का पूर्वानुमान बहुत आवश्यक होता है क्योंकि फसलें उसी हिसाब से उगाई और संरक्षित की जा सकती हैं । मार्च अप्रैल में रवि की फसल काट कर किसान लोग अपनी  जरूरत भर के लिए आनाज एवं पशुओं का चारा रख लेते हैं बाक़ी रख रखाव की समस्या एवं धन की आवश्यकता के कारण बेच लेते हैं उन्हें सहारा होता है कि अगस्त सितम्बर में खरीफ की फसल आ जाएगी बाक़ी जरूरतें उससे पूरी होंगी !किंतु यदि जुलाई अगस्त में सूखा  हो जाता है या अधिक वर्षा हो जाती है तो उससे फसलें बर्बाद हो जाएँगी जिससे किसान का परेशान होना स्वाविक है । ऐसी परिस्थिति में किसान को मार्च अप्रैल में ही यदि  पता लग गया होता तो किसान आनाज एवं चारे के लिए रवि की फसल को बचा कर रख सकता था साथ ही खेतों में उस प्रकार की फसलें बो सकता था जो आगामी जुलाई अगस्त में अनुमानित वर्षा की संभावना के अनुकूल हों !जबकि जून जुलाई तक किसान अपना आनाज और पशु चारा तो बेच चुके होते हैं इसलिए तब वर्षा के पूर्वानुमान का किसानों को उतना लाभ नहीं हो पाता है । 
     ऐसी परिस्थिति में मौसम सम्बन्धी अनुमान ज्योतिष के द्वारा महीनों पहले और कुछ मामलों में तो वर्षों पहले लगाया जा सकता है प्राचीन काल में उसी मौसम विज्ञान के सहारे कृषि कार्यों का निर्वाह सुगमता पूर्वक किया जाता था ! यदि वर्तमान समय में भी हमारा  संस्थान  उसी प्राचीन पद्धति के हिसाब से शास्त्र विधि द्वारा मौसम का पूर्वानुमान लगाकर कृषि कार्यों में सहायक होना चाहता है जिसमें सरकारी मदद की आवश्यकता है क्या ऐसे विषयों में मदद करने का कोई प्रावधान है और यदि हाँ तो प्रक्रिया क्या है ?
     बंधुओ !इस RTI के जवाब में आया कि यहाँ ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है ।

      

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