दालें केवल सांसद विधायक और सरकारी कर्मचारी खाएँगे ! इसीलिए उन लोगों ने बढ़ा ली है अपनी अपनी सैलरी !

     सरकारों में सम्मिलित नेतालोगों  और सरकारी कर्मचारियों के दाल खाते हुए चित्र टीवी चैनलों पर दिखा दिए जाएँगे !
     जो नेता हैं लेकिन काम करना नहीं आता !जो शिक्षक किंतु शिक्षित नहीं है !जो अधिकारी हैं किंतु अयोग्य हैं !कुल मिलाकर भ्रष्टाचारी और बेशर्म वर्ग इस देश की आजादी को भोगेगा और शर्मदार किसान कठोर संघर्ष पूर्वक अपने परिवार का भरण पोषण करते करते एक दिन फाँसी के फंदे पर झूल जाता है इन सरकारों इन कर्मचारियों  इन अधिकारियों की ईमानदारी पर यदि थोड़ा भी भरोसा होता तो फाँसी के फंदे पर झूलने से पहले वो किसान एक बार इनसे मिलने के लिए जरूर सोचता किंतु इनके भ्रष्टाचार के कारण ही दुर्दशा हुई है उसकी यदि ऐसा न होता तो उस कठोर परिश्रमी किसान को मरना न पड़ता !लोकतंत्र पर आस्था के नाम पर ग़रीबों के साथ गद्दारी आखिर कब तक की जाएगी ! 
         सांसदों विधायकों एवं सरकारी कर्मचारियों की हजारों लाखों में सैलरी और किसानों के लिए !धिक्कार है तुम्हारे बड़प्पन को !देश वासियों ने सरकारों में सम्मिलित नेतालोगों  और सरकारी कर्मचारियों के भरोसे देश छोड़ दिया कि ये सबका ध्यान रखेंगे !किंतु वे इतने बेशर्म निकले कि अपनी अपनी सैलरी बढ़ा रहे हैं और अपने अपने घर भर रहे हैं बाकी देश वासियों को ज़िंदा मानते ही कहाँ हैं ये लोग !    किसी ने चुनाव जीत लिया किसी ने चार अक्षर पढ़ क्या लिए किसानों को इंसान मानने को तैयार नहीं हैं किसान लोग कठोर परिश्रम करके इन्हें दालें खिलाएँगे जो उन्हें जिंदा इसान नहीं मानते ! धिक्कार है ऐसी आाजदी को जो केवल मुट्ठीभर सरकार में सम्मिलित लोगों एवं सरकारी कर्मचारियों को भोगने के लिए ही मिली हो !इन्हें दालें खिलाएँगे किसान !किसानों के साथ बहुत अच्छा व्यवहार हो रहा है न !
      किसानों नें आखिर ऐसा क्या गुनाह किया है सरकारी आफिसों में दिन दिन भर चलते हैं AC ,अरे ये आफिसें हैं या आरामगाह ! अधिकारी एयर कण्डीसण्ड आफिसों में दरवाजे बंद किए बैठे होते हैं किसान काम के लिए जाए तो दिन दिन भर लाइन में खड़ा कर दिया जाता है,ये लोग खाद समय से नहीं देते हैं किसानों को कितना तंग करते हैं सरकारी लोग !किसान इन्हें दालें खिलाएँगे !
    हैरान परेशान किसान सरकारी आफिसों में यदि बाबुओं के एयर कण्डीसण्ड कमरों का दरवाजा खटखटा दे तो कुत्ते बिल्ली की तरह खाने को पड़ जाते हैं लोग न जाने कितना बड़ा गुनाह मानते हैं इसे ,कितना तंग किया जाता है किसानों को !किसान इन्हें दालें खिलाएँगे !
    विधायकों सांसदों सरकारी कर्मचारियों की  सैलरी बढ़ती जा रही है न जाने किस खुशी में !ये ऐसा कौन सा तीर मार रहे हैं या कौन सी मुशीबत आ पड़ी है इन पर !ये सरकारें ये सरकारी कर्मचारी कितनी गिरी निगाह से देखते हैं किसानों को !इन्हें दिन में आफिस में भी AC चाहिए वहीँ किसान तपती दोपहर में खुले आसमान में किया करते हैं काम !फिर भी इन्हें उम्मींद है कि किसान इन्हें दालें खिलाएँगे ! 
    अरे नेताओ ! गावों में किसानों के यहाँ एक बल्व तक नहीं जला पाए एक पंखा नहीं चला पाए तुम !बड़ी बड़ी बातें करते हो जनता से कहते हो CFL जलाओ बिजली बचाओ और तुम्हारी रोडलाइटें दिन दिन भर भी जलती रहें तो कोई फर्क नहीं पड़ता ! आखिर आप ठहरे मालिक आप तो कुछ भी कर सकते हैं फिर भी किसानों से उम्मींद है किसान इन्हें दालें खिलाएँगे !
     बंधुओ ! आफिसें आरामगाह नहीं होनी चाहिए अन्यथा नींद लगती है काम करने का मन नहीं होता है सुख सुविधाभोगी लोग फील्ड पर तो निकलना ही नहीं चाहते न पब्लिक से ही मिलना चाहते हैं इन्हें दालें खिलाएँगे किसान !ये ऐसा करते आखिर क्या हैं ?
    सरकारी आफिसों से AC हटाए जाने चाहिए और गरीबों के लिए बचाई जानी  चाहिए बिजली और पहुँचाई जानी चाहिए देश के प्रत्येक नागरिक के घर में !सरकारी आफिसों में सुख सुविधा के लिए लगा दिए जाते हैं AC  वहीँ गावों में दुःख दर्द में लिए भी नहीं होती है बिजली ,कितना कष्ट भोग रहे हैं किसान फिर भी ये आशा कि ये हमें दालें खिलाएँगे!
    किसानों को अँधेरी रातों में पैरों में सर्प  काट खाए तो पता नहीं चलता है कि लकड़ी चुभी है कि सर्प ने काटा है ये सरकारी लोग अपने कुत्तों को भी AC में रखते हैं वहीँ किसानों के बच्चों के लिए नहीं है एक पंखा एक बल्व !डेंगू को ही देखिए यहाँ एक एक मच्छर से बचा जा रहा है वहीँ किसानों को देखिए जिंदगी ही बीतती है मच्छरों के साथ !फिर भी किसानों से ये आशा कि ये हमें दालें खिलाएँगे !
     बंधुओ !किसानों को आखिर क्यों नहीं मिलने चाहिए उनके अधिकार ? क्या आजादी के आंदोलन में उनके पूर्वजों का कोई योगदान नहीं है ? सरकारें एवं उनके कर्मचारी लोग मलाई छान रहे हैं किसानों को ठेंगा दिखाया जा रहा है आखिर क्यों ?
    किसानों पर आई इतनी बड़ी मुसीबत में सौ सौ पचास पचास रूपए के चेक !सच कहूँ तो मुझे लगता है कि किसान प्राकृतिक आपदा से तो किसी प्रकार हिम्मत बाँध कर अपने को कसकर दिन काट सकता था किन्तु सरकारी बेरुखी सह नहीं सका किसान !
        किसान का जीवन संघर्षों से ही बुना गया है इसलिए किसान सब कुछ सह सकता है किंतु अपने बलिदान का अपमान नहीं सह सकता ! किसी का इलाज रुका पड़ा है किसी के यहाँ बेटे बेटे का विवाह रुक गया है किसी का घर गिर गया है किसी को बच्चे पढ़ाने हैं किसी को लोन चुकाना है अरे नेता जी !आप  ही बताओ किसे दे दे वो सौ सौ पचास पचास रूपए के चेक !अरे सरकारो ! किसान को मरने के लिए सरकारी नीतियों और किसान के प्रति अनात्मीय आचरणों ने मजबूर किया है ऐसे कोई आत्म हत्या नहीं करता कभी अपनी अँगुली काटकर देखो तो पता चले कि गले में फाँसी का फन्दा कैसे डालते होंगे किसान !अभी तो तुम्हें एहसास ही कहाँ है! 
        अब आजादी को सरकार एवं सरकारी कर्मचारियों को अकेले  नहीं भोगने दिया जाएगा !आखिर सरकारी नेता हों या कर्मचारी ये किसानों के बलिदान को समझने को तैयार क्यों नहीं हैं ?


सच्चा योगी कौन किसान या कसरती अर्थात योगी ?
  योग और व्यायाम करने वाले जो परिश्रम करते हैं उससे पेट खाली तो होता है किंतु भरता नहीं है इसलिए ये अधूरा योग है जबकि किसान जो परिश्रम करते हैं उससे पेट भरता भी है और साफ भी होता है तथा किसान केवल अपना ही नहीं अपितु औरों का भी पेट भरते हैं अधिक परिश्रम करने के कारण पेट साफ तो होना ही है । इसलिए सच्चा एवं संपूर्ण योगी कौन  ?
 सच्चा योगी कौन किसान या कसरती!
   बंधुओ !किसान तो देश का पेट भरते हैं ये वीआईपी आखिर क्या करते हैं क्या ये घोटाले भ्रष्टाचार आदि इन्हीं वीआईपियों की देन नहीं है क्या ? अाखिर ऐसे लोगों ने देश को ऐसा क्या दे दिया है कि उनकी सुरक्षा पर देश का धन खर्च हो ! इन किसानों की सहायता के लिए सैकड़ों रूपए वीआईपियों की सुरक्षा के लिए करोड़ों !आश्चर्य !!
   किसानों की चिंता करना क्या देश भक्ति नहीं है ! जो धार्मिक एवं नेता लोग केवल अपनी सुरक्षा की चिंता करते हैं उनका नाम लेने में वाणी काँपती है ! देश प्रेमी केवल साधू संत ही क्यों ?क्या वे किसान गरीब मजदूर देश प्रेमी नहीं  हैं जिन्हें आज तक देश की आजादी का स्वाद ही नहीं पता चल पाया है जिनकी सारी  फसलें चौपट हो गई हैं इसके बाद सरकारी अकर्मण्य मक्कार लोग सौ दो सौ  रूपए उन्हें मुवाबजा दे रहे हैं आहत किसान  फाँसी लगा रहे हैं किंतु लोकतंत्र पर अविश्वास नहीं कर रहे हैं अन्यथा यदि देश परतंत्र होता तो इससे अधिक संवेदन हीनता और क्या हो सकती थी किंतु उन दुखी किसानों की आवाज कौन उठा रहा है ! जो धार्मिक लोग देश प्रेम का दिखावा कर रहे थे उनमें से सबके अपने अपने स्वार्थ पूरे हुए सब बिलों में घुस गए !क्या उनका यही देश प्रेम था केवल अपनी सुरक्षा की चिंता बाकी देश जाए जहन्नम में ऐसे नेता बाबा या सभी प्रकार के समाज सुधारक अब नहीं चाहिए देश को !
  भ्रष्टाचार ख़त्म करने के लिए स्टिंग आम जनता क्यों करे !
  अजीब ड्रामा है भ्रष्टाचार ख़त्म करने का !सरकार अपना निगरानीतंत्र मजबूत स्वयं क्यों नहीं करती  या फिर भ्रष्टाचार रोकने के लिए आम जनता से चुने जाएँ वालेंटियर जो आहत हैं इस भ्रष्टाचार से उन्हें दीजिए इस भ्रष्टाचार से निपटने के प्रभावी अधिकार वो भ्रष्टाचारियों से स्वयं निपट लेंगे !
       कभी आम लोग रह चुके भूतपूर्व आम लोग राजनीति में आते ही बन जाते  हैं अरबों पति नेता ! सरकारों में सम्मिलित होकर वही अरबों पति नेता बन जाते हैं वीआईपी !कुछ लोगों को तो उनके दायित्व के हिसाब से सुरक्षा चाहिए किंतु आज सुरक्षा शान का प्रतीक बनती जा रही है हर किसी को चाहिए सुरक्षा नेता तो नेता बाबाओं को भी इमेज बढ़ाने के लिए चाहिए आखिर क्यों बाकी देश वालों को क्यों नहीं चाहिए सुरक्षा ! जहाँ तक धमकियाँ मिलने की बात है आम जनता को भी तो जान से मर देने की धमकियाँ मिलती हैं आखिर उसे उतनी गंभीरता से क्यों नहीं लिया जाता जबकि नेताओं की सुरक्षा में देश का पैसा लगता है तो उनकी भी सुरक्षा में लगने दीजिए देश का पैसा !जब बर्बाद ही करना है तो मिलजुल कर करते हैं इस आजादी को केवल मुट्ठी भर लोग ही क्यों भोगें !
   नेताओं के अधिक धन के लालच किए गए अनैतिक आचरणों से इनकी जान को खतरा अनेकों लोगों से हो ही जाता है ये लोग नेता बनते समय पाई पाई को तरस रहे थे ये 90 प्रतिशत नेताओं की कहानी है आज वो अरबों पति हैं आखिर किसी के हक़ तो मारे होंगे इन्होंने क्योंकि इतने  अधिक धन संग्रह का और कोई शार्टकट फार्मूला हो ही नहीं सकता !उनके पास ये धन आया आखिर कहाँ से जब उनकी आय के कोई स्पष्ट स्रोत नहीं है फिर इस धन को नैतिक कैसे मान लिया जाए और अनैतिक धन संग्रह के कारण  हुई शत्रुता से बचने के लिए सुरक्षा का बोझ देश आखिर क्यों ढोवे ?वैसे भी सुरक्षा की माँग करने वालों की जाँच करके पहले इस बात का पता लगाया जाए कि उनके इतने दुश्मन बने आखिर कैसे !अगर देशहित  का कोई कार्य करने पर बने हैं जिसके गवाह आम जनता से लिए जाएँ तब तो ठीक है किंतु निजी कारणों से बने हैं तो उसका बोझ देश क्यों उठावे ?
   सरकारी अधिकारी कर्मचारी मोटी  मोटी  सैलरी लेकर भी काम के समय आम जनता से सीधे मुख बात नहीं करते हैं काम करना तो दूर सलाह तक ठीक से नहीं देते! इसमें जनता की मजबूरी ये है कि काम होगा तो उन्हीं से और कोई विकल्प नहीं है वो भ्रष्टाचारी सरकारों के नुमाइंदे जो हैं तब उनपर चढ़ाना पड़ता है चढ़ावा !क्या ये इन जिम्मेदार वीआईपीयों को पता नहीं है और यदि नहीं है तो जब इतना भी नहीं पता है तो वहाँ बैठे कर आखिर क्या रहे हैं ये लोग ? केवल फ्री की सैलरी लेने के लिए बैठे हैं उधर किसान आत्म हत्या कर रहे हैं हमें लज्जा लगनी चाहिए हम ऐसे संवेदना शून्य समाज के अंग हैं !
        आखिर हमारे देश के सैनिक भी तो सरकारी कर्मचारी ही हैं उन पर  एवं उनके परिवारों पर सैलरी रूप में खर्च हो रही एक एक पाई वो बेचारे कैसे चुकाते हैं सोचकर आत्मा हिल जाती है क्या क्या नहीं सहना  पड़ता है उन्हें !वो प्रणम्य भारती सपूत देश सेवा में अपनी जान पर खेल जाते हैं !क्या उनसे कुछ सीखना नहीं चाहिए अन्य सरकारी कर्मचारियों को !
    अगर देश की सीमाओं का अतिक्रमण करके कोई दुश्मन देश की सीमा में प्रवेश कर जाए तो देश के सैनिकों को उन्हें खदेड़ने की निभानी पड़ती है जिम्मेदारी !क्योंकि सीमाएं सुरक्षित रखना उनकी जिम्मेदारी है इसी प्रकार से सरकार के हर विभाग के लोग अपनी अपनी जिम्मेदारी निर्वाह करने के लिए समर्पण क्यों नहीं करते हैं अपने अपने विभागों की इज्जत बचाने के लिए मरने मारने को तैयार क्यों नहीं हो जाते हैं !आज प्राइमरी स्कूलों में पढाई नहीं होती है इसकी जवाबदेही वहाँ के शिक्षकों की होनी चाहिए किन्तु नहीं है आखिर क्यों ?
   बंधुओ !यदि हमारे देश का पक्ष लेकर दुश्मनों से लड़ने वाला सैनिक अपने परिवार को विदेश के किसी सुरक्षित ठिकाने पर रख आवे और खुद यहाँ देश की सुरक्षा का नाटक करे तो उसकी देश निष्ठा पर संदेह आखिर क्यों नहीं होना चाहिए और यदि हाँ तो सरकारी प्राइमरी स्कूलों के शिक्षक सरकारी अधिकारी कर्मचारी ,सांसद विधायक मंत्री आदि अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में क्यों नहीं पढ़ाते हैं इससे ऐसे स्कूलों पर अविश्वास होना स्वाभाविक है और इससे ये अनुमान लगाना भी गलत नहीं होगा कि सरकारी स्कूलों की लापरवाहियों से ये सभी सरकारी लोग सुपरिचित हैं इसीलिए इनमें नहीं पढ़ाते हैं अपने बच्चे ये गद्दारी नहीं तो क्या है ?
  कुल मिलाकर अब सरकार से जुड़े लोगों पर भरोसा करना दिनों दिन कठिन होता जा रहा है जो लोकतंत्र के लिए गंभीर संकट का संकेत है आखिर लोकतंत्र की जिम्मेदारी का बोझ ढोने के लिए गरीब किसान मजदूर एवं आम देशवासी ही क्यों हैं सरकार एवं सरकारी कर्मचारी क्यों नहीं ! 
    माना कि सरकार एवं सरकारी कर्मचारियों में भी सभी लोग निजी तौर पर भ्रष्ट नहीं हैं किन्तु उतना ही सच ये भी है कि अपने अपने विभागों के भ्रष्ट लोगों के भ्रष्टाचारी कार्यों से वो सुपरिचित जरूर होंगे क्या उन्हें लोकतंत्र की रक्षा के लिए उनके विरुद्ध आवाज नहीं उठानी चाहिए !और यदि नहीं तो दोषी वो भी हैं क्योंकि अपराधियों का मौन समर्थन भी अपराध की ही श्रेणी में आता है !
    भ्रष्टाचार नेताओं की आर्थिक प्रगति की आवश्यक आवश्यकता है यदि नहीं तो उन निर्धन लोगों के पास राजनीति में आते ही माया आखिर कहा से बरसने लगती है जो नेता बन जाते हैं उनके  आयस्रोतों की सरकार ईमानदारी पूर्वक जाँच करवाए और यदि ऐसा नहीं है तो क्या ये सैकड़ों के नेताओं को अरबों का बनाने के लिए स्वयंसेवा चल रही है क्या ?आखिर क्यों नहीं लगाम लगाई जाती है घूसखोर ऐसे सरकारी शेरों पर !
    सरकारी स्कूलों में पढ़ाई न होने से जनता प्राइवेटों के सामने गिड़गिड़ाती घूम रही है किंतु ये अधिकारी अपनी कुर्सियों से हिलने को तैयार नहीं हैं आखिर क्यों ?क्या इन्हें पता नहीं है !और यदि नहीं है तो ऐसे अधिकारियों के पदों को समाप्त क्यों न किया जाए जिनकी उनके कार्यों की गुणवत्ता बढ़ाने संबंधी जिम्मेदारी सँभालने में कोई रूचि ही नहीं है !हर सरकारी विभाग की यही स्थिति है आॅफ़िसों में बैठकर खेतों के सर्वे हो रहें हैं! सरकारी आफिसों में मीटिंग करने वाले बाबू तो हैं किंतु काम करने वाले कर्मचारी नहीं हैं और जो हैं भी उनका भी निकलकर काम करने जाने का  मन नहीं होता है परिश्रम आखिर करे कौन और क्यों ?कोई क्या बिगाड़ लेगा उनका !
      सीवर हो या जल बोर्ड या बिजली   विभाग के लाइन मैन जिन्हें अपनी जान जोखिम में डाल कर काम करना होता है उनकी संख्या कम है उसमें भी काम करने वाले कर्मचारी  तो और कम है क्योंकि उन पदों पर अधिकारियों ने अपने साले साढुओं  को फिट कर रखा है जिनके लिए जिम्मेदार लोगों को शक्त हिदायद इन अधिकारियों की तरफ से दी गई होती है कि हमारे रिश्तेदारों को कोई  काम करने के लिए मत कहना ! तो वे बेचारे डर से नहीं बताते हैं अब काम करे कौन !जब कि उस विभाग में काम करने वालों के नाम पर करोड़ों रूपए की सैलरी उठे और काम करने वालों का पता न हो !फिर कौन जोड़ेगा टेलीफोन के कटे तार,कौन ठीक करेगा बिजली के खम्भों पर चढ़के रिस्की बिजली के तार !कौन उतरे सीवर में और जूझे जान घातक गैसों से !पानी की लीकेज पाइपों को ठीक करने के लिए गड्ढे आखिर कौन खोदे !क्योंकि सरकारी नौकरी का मतलब ही आराम होता है ।वैसे भी यहाँ काम करने वाले तो होते हैं किन्तु काम करने वाले नहीं होते हैं !           
    

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