हितकर जलवायु का निर्माण कैसे होता है !
किसी भी लोकतांत्रिक देश में जनता ही सर्वोपरि होती है | जनताके ही कंधों पर लोकतंत्र ढोया जाता है खुद भूखे रहकर भी लोकतंत्र को डूबने नहीं देती है उसे बचाकर रखती है | किसी देश में लोकतंत्र की सफलता का श्रेय वहाँ की जनता को ही दिया जा सकता है | इसीलिए लोकतंत्र में जनता को जनार्दन अर्थात भगवान् माना जाता है | जनसेवा के लिए अपनी सुख सुविधाओं को भोगने की भावना का विसर्जन करके समाज सेवा करने का पवित्र संकल्प लेना ही राजनीति है |यह बहुत बड़ा व्रत है | यह एक प्रकार का संन्यास है जिसमें अपना कुछ नहीं होता है निस्वार्थ भावना से अवशेष जीवन समाज सेवा में लगाने का नाम ही राजनीति है | सेवाधर्म बहुत पवित्र होता है शास्त्रों में सेवा धर्म को योगियों के लिए भी अगम्य कहा है - सेवाधर्मोपरमगहनोयोगिनामप्यगम्यः | जो लोग राजनैतिक जीवन जीते हुए पारिश्रमिक पाने का लोभ रखते हैं वो सेवाधर्म के अनुरूप नहीं है | ऐसे लोगों के प्रति जनता बहुत श्रृद्धा रखती है | ऐसे श्रृद्धापुरुष राजनेता लोग भी अपने प्रति बनी जनश्रृद्धा को प्राणों से अधिक प्रिय मानते हैं उसे सुरक्षित रखने हेतु जनता के लिए आवश्यकता पड़ने पर प्राण प्रण से समर्पित हो जाते हैं | ऐसी पवित्र आत्माओं के चिंतन में व्यक्तिगत पद और प्रतिष्ठा पाने की इच्छा कभी स्वप्न में भी नहीं आती है | उन्हें जो दायित्व मिलता है उसका संपूर्ण निष्ठा के साथ निर्वाह करते हैं | कार्य के निर्वाह में थोड़ी भी चूक हो जाने पर उसकी जिम्मेदारी अपने ऊपर लेते हुए पवित्रता पूर्वक उच्च से उच्च पदों का स्वेच्छा से त्याग कर दिया करते हैं |ये राजनेता का पवित्र स्वभाव होता है |
जनता के कार्यों को करने के लिए पारिश्रमिक (सैलरी) लेना सेवा नहीं अपितु दासता होती है | इसमें भी जो लोग ईमानदारी पूर्वक पारिश्रमिक लेकर अपने दायित्वों का जिम्मेदारी से निर्वाह करना पवित्र दासता है |जो दासता होने के बाद भी किसी व्यक्ति के स्वाभिमान को मरने नहीं देती है |इस स्वाभिमानी भावना के बलपर वह व्यक्ति अपने परिवारों की प्रतिष्ठा चरित्र शिक्षा संस्कार सदाचार आदि सुरक्षित बचाए रखता है |ऐसे लोगों पर उनकी पत्नी बच्चे तो गर्व करते ही हैं बहुएँ भी अपनी पहचान बताने के लिए गर्व से अपने श्वसुर का नाम लेती हैं | जैसे पठनशील विद्यार्थी को परीक्षा से भय नहीं होता है उसी प्रकार से ईमानदार निष्पाप लोगों को मृत्यु से कोई भय नहीं होता है | ऐसे प्रतिष्ठित लोग समाज के आदर्श होते हैं | इनका सदाचरण कलह मुक्त परिवारों के साथ साथ सदाचारी समाज का निर्माण करता है | ईमानदारी पूर्वक की गई खून पसीनेकी पवित्र कमाई से जिन परिवारों का भरण पोषण होता है ऐसे लोगों के घरों में कलहमुक्त वातावरण का निर्माण होता है बड़ों का सम्मान किया जाता है छोटों को स्नेह मिलता है सभी का मर्यादित आचरण होता है |स्त्री पुरुषों का चरित्रवान मर्यादाप्रधान संस्कारप्रिय ईश्वर भक्त अनुशासित जीवन होता है |
ऐसे परोपकार प्रिय सज्जनों की संख्या जिस देश प्रदेश आदि में जितनी अधिक होती है वहाँ प्रकृति भी उतना ही अनुकूल व्यवहार करती है |आवश्यकता के अनुशार उचित मात्रा में तापमान रहता है सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतुएँ उचित समय पर आती और उचित मात्रा में अपना प्रभाव छोड़ती हैं उचित समय पर विदा हो जाती हैं | सामाजिक सदाचरण के कारण समय से हितकारी वर्षा होती है प्रदूषण मुक्त आकाश रहता है | शीतल मंद सुगंधित वायुप्रवाह होता है | इससे पर्यावरण हितकर होता है स्वच्छ पर्यावरण के प्रभाव से संपूर्ण प्रकृति हितकारिणी हो जाती है अन्न आदि खाद्यपदार्थ स्वास्थ्य कर होते हैं |फल फूल शाक सब्जियाँ बनस्पतियाँ आदि हितकर उपलब्ध होती हैं इन सबका प्रभाव स्वास्थ्य पर पड़ता है और स्वास्थ्य उत्तम होता है | ऐसे सदाचरणों से सुपुष्ट शरीर विकार मुक्त होते हैं जिससे रोगमुक्त समाज का निर्माण होता है| जिससे कोरोना जैसी महामारियों की बात क्या कहें सामान्य रोगों का भय भी बिल्कुल नहीं होता है|ऐसे स्थानों पर भूकंप आँधी तूफ़ान बाढ़ बज्रपात महामारी आदि हिंसक प्राकृतिक घटनाएँ बहुत कम घटित होते देखी जाती हैं |
किसी भी देश प्रदेश के शासक जैसे जैसे आलसी कर्तव्य भ्रष्ट बेईमान होने लग जाते हैं वैसे वैसे राजनीति भ्रष्ट होती चली जाती है | ऐसे शासन में शासक न तो सेवक रह जाता है वह अपनी ही जनता के साथ लुटेरों जैसे आचरण करने लग जाते हैं | राजनेताओं के असंयम एवं अयोग्यता से राजनीति अपनी गुणवत्ता खोने लग जाती है | कुछ राजनेता लोग अपने दुर्गुणों से समाज को भयभीत करके तो दूसरे समाज की भूख मिटाने का आश्वासन देकर तथा तीसरे भ्र्ष्टाचार पूर्वक जनप्रतिनिधित्व का हरण करने में सफल हो जाते हैं | ऐसी आराजकता पूर्ण राजनैतिक गतिविधियों के कारण सेवाव्रती राजनेताओं की संख्या दिनों दिन कम होती चली जाती है |
जनसेवाव्रती जनप्रतिनिधियों के अभाव में जनसेवा के कार्य हो पाना तो दूर उनकी चर्चा भी नहीं हो पाती !आपराधिक भावना से राजनीति में आने वाले लोग चर्चा करने सुनने और समझने की अयोग्यता के कारण ऐसी चर्चाएँ होने ही नहीं देते |इसप्रकार से जनता की आवश्यकताओं की पूर्ति के उद्देश्य से आयोजित किए जाने वाले जनप्रतिनिधियों के आपसी विचारविमर्श मंच जनहित की चर्चा के अभाव में शोर शराबा मचाकर शांत कर दिए जाते हैं |इस प्रकार से शासन तंत्र अपराधियों के आधीन होता चला जाता है |राजनीति की चकाचौंध से प्रभावित होकर हमेंशा से जंगलों में छिपे रहने वाले अपराधी जंगलों को छोड़ छोड़कर राजनीति की मुख्यधारा में सम्मिलित होने लग जाते हैं | इस प्रकार से अपराधियों के अड्डों के नाम से कुख्यात स्थान पूरी तरह अपराध मुक्त हो जाते हैं | सेवाव्रती राजनेताओं के अभाव में शासन प्रशासन अपराधियों के आधीन होता चला जाता है |
अपराधियों के द्वारा किए जाने वाले अपराधों पर अंकुश लगाने का संकल्प लेकर नियुक्त किए जाने वाले अधिकारी कर्मचारी लोग अपराधियों की आज्ञापालन करते हुए निर्ममता पूर्वक जनता का शोषण करते हुए देखे जाते हैं | अधिकारियों के शोषण से भयभीत समाज अपना जीवन यापन करने के लिए अपराध से समझौता करने लग जाता है | सुख सुविधा भोगी शासकों प्रशासकों अधिकारियों कर्मचारियों से भयभीत व्यापारी वर्ग उन्हें घूस देने के लिए अपने ईमानदार व्यापार में मजबूरी बश मिलावट खोरी आदि अपराध करने लग जाता है | शासन प्रशासन को घूस देने भर के लिए अतिरिक्त आय करने हेतु वह खाद्य पदार्थों आदि में मिलावट खोरी करने लग जाता है | इन्हीं भ्र्ष्ट शासकों प्रशासकों अधिकारियों कर्मचारियों से भयभीत ग्वालों को इन्हें घूस देने के लिए अतिरिक्त आय करने हेतु दुग्धामृत में मिलावट करनी पड़ जाती है इससे जीवनदायी दुग्ध एवं उसके उत्पाद विषैले हो जाते हैं | इसी अपने छोटे छोटे कामों को करवाने के लिए सरकारी कर्मचारियों को मजबूरी में घूस देने के लिए किसानों को अतिरिक्त उपज प्राप्त करने हेतु फसलों में विषैले कैमिकलों का प्रयोग करना पड़ता है |
ऐसी परिस्थिति में राजा और प्रजा दोनों के कर्तव्य भ्रष्ट होते ही समाज का संतुलन बिगड़ने लगता है | अधर्माचरण का प्रभाव संपूर्ण चराचर प्रकृति पर पड़ता है |इससे सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतुएँ असंतुलित होने लगती हैं | जिस ऋतु का जब जो समय चल रहा होता है उस समय उस ऋतु का प्रभाव उसके अपने स्वभाव के अनुसार न पड़कर अपितु दूसरी ऋतुओं से प्रभावित होता है | वर्षाऋतु के समय में वर्षा का कम या अधिक होना |कहीं कम और कहीं अधिक और कहीं बहुत अधिक वर्षा होने जैसी घटनाएँ घटित होते दिखाई पड़ने लगती हैं |वर्षा की तरह ही सर्दी गर्मी आदि ऋतुओं के समय में भी ऐसा होते देखा जाता है | कभी तापमान बहुत कम हो जाता है और कभी बहुत अधिक बढ़ जाता है | इस असंतुलित ऋतु प्रभाव को ही ऋतुध्वंस या जलवायुपरिवर्तन कहा जाता है |
इसमें ऋतुओं का स्वभाव बदलने लगता है कई बार तो ऋतुओं का स्वभाव उनके अपने स्वभाव के ही विरुद्ध दिखाई पड़ने लगता है इसलिए इसे ऋतुओं का स्वभाव परिवर्तन या जलवायु परिवर्तन या ऋतुध्वंस कहा जाता है |
ऐसे विषैले समय के प्रभाव से सबसे पहले अग्नि तत्व पर पड़ता है अग्नि तत्व के कुपित हो जाने से आग लगने की भीषण दुर्घटनाएँ घटित होते देखी जाती हैं | अग्नि तत्व के प्रकोप से समस्त वातावरण का तापमान बढ़ने लगता है पृथ्वी का तापमान बढ़ने लगता है इससे ग्लेशियर पिघलने लग जाते हैं |तापमान असंतुलित होने का विपरीत प्रभाव संपूर्ण प्राकृतिक वातावरण पर पड़ने लग जाता है |विषैले समय के प्रभाव पर पड़ने से आकाश धूमिल होने लगता है उल्काएँ गिरने लगती हैं | हिंसक बज्रपात होते तथा बादल फटते देखे जाते हैं | यही समय संबंधी बिषैलेपन का प्रभाव पृथ्वी पर पड़ने से पृथ्वी में बार बार कंपन होने लगता है |यही विषैला प्रभाव वायु पर पड़ने से प्रकुपित वायु उत्तेजित होकर प्रदूषित हो जाती है | जिसके दुष्प्रभाव से हिंसक आँधी तूफ़ान चक्रवात आदि घटनाएँ घटित होते देखी जाती हैं | समय संबंधी यही प्रभाव जल तत्व पर पड़ने से प्रकुपित जल प्रदूषित होने लग जाता है | जल के प्रकुपित होने से इसका संतुलन इतना अधिक बिगड़ जाता है कि कहीं जल का अभाव कहीं प्रदूषित जल एवं कहीं कहीं भीषण बाढ़ के दुर्दृश्य घटित होने लगते हैं |
कुल मिलाकर समय संबंधी विषैले प्रभाव से आकाश पृथ्वी वायु और जल आदि में स्वास्थ्य विरोधी प्रदूषित तत्व सक्रिय होने लगते हैं और समस्त प्राकृतिक वातावरण जीवन के लिए अहितकर एवं हिंसक हो जाता है | पेड़ पौधे वृक्ष बनस्पतियाँ आदि ऋतुओं के विपरीत व्यवहार करते देखी जाती हैं| अपनी ऋतु को भूलकर दूसरी ऋतुओं में फलफूल आदि देने लग जाती हैं | आनाज फल फूल शाक सब्जी आदि के गुण और दोषों में भारी बदलाव आता है जिनके सेवन से रोग कारक विकार आने लगते हैं |दूध घी जैसे पौष्टिक माने जाने वाले पदार्थ भी विपरीत गुणों को ग्रहण कर लेने के कारण स्वास्थ्य के लिए हितकर नहीं रह जाते हैं | यहाँ तक कि जो बनस्पतियाँ बनौषधियाँ आदि जिन गुणों के लिए जानी जाती रही हैं समय प्रभाव से उनमें वे गुण रह ही नहीं जाते हैं |
समय जनित यह दुष्प्रभाव जब जीव जंतुओं पर पड़ता है तब वे अपने स्वाभाविक आचरणों के विरुद्ध प्रकुपित होकर हिंसक होने लग जाते हैं |
इसी समय जनित प्रदूषण का प्रभाव जब मनुष्य जीवन पर पड़ता है तब मनुष्य अपने स्वभाव के विरुद्ध आचरण करने लग जाते हैं उनमें सहिष्णुता का अभाव एवं क्रोध उत्तेजना हिंसा आदि की भावना जगने लग जाती है |लोग अपने परिचितों से मिलने बोलनेचालने एवं एक दूसरे के घर आने जाने से कतराने लगते हैं | सामान्य कारणों में भी हिंसा होते देखी जाती है |पति पत्नी पिता पुत्र माँ बेटा भाई भाई तथा भाई बहन आदि एक दूसरे से दूरी बनाने लग जाते हैं |धन और बासना प्रधान जीवन होने लगता है | जीवन समाज में अकारण आंदोलन दंगा हिंसा से दुर्दृश्य दिखाई पड़ने लगते हैं | उग्रवाद आतंकवाद जैसी दुर्घटनाएँ घटित होने लगती हैं | दो या दो से अधिक राष्ट्रों में आपसी तनाव युद्ध उन्माद आदि के समीकरण बढ़ते देखे जाते हैं | लोगों को समूहों को संप्रदायों को देशों को एक दूसरे के प्रति संशय होने लगता है एक दूसरे से विश्वास उठने लग जाता है |लोग छोटी छोटी बातों में अत्यंत आत्मीय संबंधों को भी छोड़ देते हैं |
इससे मनुष्य समेत समस्त जीव जंतु हमेंशा जिस वातावरण में रहते रहे होते हैं उससे वे परिचित होते हैं उसमें थोड़ा भी बदलाव होते ही उसके प्रभाव में परिवर्तन होते देखा जाता है | भूकंप तूफ़ान चक्रवाती वर्षा बाढ़ आदि आने से पहले से उस क्षेत्र के प्राकृतिक वातावरण में बड़ा बदलाव आने लगता है | इसीलिए किसी क्षेत्र में भीषण बाढ़ भूकंप आदि बड़ी प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने से कुछ समय पहले से छोटे बड़े सभी प्रकार के जीव जंतुओं के मन में बेचैनी बढ़ने लगती है इसलिए वे अपने अपने स्वभाव से अलग हटकर भिन्न भिन्न प्रकार के आचरण करते देखे जाते हैं |
इस प्रकार से खान पान प्रदूषित होते जाने के कारण शरीरों की प्रतिरोधक क्षमता समाप्त होने लग जाती है जिससे बिना किसी रोग के ही शरीर स्वतः सड़ने लग जाते हैं |ऐसे जीर्ण शीर्ण शरीरों में पहुँचकर छोटे छोटे रोग भी उसीप्रकार भयंकर स्वरूप धारण कर लिया करते हैं जिस प्रकार से ज्वलन शील पदार्थों के संपर्क में आने से आग की छोटी चिनगारी भी विशाल रूप धारण कर लिया करती है |
इसप्रकार से निरंकुश एवं भ्रष्टसरकारों के सहयोग सेशासनप्रशासन के स्तर होने वाले पाप के परिणाम स्वरूप समाज रोगी होने लगता है बिना महामारी के भी चिकित्सालयों में भारी भीड़ें उमड़ने लगती हैं |मन रोगी होने से हैरान परेशान समाज अपराधों की ओर मुड़ने लगता है उसके संस्कार खान पान रहन सहन स्वजनों से संबंध आदि सबकुछ बिगड़ने लगते हैं |
अपराधों से अर्जितआय से यदि चिकित्सा करवाई जाती है तो उससे उतना लाभ नहीं आता है जितना ईमानदारी से अर्जित धन से लाभ होता है| अन्याय से अर्जित विषैले धन से प्राप्त किए जाने कारण अत्यंत शक्तिप्रद रसायन और सुपौष्टिकपदार्थ भी ऐसे शरीरों पर अपना विषैला प्रभाव छोड़ते हैं | ऐसी परिस्थिति में महामारियों के फैलने में समय नहीं लगता है |
ऐसी परिस्थिति में भ्रष्टाचार के कारण पहले तो शरीरों की प्रतिरोधक
क्षमता नष्ट हो चुकी होती है | दूसरी बात अन्यायार्जित धन से कितने भी
पौष्टिक पदार्थ क्यों न खाए जाएँ उनसे प्रतिरोधक क्षमता नहीं बन पाती है |
अन्यायार्जित धन से की गई चिकित्सा से स्वास्थ्य लाभ होना अत्यंत कठिन होता
है | ऐसी परिस्थिति में किसी का रोगी होना आसान हो जाता है | ऊपर से
चिकित्सा का भी प्रभाव न पड़े तो रोग बढ़ते जाना स्वाभाविक ही है | ऐसे लोगों
की संख्या जब बहुत अधिक बढ़ जाती है तो एक साथ बहुत लोग अस्वस्थ होने लगते
हैं और बिषैले धन से सुख सुविधाएँ भोगते रहने के कारण उन्हें किसी औषधि से
कोई लाभ नहीं होता है | पापों का प्रायश्चित्त होते ही वे स्वयं स्वस्थ
होने लगते हैं |
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