रिसर्च के विषय में

         विषय -  ज्योतिष के द्वारा रोगों पर की जाने वाली रिसर्च के विषय में अनुदान हेतु 
 महोदय ,
        मैंने संपूर्णानंद संस्कृत विश्व विद्यालय वाराणसी से ज्योतिषाचार्य (एम.ए.)किया है और काशी हिंदू विश्व विद्यालय से Ph. D. की है ।ज्योतिष एवं आयुर्वेद के महत्त्वपूर्ण ग्रंथों के अध्ययन से पता लगा कि रोगों के निदान तथा रोगों के पूर्वानुमान  के साथ साथ प्रिवेंटिव चिकित्सा एवं मनोरोगों में स्वभावों को समझने में ज्योतिष की बड़ी भूमिका सिद्ध हो सकती है ।कई बार किसी को कोई छोटी बीमारी चोट या फुंसी प्रारंभ होती है और बाद में वो भयंकर रूप ले लेती है।  प्रारंभ में छोटी बीमारी दिखने के कारण चिकित्सा में लापरवाही कर दी जाती है और बाद में नियंत्रण से बाहर हो जाती है ऐसी परिस्थिति में किसी भी छोटी बड़ी बीमारी का पूर्वानुमान ज्योतिष के द्वारा प्रारम्भ में ही लगा लिया जा सकता है और उसी समय चिकित्सा में सतर्कता बरत लेने से बीमारी पर नियंत्रण किया जा सकता है । 
      आयुर्वेद के बड़े ग्रंथों में  भी समय का महत्त्व समझने के लिए ज्योतिष का उपयोग किया गया है । महोदय !मैंने बनारस  यूनिवर्सिटी से ज्योतिष से Ph D की है मैं ज्योतिष के द्वारा रोगों का निदान एवं उपचार लगभग पिछले 15 वर्षों से करता आ रहा हूँ । जिसमें अन्य
     आयुर्वेद का उद्देश्य शरीर को निरोग बनाना एवं आयु की रक्षा करना है जीवनके लिए हितकर  द्रव्य,गुण और कर्मों के उचित  मात्रा  में सेवन से आरोग्य मिलता है एवं अनुचित सेवन से मिलती हैं बीमारियाँ ! यही हितकर और अहितकर द्रव्य गुण और  कर्मों के सेवन और त्याग का विधान आयुर्वेद में किया गया है । ' चिकित्सा शास्त्र में समय  का विशेष महत्त्व  है ।
    आरोग्य लाभ के लिए हितकर द्रव्य गुण और  कर्मों का सेवन करने का विधान करता है आयुर्वेद ये सत्य है किंतु हितकर द्रव्य गुण और  कर्मों का सेवन करके भी स्वास्थ्य लाभ तभी होता है जब  रोगी का अपना समय भी रोगी के अनुकूल हो !अन्यथा अच्छी से अच्छी औषधि लेने पर भी अपेक्षित लाभ नहीं होता है । कई बार एक चिकित्सक एक जैसी बीमारी के लिए एक जैसे कई रोगियों का उपचार एक साथ करता है किंतु उसमें कुछ को लाभ होता कुछ को नहीं भी होता हो उसी दवा के कुछ को साइड इफेक्ट होते भी देखे जाते हैं !ये परिणाम में अंतर होने का कारण  उन रोगियों का अपना अपना समय है अर्थात चिकित्सक एक चिकित्सा एक जैसी किंतु रोगियों के अपने अपने समय के अनुसार ही औषधियों का परिणाम होता है कई बार एक जैसी औषधि होते हुए भी किन्हीं एक जैसे दो रोगियों पर परस्पर विरोधी परिणाम देखने को मिलते हैं !
      जिस व्यक्ति का जो समय अच्छा होता है उसमें उसे बड़े रोग नहीं होते हैं आयुर्वेद की भाषा में उसे साध्य रोगी माना जाता है ऐसे रोगियों को तो ठीक होना ही होता है उसकी चिकित्सा  हो या न हो चिकित्सा करने पर जो घाव 10 दिन में भर जाएगा !चिकित्सा न होने से महीने भर में भरेगा बस !यही कारण  है कि जिन लोगों को गरीबी या संसाधनों के अभाव में चिकित्सा सुविधा नहीं मिल पाती है जैसे जंगल में रहने वाले बहुत से आदिवासी लोग या पशु पक्षी आदि भी बीमार होते हैं या लड़ते झगड़ते हैं चोट लग जाती है बड़े बड़े घाव हो जाते हैं फिर भी जिन जिन का समय अच्छा होता है वो सब बिना चिकित्सा के भी समय के साथ साथ धीरे धीरे स्वस्थ हो जाते हैं !
     जिसका जब समय मध्यम होता है ऐसे समय होने वाले रोग कुछ कठिन होते हैं ऐसे समय से पीड़ित रोगियों को कठिन रोग होते हैं इन्हें आयुर्वेद की भाषा में कष्टसाध्य रोगी माना जाता है । इसी प्रकार से जिनका जो समय ख़राब होता हैं उन्हें ऐसे समय में जो रोग होते हैं वे किसी भी प्रकार की चिकित्सा से ठीक न होने के लिए ही होते हैं इन्हें आयुर्वेद की भाषा में 'असाध्य रोग' कहा जाता है !ये चिकित्सकों चिकित्सापद्धतियों एवं औषधियों के लिए चुनौती होते हैं । ऐसे रोगियों पर योग आयुर्वेद आदि किसी भी विधा का कोई असर नहीं होता है ऐसे समय में गरीब और साधन विहीन लोगों की तो छोड़िए बड़े बड़े राजा महराजा तथा सेठ साहूकार आदि धनी वर्ग के लोग जिनके पास चिकित्सा के लिए उपलब्ध बड़ी बड़ी व्यवस्थाएँ हो सकती हैं किंतु उनका भी वैभव काम नहीं आता है और उन्हें भी गम्भीर बीमारियों से बचाया नहीं जा पाता है !ऐसे समय कई बार प्रारम्भ में दिखाई पड़ने वाली छोटी छोटी बीमारियाँ   इलाज चलते रहने पर भी बड़े से बड़े रूप में बदलती चली जाती हैं छोटी छोटी सी फुंसियाँ कैंसर का रूप ले लेती हैं ये समय का ही प्रभाव है । 
          अतएव आपसे निवेदन है कि ज्योतिष के द्वारा स्वास्थ्य संबंधी विषयों पर रिसर्च करने हेतु हमारा सहयोग करें !

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