विज्ञान है या अंधविश्वास

   मानव जीवन को सहज एवं सरल बनाने की दृष्टि से विज्ञान का बहुत बड़ा योगदान है पाताल से लेकर आकाश तक प्रकृति से लेकर जीवन तक वैज्ञानिक प्रयासों के बल पर बहुत कुछ प्राप्त किया जा सका है |

   चिकित्सा के क्षेत्र में विज्ञान ने जहाँ एक ओर यंत्रों की सहायता से शरीर के अंगों प्रत्यंगों को देख समझकर रोगों की वर्तमान अवस्था का परीक्षण करने में अभूतपूर्व सफलता पाई है औषधि सेवन एवं ऑपरेशन के माध्यम से रोगमुक्ति दिलाने में विज्ञान ने मानवता की बहुत बड़ी सहायता की है इसके अतिरिक्त भी और बहुत सारी कठिनाइयों का समाधान खोजकर विज्ञान ने समाज का विश्वास जीता है |

      जहाँ एक ओर वैज्ञानिक सफलताओं के लिए विज्ञान एवं वैज्ञानिकों को महिमा मंडित किया जा सकता है वहीं दूसरी ओर रोगों का पूर्वानुमान लगाने में एवं जीवों के रोगी होने के आधारभूत वास्तविक एवं निश्चित कारणों की खोज कर पाने में विज्ञान अभी तक सक्षम नहीं हुआ है यही कारण है कि जो अनुमान लगाए जाते हैं वे अनेकों बार गलत निकल जाने के कारण उन पर विशवास नहीं हो पाता है और जो कारण बताए जाते हैं वे इतने अधिक काल्पनिक होते हैं कि मूल बिषय से उनका कहीं कोई प्रमाणित संबंध ही नहीं होता है |

     इसी प्रकार से किसी रोगी की सविधि चिकित्सा प्रारंभ करने के बाद भी उस रोगी पर चिकित्सा का प्रभाव कैसा और कितना पड़ेगा !इसका पूर्वानुमान लगाना यदि संभव हो पाता तो संभव है कि रोगी एवं रोगी के परिजनों को कुछ संभावित समस्याओं से बचाया जा सके किंतु ऐसा न हो पाने के कारण किसी रोगी की चिकित्सा पर भारी भरकम धन खर्च कर दिए जाने के बाद भी अंत तक संशय बना रहता है कि वह स्वस्थ होगा या नहीं या वह जीवित बचेगा या नहीं |

       विज्ञान के इतना आगे बढ़ जाने के बाद भी चिकित्सा लाभ के लिए चिकित्सालय में लाए जाने वाले रोगी के बिषय में यह पता लगा पाना संभव नहीं हो पाया है कि इतनी उच्चस्तरीय चिकित्सा का प्रभाव इस रोगी पर कैसा पड़ेगा !चिकित्सकीय प्रयासों के फलस्वरूप रोगी स्वस्थ होगा या अस्वस्थ रहेगा या मृत्यु को प्राप्त होगा | आखिर इस अनिश्चितता का कारण क्या है उस कारण की खोज किए बिना किसी रोगी के स्वस्थ होने का श्रेय चिकित्सा को कैसे दिया जा सकता है |उच्चस्तरीय चिकित्सकीय प्रयासों का लाभ लेने के बाद भी यदि चिकित्सा के अभाव में जीवन जीने वाले रोगियों की तरह ही परिस्थिति बनी रहती है तो चिकित्सकीय परिणामों का अलग से मूल्यांकन कैसे किया जाए ! क्योंकि स्वस्थ होने न होने या मृत्यु को प्राप्त हो जाने की संभावना तो दोनों में ही बराबर बनी रहती है | अंतर इतना अवश्य होता है कि जो चिकित्सा का लाभ ले रहे होते हैं वहाँ स्वस्थ होने की आशा अधिक रहती है इसके विपरीत निराशा पनपती है किंतु इस काल्पनिक आशा के अनुरूप परिणाम भी आएँगे ही ऐसा विश्वास  करने के लिए कोई तर्कसंगत वैज्ञानिक आधार नहीं होता है |

       कोरोना महामारी को ही ध्यान दिया जाए तो एक अभाव खटकता है कि किसी एक ही शहर में महामारी का असर सबपर एक समान पड़ने के बाद भी वहीँ रहने वाले बहुत लोग संक्रमित नहीं भी होते हैं !यदि महामारी किसी स्थान को अपने संक्रमण से संक्रमित करती है तो उसमें से जो लोग सक्रमित नहीं होते हैं उसका क्या कारण हो सकता है ?खैर जो भी कारण हो किंतु जो लोग संक्रमित नहीं हुए क्या उनके बिषय में पहले पूर्वानुमान लगाना संभव था कि इनमें से कौन कौन लोग कोरोना संक्रमण से संक्रमित हो सकते हैं उन पर अधिक ध्यान केंद्रित करके उनपर चिकित्सा के प्रिवेंटिव प्रयास किए जा सकते थे किंतु ऐसे लोगों के बिषय में पूर्वानुमान नहीं लगाए जा सके |  

       कई बार किसी सामान्य रोग से पीड़ित व्यक्ति को स्वास्थ्य लाभ के लिए चिकित्सालय ले जाया जाता है और सुयोग्य  द्वारा उच्चस्तरीय चिकित्सा प्रारंभ भी कर दी जाती है किंतु चिकित्सकाल में उस रोगी पर दवाओं का प्रभाव बिलकुल नहीं पड़ता है प्रत्युत रोग दिनों दिन बढ़ते बढ़ते रोगी एक दिन मृत्यु को प्राप्त हो जाता है जबकि अच्छे अच्छे विद्वान् चिकित्सक अच्छी से अच्छी औषधियों का उपयोग करते हुए संपूर्ण मनोयोग से चिकित्सा में लगे होते हैं |ऐसी परिस्थिति में चिकित्सकीय उद्देश्यों एवं प्रयासों के अनुरूप तो परिणाम नहीं ही आए अपितु परिणाम तो प्रयासों के विरुद्ध आए !

        ऐसी परिस्थिति में चिकित्सकीय प्रयासों के विरुद्ध परिणाम आने का निश्चित कारण क्या हो सकता है उसे खोजा  जाना चाहिए क्योंकि कई बार किसी रोगी के स्वस्थ होने की आशा में उसके परिजन संपूर्ण मनोयोग से लगे रहते हैं चिकित्सकीय खर्च उठाते उठाते कर्जे में डूब जाते हैं इसके बाद कई बार परिवार के उस सदस्य की मृत्यु भी हो जाती है |ऐसी परिस्थिति में जिसके घर में एक ही कमाने वाला हो वही इतनी महँगी चिकित्सा करने के बाद भी उस सघन चिकित्सकाल में ही मृत्यु को प्राप्त हो जाए ,बच्चे छोटे हों पत्नी घरेलू  महिला हों आमदनी का कोई स्रोत न हो ,चिकित्सा करवाने में कर्जा भी भारी भरकम हो गया हो तो वो घर अचानक संकट में डूब जाता है| ऐसी परिस्थिति में रोगी को चिकित्सालय लाए जाने पर यदि इस बात का पूर्वानुमान लगाया जा सका होता कि इसका बच पाना संभव नहीं होगा तो संभव है उसके परिजनों को अधिक कर्जी होने से बचाया जा सकता है | 

       ऐसी परिस्थिति में चिकित्सा वैज्ञानिकों के द्वारा यदि ऐसे अप्रिय परिणामों का  पूर्वानुमान किसी प्रयास से लगा पाना संभव हो पाता तो उस परिवार को कुछ मदद पहुँचाई जा सकती थी | 

    ऐसे प्रकरणों का गंभीर चिंतन करने से उस रोग ग्रस्त व्यक्ति पर दो शक्तियों का प्रभाव साफ दिखाई पड़ता है एक शक्ति की प्रेरणा से उस सर्वांग स्वस्थ जीवन जीते चले आ रहे किसी व्यक्ति के शरीर में अचानक रोगों का प्रवेश होने लगता है इसके बाद वे रोग बढ़ते चले जाते हैं और रोगी मृत्यु को प्राप्त हो जाता है | 

    दूसरी शक्ति वह है जो स्वस्थ रहने के लिए हितकारी खानपान पथ्य परहेज उचित आहार बिहार अनुकूल व्यायाम आदि से शरीर को स्वस्थ रखने के लिए प्रेरित करती है !इतना सबकुछ करने के बाद भी उन प्रयासों के विरुद्ध समयशक्ति के प्रभाव से कुछ लोग रोगी होने लगते हैं |उनके रोगी हो जाने के बाद चिकित्सकीय प्रयासों से उस रोगी को रोगमुक्त करने के लिए अच्छे से अच्छे चिकित्सकीय प्रयास किए जाते हैं | उन प्रयासों के विरुद्ध समयशक्ति के प्रभाव से कई बार रोगी अस्वस्थ ही बने रहते हैं और कई बार लाखों यत्न करने के बाद भी मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं | 

     इसप्रकार से होने वाली मृत्यु की यात्रा तो उसी दिन प्रारंभ हो चुकी थी जिस दिन उसके शरीर में रोग ऐसे होने प्रारंभ हुआ था !इतनी लंबी यात्रा करते हुए वह मृत्यु अपने परिणाम को प्राप्त हो गई !इसका पूर्वानुमान लगाने इसकी शक्तिका अनुमान क्यों नहीं लगाया जा सका !

  

     कुलमिलाकर रोग के कारण का ज्ञान हुए बिना इस बात  का पता लगा पाना संभव नहीं हो सकता कि उस कारण का प्रभाव चिकित्सा की अपेक्षा कितना अधिक प्रबल है जो कि चिकित्सकीय प्रयासों के विरुद्ध परिणाम देने में सक्षम हो जाता है | इसके साथ ही एक संशय भी होना स्वाभाविक ही है कि चिकित्सकीय प्रयासों के विरुद्ध परिणाम देने वाला कारण ही तो सर्व शक्तिमान नहीं है जो किसी रोगी के विरुद्ध होता है तो रोगी की मृत्यु हो जाती है और यदि रोगी के अनुकूल हो जाता है तो रोगी स्वस्थ हो जाता है | 

       इस प्रकार से रोगी के स्वस्थ होने का वास्तविक कारण कुछ और होता है किंतु चूँकि चिकित्सकीय प्रयास    रोगी को स्वस्थ करने के लिए किए जा रहे होते हैं इसलिए उसके स्वस्थ होने को चिकित्सकीय प्रयासों के परिणाम के रूप में स्वीकार कर लिया जाता है | यदि ऐसा न होता तब तो एक ही सिद्धांत होता कि जिस रोगी की चिकित्सा होगी वह स्वस्थ होगा ही और जिसकी चिकित्सा नहीं होगी वह अस्वस्थ रहेगा ही किंतु व्यवहार में ऐसा होते नहीं देखा जाता है | 

    बड़े बड़े शहरों में चिकित्सा की अत्याधुनिक सुविधाएँ होती हैं शहरों में रहने वाले साधन संपन्न लोग रोगी होने पर बड़े बड़े चिकित्सालयों से चिकित्सा लाभ लेकर स्वस्थ हो जाते हैं|इसे देखकर लगता है कि उनके स्वस्थ होने का कारण बड़े बड़े चिकित्सालयों से मिली उन्नत चिकित्सा का लाभ होगा |इस बात पर विश्वास किया जाए तो जिन स्थानों पर अच्छी चिकित्सा सुविधाएँ नहीं हैं वहाँ के लोगों को उस प्रकार का स्वास्थ्य लाभ नहीं होना चाहिए |वहाँ अस्वस्थ रहने वाले लोगों की संख्या चिकित्सकीय संसाधनों से संपन्न शहरों की अपेक्षा बहुत अधिक होनी चाहिए | 

    शहरों की तरह ही गाँवों और जंगलों में भी लोग रहते हैं गाँवों में चिकित्सा की उत्तम सुख सुविधाएँ नहीं होती हैं और सुदूर जंगलों में तो बिलकुल नहीं होती हैं | ऐसी जगहों में  रहने वाले लोग भी तो उनका बुरा समय आने पर रोगी होते देखे जाते हैं और वहाँ रहने वाले लोग भी बिना किसी औषधि प्रयोग के स्वस्थ भी होते देखे जाते हैं |ऐसी परिस्थिति में किसी रोगी के स्वस्थ होने का मुख्य कारण क्या हो सकता है ? 

      इसी प्रकार किसी के जीवन और मृत्यु का कारण यदि चिकित्सा की उपलब्धता या अभाव है तो साधन संपन्न शहरों में ही चिकित्सकीय उन्नत लाभ लेने वाले लोगों की आयु अधिक होनी चाहिए और मरने वाले लोगों की संख्या भी कम होनी चाहिए किंतु ऐसा नहीं है गाँव हो या शहर चिकित्सा मिले न मिले फिर भी जन्म और मृत्यु हर युग में एक जैसे अनुपात में ही घटित होते रहे हैं जिनका जन्म हुआ है उनकी मृत्यु भी हमेंशा से ही होती है | पहले प्राचीन चिकित्सा व्यवस्था थी अब अत्याधुनिक चिकित्सा सुविधाएँ हैं चिकित्सा पद्धतियों में समय के साथ साथ बदलाव होते रहे हैं किंतु लोगों का अस्वस्थ होना और अस्वस्थ होकर स्वस्थ हो जाना या मृत्यु को प्राप्त हो जाना हमेंशा एक जैसा घटित होता रहा है | ऐसी घटनाएँ जंगलों पहाड़ों गाँवों या शहरों में सभी जगह समान रूप से हमेंशा से ही घटित होती रही हैं | ऐसी परिस्थिति में किसी रोगी के स्वस्थ होने या उसके मृत्यु को प्राप्त होने या न होने में चिकित्सा की भूमिका क्या है ? 

      चिकित्सा किसी रोग की हो सकती है इसलिए कोई व्यक्ति जब रोगी हो जाता है चिकित्सा की भूमिका भी उसके बाद ही प्रारंभ होती है | कई बार बिना किसी रोग के भी अच्छे खासे खाते पीते स्वस्थ लोग भी अचानक मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं | जिनकी मृत्यु होने का कारण खोजने में वैज्ञानिक प्रक्रियाएँ सफल नहीं हो पाई हैं | 

       ऐसी घटनाएँ देखकर कई बार लगता है कि किसी की होने वाली मृत्यु उसके शरीर में होने वाले रोगों के आधीन नहीं है |मृत्यु स्वतंत्र है जो किसी के जीवन में कभी भी आ सकती है | बच्चा हो या बूढ़ा स्त्री हो या पुरुष स्वस्थ हो या अस्वस्थ किसी महामारी या दुर्घटना का शिकार हो या न हो मृत्यु अपने समय पर आ  ही  जाती है | यही कारण है कि भूकंप बज्रपात चक्रवात बाढ़ रेल बस या विमान दुर्घटना आदि में बहुत लोग एक साथ प्रभावित होते हैं किंतु उनमें से मृत्यु कुछ की ही होती है कुछ घायल होते हैं जबकि कुछ के खरोंच भी नहीं लगती है |

  इसी प्रकार से एक जैसे जितने भी रोगियों की एक जैसी चिकित्सा एक जैसी पद्धति से एक साथ की जाती है उन सब पर चिकित्सा के परिणाम एक जैसे नहीं निकलते कुछ रोगी स्वस्थ होते हैं कुछ अस्वस्थ रहते हैं और कुछ की मृत्यु हो जाती है |इसके कारण की खोज होनी चाहिए |

      इसलिए भूकंप बज्रपात चक्रवात बाढ़ रेल बस या विमान दुर्घटना आदि से प्रभावित लोगों पर भी प्राकृतिक आपदाओं का प्रभाव एक जैसा नहीं पड़ता है अलग अलग प्रभाव होने के कारण का अनुसंधान होना चाहिए | 

    कोरोना महामारी के समय में भी स्कूल कालेज व्यापारिक प्रतिष्ठान बाजारें यातायात साधन आदि सभी बंद कर दिए गए !संपूर्ण समाज में भय का वातावरण व्याप्त हो गया था | सरकारों के द्वारा लॉकडाउन करके समस्त समाज को कैद कर दिया गया !जहाँ एक ओर शोशलडिस्टेंसिंग ,एकांतबास, मास्कधारण एवं सैनिटाइजर का प्रयोग इस प्रकार से अनिवार्य कर दिया गया जैसे कोरोना महामारी से बचाव के लिए यही एक मात्र उपाय हो | ऐसे प्रयोगों से लाभ होगा या नहीं जैसी बातों पर बिचार किए बिना इन्हें चिकित्सा की तरह अनिवार्य बताकर ऐसी बातों को समाज पर थोपा  जाने लगा | रोजी रोजगार विहीन समाज की परिस्थितियों पर ऐसे प्रयासों का विपरीत प्रभाव पड़ा | 

       अंततः रोज रोज बदली जाने वाली भिन्न भिन्न प्रकार की वैज्ञानिक सलाहों से ऊभ कर समाज स्वयं अनुसंधान पूर्वक बिचार करने लगा कि घनी बस्तियों या फैक्ट्रियों में छोटी छोटी जगहों में बहुत बड़ी बड़ी संख्या में लोग एक साथ रह रहे हैं खा पी रहे हैं सोना जागना नहाना धोना आदि सभी कुछ साथ साथ ही करना पड़ता है किंतु वे सभी कोरोना संक्रमित नहीं हुए जिन देशों ने लॉकडाउन नहीं किया उन सभी देशों में संक्रमण बढ़ते नहीं देखा गया |गरीबों के बच्चे राशन एवं भोजन के लिए दिन दिन भर बिना मास्क के लाइनों में लगे रहते हैं उन्हें संक्रमण नहीं हुआ | दूसरी ओर बड़े बड़े साधन संपन्न लोग अपने अपने घरों में एकांत बॉस कर रहे हैं जबकि वे किसी को छूटे भी नहीं हैं बाहर का कुछ खाते नहीं वे कोरोना संक्रमित होते जा रहे हैं |  उन्होंने समझ लिया की ये संक्रमण नहीं अपितु प्रकृति का कुछ दूसरा ही खेल है जिसके विरुद्ध है उसे ही खतरा है सबको नहीं है ऐसा निश्चय करके लाखों की संख्या में श्रमिक लोग दिल्ली बंबई सूरत आदि से चिकित्सकीय सलाहों को चुनौती देते हुए पैदल निकले कई कई दिनों तक एक दूसरे के साथ चलते रहे जहाँ जो मिला खाते पीते बच्चे बूढ़े जवान स्त्री पुरुष यहाँ तक की गर्भिणी आसन्न प्रसव महिलाएँ भी निकल पड़ीं कई को तो रास्ते में प्रसव भी हुए किंतु ऐसे सभी लोग स्वस्थ बने रहे उनमें से किसी ने न मास्क पहना न सैनिटाइजर लिया और न ही किसी अन्य प्रकार की सावधानी ही बरती | 

       महामारियों को लेकर कई बड़े प्रश्न अनुत्तरित ही दफन हो जाते हैं -

     कोरोना संक्रमण यदि हवा में व्याप्त होता तो उस क्षेत्र के सभी जीवों एवं सभी मनुष्यों को प्रभावित होना चाहिए था किंतु उनमें से कुछ लोगों के संक्रमित होने का कारण क्या हो सकता है उनमें ऐसी कौन सी कमी रही होगी जिसके कारण वे संक्रमित हुए !संक्रमण बढ़ते समय क्या कोई ऐसी जाँच की जा सकती थी जिसके द्वारा इस बात का पूर्वानुमान लगाया जा सके कि इनमें से किसके संक्रमित होने की संभावना अधिक है |

प्रारंभ होती है जबकि गाँवों और जंगलों में चिकित्सा के आभाव गाँवों और जंगलों में शदियों से बहुत बड़ी संख्या में लोग रहते देखे जा रहे हैं वे भी स्वस्थ हैं उनकी संख्या भी अधिक है रहने वाले 

स्वस्थ रहते और मृत्यु को प्राप्त होते देखे जाते हैं | जंगलों में पशु आपस में एक दूसरे से लड़ते झगड़ते और घायल होते देखे जाते हैं बिना किसी चिकित्सा के भी घाव तो उनके भी भरते हैं और स्वस्थ तो वे भी होते हैं | 

    ऐसी परिस्थिति में किसी रोगी के स्वस्थ होने का कारण चिकित्सा है भी या नहीं और यदि है तो उसका प्रभाव किसी रोगी पर किस अनुपात में पड़ता है और उस दूसरे कारण का प्रभाव उस रोगी  पर कितना पड़ रहा होता है |उस दूसरे कारण के प्रभाव का परीक्षण किए बिना  पर पड़ने वाले चिकित्सा के प्रभाव का सही सही परीक्षा कर पाना संभव नहीं है | 

      

       

 . 

ते समय में दिखने वाला कोई रोगी ग से

 

विश्वसनीय सफलता प्राप्त कर पाना संभव नहीं हो पाया है|किसी के रोगी होने या स्वस्थ होने या मृत्यु होने के बिषय में पूर्वानुमान लगा पाना संभव नहीं हो पाया है | किसी एक प्रकार की चिकित्सा का प्रभाव कुछ एक जैसे रोगियों पर एक जैसा नहीं दिखाई पड़ता है | इसके अलग अलग प्रभाव होने का विश्वसनीय कारण नहीं खोजा जा सका है |बहुत सारी परिस्थितियों में चिकित्सा के प्रभाव का परीक्षण संभव नहीं हो पाया है | किसी के तनाव का संतोष जनक कारण खोज पाने में चिकित्साविज्ञान अभी तक असफल रहा है जबकि तनाव के कारण कई प्रकार के शारीरिक एवं मानसिक रोग होते देखे जाते हैं | | 

    इसी प्रकार से महामारी के बिषय में कुछ भी पता लगा पाने में चिकित्साविज्ञान अभी तक सफल नहीं हो पाया है | महारोगों का पूर्वानुमान लगा पाने से लेकर रोगों के लक्षण पहचानना उसकी दवा खोजना आदि कुछ भी संभव नहीं हो सका है | 

मौसम :

मानसून :

भूकंप :

वायु प्रदूषण :

जलवायु परिवर्तन :

 

उसके इसीलिए चिकित्सकाल में ही असर जीवों पर 

     

      वहीं दूसरी ओर जीवों के रोगी होने के पीछे के वास्तविक कारण खोज पाने में विश्वसनीय सफलता प्राप्त कर पाना संभव नहीं हो पाया है|अक्सर एक व्यक्ति के रोगी होने के लिए जो कारण जिम्मेदार बताए जाते हैं वही कारण दूसरे व्यक्ति में उस प्रकार के नहीं घटित होते हैं |जिन कारणों से किसी एक  व्यक्ति की मृत्यु होते देखी जाती है उन्हीं कारणों में दूसरे व्यक्ति को स्वस्थ होकर लंबी आयु तक जीवित रहते देखा जाता है | एक साथ 

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