सीता हरण हमारी संत स्वरूप निष्ठा का ही दुखद परिणाम था !अन्यथा सीता जी कुटिया के बाहर नहीं भी आ सकती थीं !
जिसने अपने को
जो कुछ घोषित किया है और यदि वो नहीं हैं उसके अलावा बहुत कुछ है तो वो बेकार है
किसान तक जो फसल बोते हैं वही पौधे खेत में रहने देते हैं बाकी अच्छे पौधे
भी निराई कराकर हटा देते हैं भले वो बहुमूल्य ही क्यों न हों ! इसलिए हिंदू
धर्म केवल वेषभूषा है या आचार व्यवहार भी !इसका निर्णय हमें पहले करना
होगा !अन्यथा कोई भी हमारी स्वरूप निष्ठा जनित कमजोरी का लाभ उठाकर दे सकता
है कोई बड़ी चोट !जैसा माता सीता के साथ हुआ था । वैसे भी ऐसे तो बड़े बड़े ब्यापारी ब्यभिचारी राजनेता आदि अपने
अपने धंधे को बढ़ाने एवं स्थापित करने के लिए थोड़े थोड़े दिनों के लिए बन जाएँगे साधू संत और जब
धन संग्रह हो जाएगा तब अपनी अपनी कामना के अनुशार व्यापार ब्याभिचार
राजनीति आदि तरह तरह के धंधों में लग जाएँगे !मैं इन सब बातों को केवल इतना
गलत मानता हूँ कि विरक्त वेष भूषा के साथ अन्याय न हो क्योंकि वो हम सनातन
धर्मियों की अास्था और विरासत दोनों है उसकी रक्षा करना हमारा धर्म है ।
दूसरे लोग हमेंशा से गलत रहे हैं असुर हों या राक्षस किंतु हम हमेंशा अपने
धर्म और चरित्र के बल पर ही उनका मुकाबला कर पाए हैं और जीते हैं उनसे बड़े बड़े युद्ध !किंतु जब हमारे पास चरित्र ही नहीं रहेगा
तो हम पागलों की तरह केवल हिंदू हिंदू करते रहेंगे इससे बच जाएगा हिन्दू
धर्म क्या ? हमें केवल वेष भूषा पर ही नहीं अपितु आचरण और धर्म निष्ठा को भी ध्यान में रखना होगा !इसी आधार पर
किसी की पहचान करनी होगी और जो अपने शास्त्रीय धर्म कर्म से विमुख होगा वो किसी और के लिए प्रेरक कैसे हो सकता !
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