शारीरिक व्यायाम को ही योग मान लेना कहाँ तक उचित है ?
राजनैतिक पद प्रतिष्ठा प्राप्ति की इच्छा एवं धन आदि की बासना लोगों को कितना झूठ
बोलने पर विवश कर देती है सनातन धर्म में साधू संतों के प्रति असीम सम्मान है इसी भावना से कई ब्यापारी और नेता लोग अपने काम में अपने को और अधिक सफल एवं विश्वसनीय बनाने के लिए धार्मिक लोगों जैसी वेष भूषा धारण कर लेते हैं किंतु वो धार्मिक नहीं होते हैं वो हैं क्या इसकी पहचान उनके कार्यों से की जानी चाहिए !जैसे सांसारिक कामनाओं की पूर्ति के भवजाल में फँसे
रावण जैसे बड़े बड़े राजा लोग भी इस माया से बच नहीं सके हैं यदि परस्त्री प्राप्ति कामना से रावण जैसे राक्षस भी साधुओं जैसा वेष धारण कर सकते थे तो इस युग
में ऐसा नहीं होता होगा क्या ? अवश्य होता होगा ।
ऐसी सभी प्रकार की बासनाओं और राजनैतिकमहत्वाकाँक्षाओं एवं धनलोभ की भावना पर लगाम लगाने में सक्षम है योग !सभीप्रकार की बासनाओं एवं पद प्रतिष्ठा की चाहत पर विजय दिलाने एवं मृत्यु भय मिटाने में सक्षम है योग! योगसिद्ध लोग त्रिभुवन सम्राट होते हैं उनके योग बलपर सारी दुनियाँ त्रिकाल में सुरक्षित रहती है ऐसे लोग किसी सरकार या लोगों के सुरक्षा सहयोग के सहारे कैसे जीवन जी सकते हैं वैसे भी जिन योगियों के चरणों में अपना साम्राज्य सौंपने के लिए बड़े बड़े राजा लोग लालायित रहते रहे हों ऐसी योग सिद्ध महापुरुष सांसारिक प्रपंचों में क्यों फँसेंगे !
योग और व्यायाम में क्या अंतर है ?
आज कल लोग व्यायाम को ही योग समझने लगे हैं हाथ पैर हिलाने डुलाने को भी योग मानने लगे हैं इन्हें देख सुनकर तो लगता है कि पेट हिलाना ही योग है किंतु योग यदि इतना ही आसान होता तो फिर हर कोई योगी ही बन जाता और इस धरती पर योगी इतने हो जाते कि कौन पूछता योगियों को !
बंधुओ! किसानों मजदूरों का शारीरिक परिश्रम आवश्यक व्यायाम है किंतु योग नहीं है जबकि इसके दो लाभ हैं पहला परिश्रम करने से पेट साफ होकर भूख लगती है और दूसरा कर्म करने के फल स्वरूप खेतों से आनाज मिलता है उससे पेट भरता है । इसके अलावा व्यायाम से भूख लगती तो है किंतु मिटती नहीं है जबकि योग से संयम पूर्वक भूख पर भी विजय पाई जा सकती है और शरीर भी कमजोर नहीं होता है इसी बलपर योगी लोग जंगलों में जीवन बिता दिया करते हैं ।
योगी लोग प्रदर्शन पर भरोसा नहीं करते हैं -
योगी लोग जंगलों में रहा करते हैं उनके पास खाने को कुछ होता ही नहीं है इसलिए वो समाज को बताते भी नहीं घूमते हैं कि मैं केवल एक गिलास दूध लेता हूँ अपितु उनके विषय में युगों युगों से विश्व जानता है कि योगियों का रहन सहन कैसा होता है इसी प्रकार से उनके आस पास बासना के साधन ही नहीं होते तो बासना का भय कैसा !पैसा होता ही नहीं तो पैसे का प्रपंच कैसा !वो सारी धरती का सम्राट होता है उसे सामाजिक राजनैतिक आदि पद प्रतिष्ठाओं का लालच कैसा !उनके पास भोगविलास के साधन ही नहीं होते तो किसी को सफाई क्यों देनी अन्यथा यदि सब कुछ समेटकर खुद बैठे हों और फिर कहें कि मैं तो आधा ग्लास दूध पीता हूँ तो भाई आधा ग्लास क्यों घड़ा भर पिए तो किसी को क्या आपत्ति आदमी आखिर कमाता किस लिए है !जिसे सुख भोग करना न हो वो भोग बिलास के साधन जुटाएगा ही क्यों और यदि उन्हें जुटाने में संकोच नहीं है तो भोगने में क्यों होगा ?
योगियों का जीवन तो खुली किताब की तरह होता है यहाँ कपट नहीं चलता है !
अपने को योगी कहने वाले कुछ लोग बताते घूमते हैं मैं तो चौबीस घंटे में मात्र दो घंटे सोता हूँ अरे ये ढिंढोरा पीटते क्यों फिरते हैं ऐसा कोई योगी क्यों करेगा ! ऐसे लोग ऐसी जगह सोना क्यों नहीं शुरू कर देते हैं जहाँ किसी के आने जाने पर प्रतिबंध ही न हो लोग न केवल स्वयं देखेंगे अपितु प्रेरणा भी लेंगे !
मैंने सुना है कि योग को विश्व में प्रचारित करने के लिए उसकी कुछ सर्जरी की जा रही है !
बंधुओ !यदि उस योग को विश्व में मान्यता मिल ही गई जिसका योग से कोई संबंध ही न रहा तो योग के प्रचार का क्या फायदा फिर तो योग भी धर्म निरपेक्ष हो जाएगा फिर ऐसे योग के प्रचार प्रसार का क्या लाभ ?इसलिए योग की सर्जरी करने से अच्छा है कि योग को योग ही रहने दिया जाए !जिन लोगों ने नेता मंत्री एवं उद्योगपति बनने के चक्कर में योग जैसी दिव्य साधना को ही दाँव पर लगा दिया और मिटा दिया योग और व्यायाम के अंतर को !ऐसे लोगों की कृपा से ही आज कसरती व्यायामी लोग अपने को योगी कहने लगे हैं ये प्राच्य विद्याओं का दुर्भाग्य है !
सुना है कि योग से ॐ को हटा दिया जाएगा किंतु क्यों और योग को सेक्युलर बनाने की इतनी आवश्यकता भी क्या है ?यदि उसकी पहचान को ही कम कर दिया गया तो ऐसे योग का महत्त्व ही क्या रह जाएगा !दूध से मलाई निकाल लेने के बाद भी दूध क्या दूध रह जाता है !
बंधुओ!योग तन से आत्मभाव की ओर बढ़ने की दिव्य विद्या है इसका निरंतर
अभ्यास करने से मनुष्य दिव्यता की ओर बढ़ता चला जाता है कोई सच्चा योगी किसी सम्राट
के साम्राज्य को भी तुच्छ समझता है बड़े बड़े राजा अपने रजवाड़े अपना साम्राज्य उसके
चरणों में चढ़ाने के लिए उतावले रहते हैं किंतु वो उनकी ओर देखता तक नहीं है।
कोई योगी दवाएँ क्यों बेचेगा वो तो जिस पर कृपा करना चाहेगा उसे आशीर्वाद
दे देगा और वो ठीक हो जाएगा !वास्तव में योगियों अद्भुत क्षमता होती है।
योगियों का कोई बाल बाँका तक नहीं कर सकता ।
मृत्यु भी योगियों का कुछ बिगाड़ नहीं सकती है फिर उन्हें भय किससे होगा !
भगवान शिव ने शिव संहिता में कहा
है कि संसार के बड़े बड़े बिषैले जीव जंतु भी योगी का कुछ नहीं बिगाड़ सकते
उनके शरीर को उनकी इच्छा के बिना काटा नहीं जा सकता और न ही छेदा सकता है
यहाँ तक कि मृत्यु का समय समीप समझकर योग सिद्ध महापुरुष प्राणवायु को
ब्रह्मांड में खींच लेते हैं उस समय यमराज को भी निराश होकर लौट जाना पड़ता
है उधर फिर उन्हें एक नया आयुष्य मिल जाता है वो फिर उस आयुष्य का भोग करते
हैं योगी ,दोबारा जब मृत्यु का समय समीप आता है तो फिर उसी प्रकार से
यमराज को निराश करके अपनी आयु बचा लेते हैं और उनका जब तक मन होता है तब तक
इस धरती पर स्वतंत्र भावना से विचरण करते हैं यमराज कुपित होकर भी जिन
योगियों का बाल भी बाँका नहीं कर सकते ये सच्चे योगी की पहचान है योग सिद्ध
महापुरुष तो विश्वजनों के सात्विक हृदयों पर आसीन होते हैं ऐसे योगियों को
नित्य नमन !
बंधुओ! जो लोग अपने को कहते तो योगी हों और मरने से इतना डरते हों कि अपनी
सुरक्षा के लिए सरकार से गिड़गिड़ाते फिरते हों ऐसे लोगों को योगी कैसे माना जा
सकता है ऐसा करने से योगियों का अपमान होता होगा क्योंकि सच्चा योगी
मृत्यु से भयभीत नहीं हो सकता !
कालामन:-यदि कोई सामान्य व्यक्ति योग के नाम पर भोगों को बढ़ाने वाली दवाओं
आदि का व्यापार करे तो ये योग नहीं है अपितु योग के नाम पर फैलाया गया कल्पित
भ्रम है । कई बार कुछ लोग अनंत जन्मों के पापों के प्रभाव से हुआ अपना
कालामन ठीक करना चाहते हैं इसके लिए लोगों की देखा देखी साधू तो बन जाते
हैं साधुओं जैसी वेष भूषा भी बना लेते हैं किंतु पूर्व पापों के प्रभाव से साधना
में मन नहीं लगता है जन्म जन्मान्तरों के पुण्यों के प्रभाव से बने साधुओं
जैसी साधना में सांसारिक बासना से झुलस रहे ऐसे किसी भी सांसारिक बासना
प्रिय व्यक्ति का मन कहाँ लग पाता है अर्थात नहीं लग पाता है इसलिए ऐसे लोग
बहुत जल्दी ही सधुअई से ऊभ जाते हैं और सामाजिक या व्यापारिक कार्यों जैसे
संसारिक प्रपंचों में फँसने लगते हैं और भूल जाते हैं कालामन ठीक करने
जैसे अपने जीवन के उद्देश्य को ।
कालातन
:- ऐसे लोग कालेमन के उद्देश्य से भटकने के बाद 'कालातन' अर्थात रोगी
शरीरों को ठीक करने के उद्देश्य को प्रचारित करते हैं किंतु वर्तमान कर्म
प्रभाव से हुए रोग तो ठीक हो जाते हैं इसी प्रकार संचित कर्म प्रभाव से हुए
रोग मंत्र एवं औषधि साधना से प्रयास पूर्वक ठीक किए जा सकते हैं किंतु
प्रारब्ध कर्मों से हुए रोगों की कहीं कोई चिकित्सा होती ही नहीं है अर्थात
वो भोगने ही पड़ते हैं ऐसी परिस्थिति में कोई योग साधक रोगमुक्त करने की
गारंटी कैसे ले सकता है और यदि लेगा भी तो रोगमुक्ति न दिला पाने के कारण
'कालातन' अर्थात रोगी शरीरों को ठीक करने के उद्देश्य को भी भुला देता है
इसके बाद 'कालाधन' खोजने को अपना विषय बना लेता है ।
कालाधन:-ऐसे
योग के अयोग्य लोगों का लक्ष्य वस्तुतः कालाधन भी नहीं हो पाता है केवल
बोला करते हैं काले धन के विषय में लोगों का ध्यान भटकाने के लिए ये लोग
सारे प्रयास किया करते हैं जबकि करना कुछ नहीं होता है केवल बोलते रहते हैं
। ऐसे लोग वस्तुतः योग के लायक ही नहीं होते हैं इन्हें तो सत्ता संपत्ति
सुरक्षा एवं साम्राज्य पाने की लालषा होती है इसलिए ये उसी ओर बढ़ते जाते
हैं जहाँ योग या योग निष्ठा दूर दूर तक नहीं दिखाई सुनाई देती है । अब आप स्वयं देखिए- वस्तुतः योग है क्या और योग के नाम पर आप को जो कुछ भी होता दिख रहा है ?क्या उससे योग का कोई सम्बन्ध है भी या नहीं !
अब आप जानिए कि शास्त्रों की नजर में योग है क्या और किया कैसे जाए
महर्षि पतञ्जलि ने योग को 'चित्त की वृत्तियों के निरोध' (योगः चित्तवृत्तिनिरोधः) के रूप में परिभाषित किया है।
शारीरिक, मानसिक और आत्मिक शुद्धि के लिए आठ अंगों वाले योग का एक मार्ग
विस्तार से बताया है। अष्टांग योग (आठ अंगों वाला योग), को आठ
अलग-अलग चरणों वाला मार्ग नहीं समझना चाहिए; यह आठ आयामों वाला मार्ग है
जिसमें आठों आयामों का अभ्यास एक साथ किया जाता है। योग के ये आठ अंग हैं:
१) यम, २) नियम, ३) आसन, ४) प्राणायाम, ५) प्रत्याहार, ६) धारणा ७) ध्यान ८) समाधि
अष्टांग योग के अंतर्गत प्रथम पांच अंग (यम, नियम, आसन, प्राणायाम तथा
प्रत्याहार) 'बहिरंग' और शेष तीन अंग (धारणा, ध्यान, समाधि) 'अंतरंग' नाम
से प्रसिद्ध हैं।
यम :- ये पांच प्रकार का माना जाता
है : (क) अहिंसा, (ख) सत्य, (ग) अस्तेय (चोरी न करना अर्थात् दूसरे के
द्रव्य के लिए स्पृहा न रखना),।
नियम :- शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय (मोक्षशास्त्र का अनुशलीन या प्रणव का जप)
तथा ईश्वर प्रणिधान (ईश्वर में भक्तिपूर्वक सब कर्मों का समर्पण करना)।
आसन:- सुख देनेवाले बैठने के प्रकार स्थिर
सुखमासनम् जो देहस्थिरता की साधना है।
प्राणायाम :- श्वास प्रश्वास की
गति के विच्छेद का नाम प्राणायाम है। बाहरी वायु का लेना श्वास और भीतरी
वायु का बाहर निकालना प्रश्वास कहलाता है। प्राणायाम प्राणस्थैर्य की साधना
है। इसके अभ्यास से प्राण में स्थिरता आती है और साधक अपने मन की स्थिरता
के लिए अग्रसर होता है।
इसके बाद मन को स्थिर करने की तीन साधनाएँ हैं -
प्रत्याहार:- प्राणस्थैर्य और मन:स्थैर्य की मध्यवर्ती साधना का नाम 'प्रत्याहार' है।
प्राणायाम द्वारा प्राण के अपेक्षाकृत शांत होने पर मन का बहिर्मुख भाव
स्वभावत: कम हो जाता है। फल यह होता है कि इंद्रियाँ अपने बाहरी विषयों से
हटकर अंतर्मुखी होने लगती हैं ।
धारणा :- इससे मन की बहिर्मुखी गति निरुद्ध हो जाती है और अंतर्मुख होकर स्थिर होने
की चेष्टा करता है। इसी चेष्टा की आरंभिक दशा का नाम धारणा है। देह के
किसी अंग पर (जैसे हृदय में, नासिका के अग्रभाग पर) अथवा बाह्यपदार्थ पर
(जैसे इष्टदेवता की मूर्ति आदि पर) चित्त को लगाना 'धारणा' कहलाता है
। देशबन्धश्चितस्य धारणा; योगसूत्र 3.1
ध्यान:- ध्यान तो धारणा के आगे की दशा है। जब उस
देशविशेष में ध्येय वस्तु का ज्ञान एकाकार रूप से प्रवाहित होता है, तब उसे
'ध्यान' कहते हैं। धारणा और ध्यान दोनों दशाओं में वृत्तिप्रवाह विद्यमान
रहता है, परंतु अंतर यह है कि धारणा में एक वृत्ति से विरुद्ध वृत्ति का भी
उदय होता है, परंतु ध्यान में सदृशवृत्ति का ही प्रवाह रहता है, विसदृश का
नहीं।
समाधि :- ध्यान की परिपक्वावस्था का नाम ही समाधि है। चित्त आलंबन के आकार
में प्रतिभासित होता है, अपना स्वरूप शून्यवत् हो जाता है और एकमात्र
आलंबन ही प्रकाशित होता है। यही समाधि की दशा कहलाती है। अंतिम तीनों अंगों
का सामूहिक नाम 'संयम' है जिसके जिसके जीतने का फल है विवेक ख्याति का
आलोक या प्रकाश। समाधि के बाद प्रज्ञा का उदय होता है और यही योग का अंतिम
लक्ष्य है।
इसी विषय में पढ़िए हमारे इस लेख को भी -
सच्चा योगी कौन किसान या कसरती अर्थात योगी ?
योग और व्यायाम करने वाले जो परिश्रम करते हैं उससे पेट खाली तो होता है किंतु भरता नहीं है इसलिए ये अधूरा योग है जबकि किसान जो परिश्रम करते हैं उससे पेट भरता भी है और साफ भी होता है तथा किसान केवल अपना ही नहीं अपितु औरों का भी पेट भरते हैं अधिक परिश्रम करने के कारण पेट साफ तो होना ही है । इसलिए सच्चा एवं संपूर्ण योगी कौन ? see more...http://jyotishvigyananusandhan.blogspot.in/2015/04/blog-post_13.html
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