कुंडलीविज्ञान पर आधुनिक वैज्ञानिकों बुद्धिजीवियों पत्रकारों को बहस करने या कराने की खुली चुनौती !

     जन्म और मृत्यु तो केवल समय के आधीन है बाकी किसी के मरने और बचने के लिए जितने भी कारण गिनाए जाते हैं वो सब  बहाने मात्र हैं उनमें कोई दम नहीं होती !
    संध्या का समय आने पर जैसे सूर्य स्वतः डूब जाता है वैसे ही समय आने पर कोई  डॉक्टर और कोई दवा एक सेकेंड भी जीवन को रोककर नहीं रख सकती !वहीँ दूसरी ओर  जब तक एक स्वाँस भी बाकी रहता है तब तक मौत किसी के पास फटकने तक नहीं पाती !
        बंधुओ ! भूकंप ,बाढ़ ,एक्सीडेंट आदि ऐसी जगहों पर जहाँ सामूहिक रूप से भारी संख्या में लोग मरते या मारे  जाते देखे जातें हैं किंतु उन्हीं में से कोई एक दो चार आदि ऐसे बच जाते हैं जिन्हें खरोंच तक नहीं आती है कई बार तो ऐसे लोग कई कई महीने बाद भी जीवित मिलते देखे जाते हैं जिनके बचने के बिषय में कारण बताने में आधुनिक तर्क शास्त्री या आधुनिक विज्ञान आदि बगलें झाँकता दिखता है डॉक्टर वैज्ञानिक आदि उनके जीवित  बचने के जो कारण गिना रहे होते हैं उस समय उनके चेहरे देखकर दया आ रही होती है क्योंकि उनके तर्कों में कोई दम नहीं होता है । 
एक कार में चार लोग बैठे हैं कार बुरी तरह दुर्घटना का शिकार होती है तीन लोग मर जाते हैं एक को खरोंच तक नहीं आती  है। आखिर क्या है ये ?
बराबर जमींन  पर  गिरने वाले लोग कई बार मर  जाते हैं और कई बार कई कई मंजिल ऊपर से गिरे लोग भी सकुशल जीवित बचते देखे जाते हैं ।आखिर क्या है ये ?
डॉक्टर  आपरेशन करते हैं किंतु उसके सकुशल बचने की गारंटी नहीं देते क्योंकि वो तो समय के आधीन है और समय का अध्ययन करने के लिए कुंडली विज्ञान के अलावा चिकित्सकों और आधुनिक वैज्ञानिकों के पास है क्या ? आधुनिक विज्ञान का नाम ले लेकर कुंडली विज्ञान की निंदा करने के लिए कोई व्यक्ति निर्रथक गाल चाहें जितने बजा ले किंतु मैं चुनौती देता हूँ कि आस्था का सहारा लिए बिना विशुद्ध  वैज्ञानिक तर्कों के आधार पर कोई कुंडली विज्ञान को पराजित नहीं कर सकता !
     किसी के मरने से बचने में जो लोग जिन डाक्टरों और जिन दवाओं की प्रशंसा  होते हैं कई बार उन्हीं डाक्टरों के द्वारा उन्हीं दवाओं का प्रयोग करने  के बाद भी वैसे ही रोगियों को मरते देखा जाता है । यदि डॉक्टरों और दवाओं के बल पर ही  मृत्यु टाली जा सकती होती तो उन्हें मरने से बचा लिया जाना चाहिए था !इसी प्रकार से अच्छे से अच्छे डॉक्टरों और दवाओं की पोल तो तब खुलती है जब बड़े बड़े सेठ साहूकार राजामहाराजा मंत्री मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री आदि सभी सुख सुविधाओं साधनों से युक्त सभी प्रकार से सक्षम होने पर भी सारे प्रयत्न करने के बाद भी मरते देखे जाते हैं जबकि उनकी तीमारदारी में अच्छे से अच्छे डॉक्टर लगे होते हैं जो अच्छी  से अच्छी दवाओं से चिकित्सा कर रहे होते हैं फिर भी मृत्यु होते देखी जाती है । 
     यदि ऐसे लोग रोग मुक्त होकर स्वस्थ हो जाते हैं तो सारा श्रेय डॉक्टर लेते हुए डॉक्टर छाती ठोंक रहे होते हैं अपनी दवाओं को श्रेय दे रहे होते हैं इसी गलतफहमी में सरकार भी ऐसे कई लोगों को पुरस्कृत भी कर रही होती है ये बात तो परिणाम अनुकूल आने की रही किंतु यदि परिणाम प्रतिकूल आ जाए अर्थात  मौत हो जाए तब ऐसे लोगों के इलाज में लगे डॉक्टर उस मौत की जिम्मेदारी अपने ऊपर क्यों नहीं लेते !तब कुदरत पर क्यों डाल देते हैं ! ये कुदरत है क्या इसे जानने समझने के लिए क्या है आधुनिक विज्ञान के पास !इसी कुदरत   के रहस्य  खोलती है कुंडली ! 
     समय विज्ञान के महत्त्व को इस प्रकार से समझा जा सकता है कि जिस रोगी का समय ही प्रतिकूल अर्थात बुरा हो उसे बड़े से बड़े बैद्य डॉक्टर महँगी से महँगी दवाएँ देकर भी बचा नहीं सकते !इसलिए समय प्रभावी होता है दवाएँ नहीं !अच्छे अच्छे चिकित्सकों को कहते सुना जाता है कि समय ही ऐसा आ गया था !इसी प्रकार से जिसका समय अनुकूल अर्थात अच्छा हो उन्हें समय स्वयं ठीक कर लेता है समय सबसे बड़ी औषधि है । इसीकारण तो जंगलों में रहने वाले लोग या पशु पक्षी आदि भी तो बीमार होते ही होंगे जंगली पशु आपस में लड़ झगड़ कर एक दूसरे को घायल भी कर देते होंगे किंतु बिना किसी चिकित्सा के ही वे धीरे धीरे समय के साथ स्वतः स्वस्थ होते देखे जाते हैं और जिनका समय साथ न दे वे राजमहलों में भी बचाए नहीं जा पाते !इसलिए समय के महत्त्व को स्वीकार करते हुए समय विज्ञान संबंधी हमारे रिसर्च कार्यों को सरकार के द्वारा प्रोत्साहित किया जाना चाहिए !
    बंधुओ ! समय विज्ञान के आधार पर किसी व्यक्ति के बारे में भविष्य में होने वाली संभावित बीमारियों के विषय में अनुमान लगाया जा सकता है कि कब होंगी कितने समय के लिए होंगी और उनका स्तर क्या होगा और उनसे भय कितना होगा !इसी प्रकार से किसी को कोई बीमारी हो चुकी हो या कोई चोट चभेट लग गई हो तो उसके संभावित परिणामों के विषय में अनुमान लगाया जा सकता है कई बार शुरू में सामान्य सी दिखने वाली बीमारियाँ बड़ा भयानक स्वरूप ले लेती हैं लोगों को यह पता नहीं होता है कि ये बीमारी जिस समय में हुई थी वो समयविंदु ही विषैला था इसलिए इसमें तो बीमारियों को तिल का ताड़ बनने में देर नहीं लगती है इसलिए ऐसे समयविंदुओं का अध्ययन करके पहले से ही सतर्कता बरतते हुए सभावित दुर्घटनाओं को एक सीमा तक नियंत्रित किया जा सकता है ।

                                                                                                    :प्रार्थी  भवदीय :
   आचार्य डॉ. शेष नारायण वाजपेयी
संस्थापक :राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान
         एम. ए.(व्याकरणाचार्य) ,एम. ए.(ज्योतिषाचार्य)-संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी,एम. ए.हिंदी -कानपुर विश्वविद्यालय \ PGD पत्रकारिता -उदय प्रताप कालेज वाराणसी, पीएच.डी हिंदी (ज्योतिष)-बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (BHU )वाराणसीsee more … http://jyotishvigyananusandhan.blogspot.in/p/blog-page_7811.html
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