भूमिका copy

                         'समयशास्त्र' (ज्योतिष) के बिना अधूरा है चिकित्साशास्त्र !

    सुश्रुत संहिता में भगवान धन्वंतरि कहते हैं कि आयुर्वेद का उद्देश्य है रोगियों की रोग से मुक्ति और स्वस्थ पुरुषों के स्वास्थ्य की रक्षा !अर्थात रोगों के पूर्वानुमान के आधार पर द्वारा भविष्य में होने वाले रोगों की रोक थाम ! 'स्वस्थस्यरक्षणंच'आदि आदि ! किंतु भविष्य में होने वाले रोगों का पूर्वानुमान लगाकर रोग होने से पूर्व सतर्कता कैसे वरती जाए !अर्थात 'समयशास्त्र' (ज्योतिष) के बिना ऐसे पूर्वानुमानों की कल्पना कैसे की जा सकती है ! इसके लिए भगवान धन्वंतरि कहते हैं कि इस आयुर्वेद में ज्योतिष आदि शास्त्रों से संबंधित विषयों का वर्णन जगह जगह जो आवश्यकतानुसार आया है उसे ज्योतिष आदि शास्त्रों  से  ही पढ़ना  और समझना चाहिए !क्योंकि एक शास्त्र में ही सभी शास्त्रों का समावेश करना असंभव है ।'अन्य शस्त्रोपपन्नानां चार्थानां' आदि ! दूसरी बात उन्होंने कही है कि किसी भी विषय में किसी एक शास्त्र को पढ़कर शास्त्र के निश्चय को नहीं जाना जा सकता इसके लिए जिस चिकित्सक ने बहुत से शास्त्र पढ़े हों वही  चिकित्सक शास्त्र के निश्चय को समझ सकता है । 
                 " तस्मात् बहुश्रुतः शास्त्रं विजानीयात्चिकित्सकः ||"
                                                                                    -सुश्रुत संहिता
        'आयुर्वेद ' में दो शब्द  होते हैं 'आयु' और 'वेद' ! 'आयु ' का अर्थ है शरीर और प्राण का संबंध ! 
'शरीर प्राणयोरेवं संयोगादायुरुच्यते !' 'वेद' का अर्थ है 'जानो ' अर्थात शरीर और प्राणों के संबंध को समझो ! ये है आयुर्वेद शब्द का अर्थ ।  प्राणों की चर्चा पूरे आयुर्वेद में अनेकों स्थलों पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर देखी जा सकती है चूँकि आयु की दृष्टि से शरीर सबसे कमजोर कड़ी है ये इतना नाजुक है कि कभी भी कहीं भी कैसे भी बीमार आराम नष्ट  आदि कुछ भी हो सकता है इसलिए प्रत्यक्ष तौर पर शरीर की चिंता ही सबसे ज्यादा दिखती है !यहाँ प्राणों की भूमिका बड़ी होते हुए उसकी चर्चा कुछ कम और शरीर की चर्चा अधिक की गई है !फिर भी जीवन के लिए हितकर  द्रव्य,गुण और कर्मों के उचित  मात्रा  में सेवन से आरोग्य मिलता है एवं अनुचित सेवन से मिलती हैं बीमारियाँ ! यही हितकर और अहितकर द्रव्य गुण और  कर्मों के सेवन और त्याग का विधान आयुर्वेद में किया गया है । ' 
                               चिकित्सा शास्त्र में समयशास्त्र का महत्त्व 
     आरोग्य लाभ के लिए हितकर द्रव्य गुण और  कर्मों का सेवन करने का विधान करता है आयुर्वेद ये सत्य है किंतु हितकर द्रव्य गुण और  कर्मों का सेवन करके भी स्वास्थ्य लाभ तभी होता है जब  रोगी का समय भी रोगी के अनुकूल हो !अन्यथा अच्छी से अच्छी औषधि लेने पर भी अपेक्षित लाभ नहीं होता है । कई बार एक चिकित्सक एक जैसी बीमारी के लिए एक जैसे कई रोगियों का उपचार एक साथ करता है किंतु उसमें कुछ को लाभ होता कुछ को नहीं भी होता हो उसी दवा के कुछ को साइड इफेक्ट होते भी देखे जाते हैं !ये परिणाम में अंतर होने का कारण  उन रोगियों का अपना अपना समय है अर्थात चिकित्सक एक चिकित्सा एक जैसी किंतु रोगियों के अपने अपने समय के अनुसार ही औषधियों का परिणाम होता है कई बार एक जैसी औषधि होते हुए भी दो एक जैसे रोगियों पर परस्पर विरोधी परिणाम देखने को मिलते हैं !
     जिस व्यक्ति का जो समय अच्छा होता है उसमें उसे बड़े रोग नहीं होते हैं आयुर्वेद की भाषा में उसे साध्य रोगी माना जाता है ऐसे रोगियों को तो ठीक होना ही होता है उसकी चिकित्सा  हो या न हो चिकित्सा करने पर जो घाव 10 दिन में भर जाएगा !चिकित्सा न होने से महीने भर में भरेगा बस !यही कारण  है कि जिन लोगों को गरीबी या संसाधनों के अभाव में चिकित्सा सुविधा नहीं मिल पाती है जैसे जंगल में रहने वाले बहुत से आदिवासी लोग या पशु पक्षी आदि भी बीमार होते हैं या लड़ते झगड़ते हैं चोट लग जाती है बड़े बड़े घाव हो जाते हैं फिर भी जिन जिन का समय अच्छा होता है वो सब बिना चिकित्सा के भी समय के साथ साथ धीरे धीरे स्वस्थ हो जाते हैं !
       जिसका जब समय मध्यम होता है ऐसे समय होने वाले रोग कुछ कठिन होते हैं ऐसे समय से पीड़ित रोगियों को कठिन रोग होते हैं इन्हें आयुर्वेद की भाषा में कष्टसाध्य रोगी माना जाता है इन्हें सतर्क चिकित्सा से आयु पर्यंत यथा संभव के  सुरक्षित किया जा सकता है अर्थात आयु अवशेष होने के कारण मरते नहीं हैं और सतर्क चिकित्सा के कारण घसिटते नहीं हैं अस्वस्थ होते हुए भी औषधियों के बल पर काफी ठीक जीवन बिता लिया करते हैं किंतु जब तक समय अच्छा नहीं होता तब तक पूरी तरह स्वस्थ नहीं हो पाते हैं !कई बार वह मध्यम समय बीतने के बाद कुछ रोगियों का अच्छा समय भी आ जाता है जिसमें वे पूरी तरह स्वस्थ होते देखे जाते हैं ऐसे समय वो जिन जिन औषधियों उपचारों या चिकित्सकों के संपर्क में होते हैं अपने स्वस्थ होने का श्रेय उन्हें देने लगते हैं कई कोई इलाज नहीं कर रहे होते हैं वो भगवान को श्रेय देने लगते हैं !
           इसी प्रकार से जिनका जो समय ख़राब होता हैं उन्हें ऐसे समय में जो रोग होते हैं वे किसी भी प्रकार की चिकित्सा से ठीक न होने के लिए ही होते हैं इन्हें आयुर्वेद की भाषा में 'असाध्य रोग' कहा जाता है !ये चिकित्सकों चिकित्सापद्धतियों एवं औषधियों के लिए चुनौती होते हैं । ऐसे रोगियों पर योग आयुर्वेद आदि किसी भी विधा का कोई असर नहीं होता है ऐसे समय में गरीब और साधन विहीन लोगों की तो छोड़िए बड़े बड़े राजा महराजा तथा सेठ साहूकार आदि धनी वर्ग के लोग जिनके पास चिकित्सा के लिए उपलब्ध बड़ी बड़ी व्यवस्थाएँ हो सकती हैं किंतु उनका भी वैभव काम नहीं आता है और उन्हें भी गम्भीर बीमारियों से बचाया नहीं जा पाता है !ऐसे समय कई बार प्रारम्भ में दिखाई पड़ने वाली छोटी छोटी बीमारियाँ   इलाज चलते रहने पर भी बड़े से बड़े रूप में बदलती चली जाती हैं छोटी छोटी सी फुंसियाँ कैंसर का रूप ले लेती हैं ।
         ऐसी परिस्थिति में इस बात पर विश्वास  किया जाना चाहिए कि जिस रोगी का जब जैसा अच्छा बुरा समय होता है तब तैसी बीमारियाँ होती हैं और उस पर औषधियों का असर भी उसके समय के अनुसार ही होता है । जिसका समय ठीक होता है ऐसे रोगी का इलाज करने पर उसे आसानी से रोग से मुक्ति मिल जाती है इसलिए ऐसे डॉक्टरों को आसानी से यश लाभ हो जाता है !
         इसलिए चिकित्सा में सबसे अधिक महत्त्व रोगी के समय का होता है जिसका समय अच्छा होता है ऐसे लोगों पर रोग भी छोटे होते हैं इलाज का असर भी जलदी होता है इसके साथ साथ ऐसे लोग यदि किसी दुर्घना का भी शिकार हों तो अन्य लोगों की अपेक्षा इन्हें चोट कम आती है या फिर बिलकुल नहीं आती है एक कर पर चार लोग बैठे हों तो और एक्सीडेंट हों टी कई बार देखा जाता है कि तीन लोग नहीं बचे किंतु एक को खरोंच भी नहीं आती है क्योंकि उसका समय अच्छा चल  रहा होता है । 
 भूतविद्या -आयुर्वेद के 6 अंगों में से चौथे अंग का नाम है भूत विद्या !इसी भूत विद्या के अंतर्गत महर्षि सुश्रुत कहते हैं कि देव असुर गन्धर्व यक्ष राक्षस पिटर पिशाच नाग ग्रह आदि के आवेश से दूषित मन वालों की  शांति कर्म ही भूत विद्या है । इसमें ग्रहों का वर्णन भी आया है !
       जिनका समय मध्यम होता है ऐसे लोग इस तरह के विकारों से  तब तक ग्रस्त रहते हैं जब तक  समय मध्यम रहता है ऐसे रोगी इन आवेशों के  कारण ही अचानक कभी बहुत बीमार हो जाते हैं और कभी ठीक हो जाते हैं जाँच होती है तो इनकी छाया हट जाती है और फिर पीड़ित करने लगती है ऐसे में जाँच रिपोर्टों में कुछ आता नहीं है और बीमारी बढ़ती चली जाती है दूसरी बात ऐसे लोग जहाँ जहाँ इलाज के लिए जाते हैं वहाँ वहाँ इन्हें एक बार एक दो बार फायदा मिल जाता है फिर वहीँ पहुँच जाते हैं इसीलिए ऐसे लोगों का चिकित्सा की सभी पद्धतियों पर भरोसा जमता चला जाता है किंतु पूरा लाभ कहीं से नहीं होता है यहाँ तक कि तांत्रिकों आदि पर भी ऐसी परिस्थिति में ही लोग भरोसा करने लगते हैं !जबकि सारा दोष इनके समय की खराबी का होता है । 
       समय स्वयं ही  सबसे बड़ी औषधि है -
       किसी को कोई बीमारी हो जाए और उसे कितनी भी अच्छी दवा क्यों न दे दी जाए किंतु लोग समय से ही स्वस्थ होते देखे जाते हैं चिकित्सा न होने पर स्वस्थ होने में समय कुछ अधिक लगता है और चिकित्सा होने पर  समय कुछ कम लग जाता है ।विशेष बात ये भी है कि औषधि किसी को कितनी भी अच्छी क्यों न दे दी जाए किंतु ठीक वही होते हैं जिन्हें ठीक होना होता है यदि  ऐसा न होता तो बड़े बड़े राजा महाराजा सेठ साहूकार आदि सुविधा सम्पन्न बड़े बड़े धनी लोग हमेंशा हमेंशा के लिए स्वस्थ अर्थात अमर हो जाते !इससे सिद्ध होता है कि जीवनरक्षा की दृष्टि से चिकित्सा बहुत कुछ है किंतु सबकुछ नहीं है ।इसमें समय की भी बहुत बड़ी भूमिका है इसलिए समय का भी अध्ययन किया जाना चाहिए ।


महामारी आदि सामूहिक बीमारियाँ होने के कारण -
        जब अश्विनी आदि नक्षत्र चन्द्र सूर्य आदि ग्रहों के विकार से समय दूषित हो जाता है उससे  ऋतुओं में विकार आने लगते हैं और समय में विकार आते ही देश और समाज पर उसका दुष्प्रभाव दिखने लगता है इससे वायु प्रदूषित होने लगती है और वायु प्रदूषित  होते ही जल दूषित होने लगता है और जब इन चारों चीजों में प्रदूषण फैलने लगता है तब विभिन्न प्रकृति वाले स्त्री पुरुषों को एक समय में एक जैसा  रोग हो जाता है । यथा -"वायुरुदकं देशः  काल इति "-चरक संहिता
     वायु से जल और जल से देश और देश से काल अर्थात समय सबसे अधिक बलवान होता है !
  " वाताज्जलं जलाद्देशं देषात्कालं स्वभावतः "-चरक संहिता  
 महामारियाँ फैलते समय बनौषधियाँ भी गुणहीन हो जाती हैं !
     इसीलिए समय के विपरीत होने पर प्रकृति में दिखने वाले उत्पातों के फल जब प्रकट होते हैं तो सामूहिक रूप से बीमारियाँ फैलने लगती हैं कई बार तो यही बीमारियाँ महामारियों तक का रूप ले जाती हैं !जब नक्षत्र चन्द्र सूर्य आदि ग्रहों के विकारों के फल स्वरूप फल स्वरूप समाज में महामारियाँ फैलती हैं तो इनमें लाभ करने वाली बनौषधियाँ भी ग्रह विकारों के दुष्प्रभावों से इतना प्रभावित होती हैं कि महामारियों में लाभ करने वाले गुणों से हीन  हो जाती हैं अर्थात वो बनौषधियाँ अपने जिन गुणों के कारण जिन रोगों से मुक्ति दिलाने में सक्षम होने के कारण प्रसिद्ध होती हैं किंतु महामारी फैलते समय उन औषधियों से भी उन गुणों का लोप हो जाता है ।इसलिए  ऐसी महामारियाँ फैलने का समय आने से पहले यदि बनौषधियों  का संग्रह कर लिया जाए तो वो बनौषधियाँ  महामारी फैलने के समय भी बीमारियों से लड़ने में सक्षम होती हैं क्योंकि प्राकृतिक उत्पातों का समय प्रारम्भ होने से पहले ही उनका संग्रह कर लिया जा चुका होता है ।
         यहाँ सबसे बड़ा प्रश्न ये है कि महामारी फैलने से पहले ये पता कैसे चले ?
        कब महामारी फैलने वाली है और बिना पता चले ऐसे किन किन बनौषधियों  का कितना संग्रह किया जा सकता है !इसका उत्तर देते समय चरक संहिता में कहा गया है कि भगवान पुनर्वसुआत्रेय आषाढ़ के महीने में गंगा के किनारे बनों में घूमते हुए अपने शिष्य पुनर्वसु से बोले "देखो -स्वाभाविक अवस्था में स्थित अश्विनी आदि नक्षत्र चन्द्र सूर्य आदि ग्रह ऋतुओं में विकार करने वाले देखे जाते हैं इस समय शीघ्र ही पृथ्वी भी औषधियों के रस वीर्य विपाक तथा प्रभाव को यथावत उत्पन्न न करेगी इससे रोगों का होना अवश्यंभावी है अतएव जनपद विनाश से पूर्व भूमि के रस रहित होने से पूर्व औषधियों के रस,वीर्य,विपाक और प्रभाव के नष्ट होने से पूर्व बनौषधियों का संग्रह कर लो समय अाने पर हम इनके रस वीर्य विपाक तथा प्रभाव का उपयोग करेंगे !इससे जनपद नाशक विकारों को रोकने में कुछ कठिनाई नहीं होगी !"यथा -
  " दृश्यंते हि खलु सौम्य नक्षत्र ग्रह चंद्रसूर्यानिलानलानां दिशां च प्रकृति भूतानामृतु  वैकारिकाः भावाः "-चरक संहिता          
 मेरे कहने का आशय  यह है कि भगवान पुनर्वसुआत्रेय जी को  'समय शास्त्र (ज्योतिष)' का ज्ञान होने के कारण ही तो पता लग पाया कि आगे जनपद विद्ध्वंस  होने जैसी परिस्थिति पैदा  होने वाली है तभी संबंधित बीमारियों में लाभ करने वाली बनौषधियों के संग्रह के विषय में वे निर्णय ले सके ! सुश्रुत संहिता में तो ऐसे खराब ग्रह योगों को काटने के लिए प्रायश्चित्त एवं ग्रहों की शांति करने का विधान कहा गया है -
                                            प्रायश्चित्तं प्रशमनं चिकित्सा शांतिकर्म  च  । 
                                                                                                   -  सुश्रुत संहिता          

इसलिए चिकित्सा शास्त्र के लिए बहुत आवश्यक है 'समय शास्त्र (ज्योतिष)' का अध्ययन ! इसके बिना चिकित्सा शास्त्र  का सम्यक निर्वाह कर पाना कठिन ही नहीं अपितु असम्भव भी है । 

    महामारी आदि सामूहिक बीमारियाँ होने के कारण -
        जब अश्विनी आदि नक्षत्र चन्द्र सूर्य आदि ग्रहों के विकार से समय दूषित होता है उससे  ऋतुओं में विकार आने लगते हैं और समय में विकार आते ही देश और समाज पर उसका दुष्प्रभाव दिखने लगता है इससे वायु प्रदूषित होने लगती है और वायु प्रदूषित  होते ही जल दूषित होने लगता है और जब इन चारों चीजों में प्रदूषण फैलने लगता है तब विभिन्न प्रकृति वाले स्त्री पुरुषों को एक समय में एक जैसा  रोग हो जाता है । यथा -"वायुरुदकं देशः  काल इति "-चरक संहिता
     वायु से जल और जल से देश और देश से काल अर्थात समय सबसे अधिक बलवान होता है !
  " वाताज्जलं जलाद्देशं देषात्कालं स्वभावतः "-चरक संहिता  
     इसीलिए समय के विपरीत होने पर प्रकृति में दिखने वाले उत्पातों के फल जब प्रकट होते हैं तो सामूहिक रूप से बीमारियाँ फैलती हैं कई बार तो ये महामारियों तक का रूप ले जाती हैं !जब प्राकृतिक उत्पातों के फल स्वरूप महामारियाँ फैलती हैं तो हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि उन महामारियों में लाभ करने वाली औषधियों पर भी उन उत्पातों का असर देखा जाता है उनके गुणों में भी कमी आ जाती है । वो अपने जिन गुणों के कारण जिन रोगों से मुक्ति दिलाने में सक्षम होने के कारण प्रसिद्ध होती हैं किंतु महामारी फैलते समय उन औषधियों से भी उन गुणों का लोप हो जाता है अर्थात वो औषधियाँ गुण हीन हो जाती हैं । ऐसी महामारियाँ फैलने का समय आने से पहले यदि बनौषधियों  का संग्रह कर लिया जाए तो वो बनौषधियाँ  महामारी फैलने के समय भी बीमारियों से लड़ने में सक्षम होती हैं क्योंकि प्राकृतिक उत्पातों का समय प्रारम्भ होने से पहले ही उनका संग्रह कर लिया गया था ।
         यहाँ सबसे बड़ा प्रश्न ये है कि महामारी फैलने से पहले ये पता कैसे चले ?
        कब महामारी फैलने वाली है और बिना पता चले ऐसे किन किन बनौषधियों  का कितना संग्रह किया जा सकता है !इसका उत्तर देते समय चरक संहिता में कहा गया है कि भगवान पुनर्वसुआत्रेय आषाढ़ के महीने में गंगा के किनारे बनों में घूमते हुए अपने शिष्य पुनर्वसु से बोले "देखो -स्वाभाविक अवस्था में स्थित अश्विनी आदि नक्षत्र चन्द्र सूर्य आदि ग्रह ऋतुओं में विकार करने वाले देखे जाते हैं इस समय शीघ्र ही पृथ्वी भी औषधियों के रस वीर्य विपाक तथा प्रभाव को यथावत उत्पन्न न करेगी इससे रोगों का होना अवश्यंभावी है अतएव जनपद विनाश से पूर्व भूमि के रस रहित होने से पूर्व औषधियों के रस,वीर्य,विपाक और प्रभाव के नष्ट होने से पूर्व बनौषधियों का संग्रह कर लो समय अाने पर हम इनके रस वीर्य विपाक तथा प्रभाव का उपयोग करेंगे !इससे जनपद नाशक विकारों को रोकने में कुछ कठिनता नहीं होगी !"यथा -
         " दृश्यंते हि खलु सौम्य नक्षत्र ग्रह चंद्रसूर्यानिलानलानां दिशां च प्रकृति भूतानामृतु  वैकारिकाः भावाः "-चरक संहिता  
              

मनोरोग -
  सुश्रुत संहिता में शारीरिक रोगों के लिए तो औषधियाँ बताई गई हैं  किंतु मनोरोग के लिए किसी औषधि का वर्णन न करते हुए उन्होंने कहा कि इसके लिए शब्द स्पर्श रूप रस गंध आदि का सुखकारी प्रयोग करना चाहिए !
    यथा -  "मानसानां तु शब्दादिरिष्टो वर्गः सुखावहः |' 





 


       काल (समय) - ब्रह्मांड में सबकुछ समय के अनुसार ही हो रहा है !
      पूर्व कर्मों के अनुसार हर किसी के साथ सभी प्रकार से अच्छा या बुरा होता है सुख दुःख भी सबको उसके पूर्व कर्मों के आधार पर मिलता है इसके साथ यह भी निश्चित होता है कि स्त्री पुरुषों के किस कर्म का फल जीवन के किस वर्ष या किस उम्र में मिलेगा । बीमारियाँ भी तो कर्मों का ही फल हैं यही कारण है कि चिकित्सक जिस बीमारी का इलाज कर रहे होते हैं उनके अत्यन्त चिकित्सा करने 

समय दो प्रकार का होता है -एक सारे संसार को नष्ट करने वाला और दूसरा जिससे गणना की जाती है दिन महीना वर्ष आदि !
     लोकानामंतकृत कालः कालोन्यः कलनात्मकः -सूर्य सिद्धान्त
    इसी बात को दूसरी जगह दूसरे रूप में कहा गया है कि समय ही सारे संसार को जन्म देता है और समय ही संहार करता है -
                                      " कालः सृजति भूतानि कालः संहरति प्रजाः । "
 जन्म और मृत्यु के अलावा भी इस संसार में जितने परिवर्तन होते हैं वो सब समय के कारण ही होते हैं जो  बच्चा जन्म लेता है इसके बाद बढ़ता है युवा होता है बुड्ढा होता है इसके बाद मृत्यु हो जाती है इन सारी  प्रक्रियाओं में संपूर्ण भूमिका ही समय की होती है क्योंकि जवानी बुढ़ापा आदि कोई भी अवस्था प्राप्त करने या रोक कर रखने पर मनुष्य का अपना कोई बश नहीं होता है सब कुछ होता जा रहा है बश !इस प्रकार से समय के अनेकों स्वरूप हैं । इसी तरह समय के अनेकों स्वाद हैं मिर्चे का छोटा फल कडुआ नहीं होता ,गन्ने का छोटा पौधा मीठा नहीं होता किंतु समय का संग पाकर ही मिर्चा कडुआ और गन्ना मीठा हो जाता है । ऐसा ही अन्य पुष्पों फलों के विषय में भी समझना चाहिए !
        जन्म मृत्यु समेत  संसार में घटित होने वाले सभी परिवर्तन यहाँ तक कि वर्षा तूफान भूकंप जैसी घटनाएँ भी समय के आधीन हैं कुल मिलाकर सब कुछ नियोजित तरीके से समय के साथ बँधा हुआ है यहाँ तक कि वर्षा तूफान भूकंप जैसी घटनाएँ भी कई बार एक दूसरे के साथ कनेक्टेड होती हैं जैसे 26 -अक्टूबर 2015 को हिन्दूकुश में भूकंप आने के कारण मद्रास में भारी वर्षा हुई !इसी प्रकार से 22-04-15 को नेपाल में उठे भीषण आँधी तूफान के कारण 25-4-2015 को आया भीषण भूकंप !जहाँ से तूफान उठा था वही भूकंप का केंद्र था ! न केवल इतना ऐसी घटनाओं का असर सामाजिक जीवन पर भी पड़ता है !जैसे -26 -अक्टूबर 2015 को हिन्दूकुश में भूकंप आने के कारण भारत पाकिस्तान के बीच आपसी सम्बन्ध सामान्य बनाने की भूमिका बनी !इसी दिन पाकिस्तान से गीता  भारत आई ! 25/12/2015 को मोदी जी पाकिस्तान गए इसी रात्रि को भूकंप आया ! 2 \1\ 2016 को पाकिस्तानी आतंकवादियों ने  पठान कोट में हमला किया इसीदिन भूकंप आया !
ये सारे भूकंपों का संकेत भारत और पाकिस्तान को मिलाना था !ऐसे कई भूकम्पों का भावीफल आर्टिकल रूप में हमारे ब्लॉग पर बिना किसी संशोधनों के प्रकाशित है बाद में वैसी घटनाएँ घटित भी हुईं इस पर हमारे द्वारा  काफी कुछ बड़े पैमाने पर रिसर्च वर्क चलाया जा रहा है ।
        इसी प्रकार से दिल्ली और पंजाब के आसमान में भारी धूल छाई इसलिए पठान कोट में हमला हुआ ये देश के प्रमुख शासकों पर आई आपदा पठान कोट के बहाने निकल गई !वो आम धूल नहीं थीं मैंने अक्टूबर में  ही ब्लॉग पर इसके फल को लिखा था जो बिना किसी एडिटिंग के वहाँ आज भी उपलब्ध है !
     हमारे कहने का उद्देश्य है कि समाज में घटित हर छोटी बड़ी घटना समयचक्र से बँधी हुई है छोटी छोटी घटनाओं  को रिसर्च का विषय बनाना संभव नहीं है किंतु बड़ी घटनाएँ तो देश और समाज में घटित होने वाले बड़े संकेत देती हैं उनसे समाज का लाभ हो सकता है !
      दुनियाँ में कुछ भी अचानक नहीं होता है सबकुछ सुनिश्चित तरह से घटित हो रहा है यदि ऐसा न होता तो हजारों वर्ष बाद आकाश में घटित होने वाले ग्रहणों के विषय में हजारों वर्ष पहले पता कैसे कर लिया जाता है और वैसा घटित होता है इसीलिए तो कि सब कुछ निश्चित है अन्यथा बदल भी तो सकता था । इसीप्रकार से आकाश में जो और जैसे बादल आज दिखाई पड़ते हैं वो और वैसे या वही बादल 6 महीने बाद एक निश्चित दिन दिखाई पड़ते हैं न केवल इतना वो सुबह दिखेंगे या शाम को और वर्षा होगी या नहीं आदि सब कुछ सुनिश्चित होता है । ये मेरी चल रही रिसर्च का मुख्य विषय होने के कारण इन बातों का भेद यहाँ खोलना उचित नहीं होगा !
    ये सब कुछ निश्चित है इसीलिए तो प्रकृति में सब कुछ उसी के अनुशार व्यवस्थित होता चला जा रहा है । कुछ लोग सोचते हैं कि सूर्य निकलता है तब कमल खिलता है किंतु यदि ऐसा होता तो जिस दिन बादल होते कोहरा होता उस दिन कमल नहीं खिलता !सूर्यमुखी जैसे पुष्प तो समय से इतना बँधे होते हैं कि भयंकर घटाएँ घिरी होने के बाद भी वो उसी ओर घूमते जाते हैं जिधर सूर्य होता है कुल मिलाकर वो सूर्य नहीं अपितु समय से बँधे होते हैं उन्हें पता होता है कि इस समय सूर्य उगेगा या इस समय आकाश की किस दिशा में होगा इसे ऐसे भी ससमाजा जा सकता है कि कमल को खिलते  देखकर सूर्य उग जाता है इसी प्रकार से और भी सारी  घटनाएँ समय से जुडी हुई हैं !अन्यथा सबेरा हुआ जानकार मुर्गा बोलने लगता है क्यों ?तब तो अँधेरा होता है सूर्य या उसका प्रकाश तब तो नहीं दिखाई पड़ रहा होता है ।
       ऐसे ही और भी तमाम प्रकार के पशु पक्षी ,पेड़ पौधे आदि बनस्पतियाँ समयचक्र के अनुशार अपने में परिवर्तन करती रहती हैं उन परिवर्तनों के अनुशार भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं का पता लगता रहता है भूकंप तूफान अतिवर्षा आदि जितने भी बड़े प्रकृति विप्लव होते हैं वो कोई अचानक नहीं होते वर्षों महीनों से भूमिका बनती रहती है उनकी धीरे धीरे प्रकृति में परिवर्तन होने लगता है आकाश पाताल पेड़ पौधे  बनस्पतियाँ पशु पक्षी आदि सारे अपने अपने आकार प्रकार स्वभाव गुण धर्म आदि में परिवर्तन के संकेत मिलने लगते हैं !जिन्हें समय से देख समझ कर भविष्य में घटित होने वाली शुभ अशुभ घटनाओं का अनुमान लगाया जा सकता है !प्राचीन काल में इन्हीं लक्षणों को देख कर भविष्य में घटित होने वाली बड़ी बड़ी घटनाओं का अनुमान लगा लिया जाता था उस दृष्टि से  इन्हें शकुन अपशकुन कहते हैं किंतु इधर बीच जैसे जैसे पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव बढ़ता चला जा रहा है वैसे वैसे लोग इन शकुनों का उपहास उड़ाने लगे !अक्सर लोग कहते सुने जाते हैं कि बिल्ली के रास्ता काट जाने से काम बिगड़ जाता है बिल्ली इतनी ताकत वर है क्या ?किंतु ध्यान ये रखना चाहिए कि बिल्ली के रास्ताकाट्ने से काम नहीं बिगड़ता है अपितु काम बिगड़ना होता है तो बिल्ली रास्ता काट जाती है !वो तो केवल सूचना देती है मात्र ! ऐसी सूचनाएँ पशु - पक्षी,पेड़ -पौधे आदि समस्त प्रकृति निरंतर दे रही  होती है ऐसे संकेतों को समझने के लिए आवश्यक है कि उन पर रिसर्च किया जाए !इस बात के लिए मैं संपूर्ण रूप से आश्वस्त हूँ परिणाम काफी अच्छे आएँगे !
     
चिकित्सा में समय का महत्व -
        'कालअर्थात समय !समय ही सर्व समर्थ भगवान है                                                                             
समय को किसी ने बनाया नहीं है इसका जन्म कब हुआ किसी को पता नहीं है और ये कब तक है किसी को पता नहीं !समय एक अतिविशाल नदी के समान है इसमें सारा संसार डूबता उतराता बहता चला जा रहा है जिस पर उसका कोई बश नहीं है जैसे नदी दिखाई कितनी भी बड़ी पड़े किंतु वस्तुतः तो वो बूँदों का समूह है इस लिए नदी का आस्तित्व बूँद पर टिका हुआ होता है उसी प्रकार से समय सेकेंडों से लेकर मिनटों घंटों दिनों महीनों वर्षों ऋतुओं युगों आदि तक बीतता चला जाता है!सूर्यसिद्धांत में कहा गया कि किसी अक्षर को बोलने में जो समय लगता है उसे 'प्राण' कहते हैं कहने का मतलब जैसे नदी या समुद्र  आदि की विशाल जलराशि पानी की छोटी  छोटी   बूँदों का समूह है उसी प्रकार से समय सेकेंडों से लेकर मिनटों घंटों दिनों महीनों ऋतुओं वर्षों युगों आदि तक सब कुछ समय की सबसे छोटी इकाई अर्थात  त्रुटि जो सेकेंड से भी छोटी होती है उसी त्रुटि का समूह ही तो है ।
         कई बार बर्षा आदि ऋतुओं में तेज बहाव के समय नदियों में एक जगह पानी बहुत तेज घूमते घूमते गड्ढा सा पड़ने लगता है उससे भँवर कहते हैं उस भँवर में जा रहा पानी बहुत गहराई तक चला जाता है और वो अंदर ही अंदर बहुत दूर जाकर निकलता है इसका पता ऐसे तो नहीं लग पाता है किंतु परीक्षण करने के लिए यदि भँवर पड़ते समय उसमें कोई फूल आदि डाल दिया जाए तो वो भी उसी पानी के साथ अंदर चला जाता है और जहाँ कहीं जाकर निकलता है तब पता लगता है कि वो पानी यहाँ आकर निकला है ।
      ठीक इसीप्रकार से समय की छोटी से छोटी शिरा 'त्रुटि' को उस भँवर की तरह ही यदि मान लिया जाए तो वहाँ से लेकर मिनटों घंटों दिनों महीनों ऋतुओं वर्षों तक  हर प्रकार की समय की शिराएँ होती हैं प्रकृति में घटित होने वाली अच्छी बुरी घटनाओं से जो मिनट  घंटा  दिन महीना  ऋतु वर्ष आदि जैसा प्रभावित होता है उसी भँवर के पानी की तरह ही वो समय की सरिता में जिस दिन प्रकट होगा उस दिन भँवर के पानी में पड़े फूल की तरह वो अच्छा बुरा फल भी प्रकट होगा !
         ठीक इसी प्रकार से प्रकृति की तरह ही हम सभी के जीवन काल में हमसे जो भी जितने मिनट  घंटा  दिन महीना  ऋतु वर्ष आदि अच्छे बुरे कर्म होते हैं वो जीवन रूपी नदी में उसी भँवर के पानी की तरह जब भी प्रकट होते हैं तो उनका अच्छा बुरा फल हमें भोगना पड़ता है जैसे पानी की भँवरें कई बार कई कई किलोमीटर दूर जाकर प्रकट होती हैं ठीक उसी प्रकार से जीवन में किए गए अच्छे बुरे कर्म भी जन्म जन्मान्तर तक चला करते हैं कई बार पिछले जन्मों के कर्मों का फल अगले जन्म में जाकर प्रकट होता है यदि अच्छे कर्मों का फल है तो प्रकट होते समय अनायास ही सब कुछ बहुत अच्छा होने लगता है और यदि बुरा कर्म है तो सब कुछ बुरा होने लगता है और बुरे का फल बीमारी ,ब्यापार में घाटा,स्वजनों के द्वारा दुःख तकलीफ,अपमान आदि ऐसा कुछ भी हो सकता है जिससे कष्ट मिले इसी प्रकार से अच्छे कर्मों का फल सुख शांति आदि के रूप में मिलता है  ।
 













































































































































































































































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