सरकारी स्कूल और बढ़ें न बढ़ें किंतु इनके प्रति जनता का भरोसा बढ़े इसके लिए सरकारें कुछ तो करें !

   सरकारी स्कूलों पर अब कैसे बढ़े जनता का विश्वास और बंद हो बच्चों का प्राइवेट स्कूलों की ओर पलायन !स्कूल बनेंगे वो तो ठीक है किन्तु जो दिल्ली के सरकारी प्राइमरी स्कूल हैं उनमें पढ़ाई कब से और कैसे  शुरू  होगी !
    क्या शिक्षक कक्षाओं में भी जाएँगे वहाँ रुकेंगे भी कुछ पढ़ाएँगे भी और स्कूल में बच्चों का समय खाली बर्बाद नहीं होने देंगे! शिक्षा व्यवस्था के लिए जिम्मेदार अधिकारी कर्मचारियों जन प्रतिनिधियों को अब सबसे पहले इस बात पर सोचना होगा कि सरकारी स्कूलों से निराश जनता का विश्वास पुनः कैसे बढ़ेगा सरकारी स्कूलों के प्रति और बंद होगा बच्चों का  प्राइवेट स्कूलों की ओर पलायन ! 
   यदि साढ़े सात बजे का स्कूल होता है तो शिक्षक 8 बजे तक स्कूल पहुँच पाते हैं साढ़े 8 तक प्रार्थना पूरी हो पाती है इसके बाद आफिस जाकर हाजिरी रजिस्टर लेते एक दूसरे का हाल चाल पूछते बताते 9 बजना तो स्वाभाविक ही है इसके बाद लंचोत्सव होता है जिसकी कोई  निश्चित अवधि नहीं होती है कि कब तक चलेगा फिर भी दस बजे तक तो चल ही जाता है इसके बाद कुछ लोग अपने अपने मोबाईल कान में लगाकर चले जाते हैं इधर उधर या अपनी अपनी कक्षाओं में बच्चों को बता देते हैं राइटिंग आदि लिखने को इसके बाद होती रहती हैं मोबाइली बातें कब तक चलेंगी पता नहीं !
  अवस्थ होने के कारण लँचोत्सव  के बाद  हर सप्ताह एक शिक्षक को  दवा लेने जाने के कारण छुट्टी लेनी पड़ती है , एक के दूर दराज के रिलेटिव अर्थात इतने बड़े सर्कल में किसी की डेथ हुई होती है तो वहाँ जाएँ या न जाएँ किंतु बहाने से मिलने वाली छुट्टी क्यों खोवें इसलिए डेथ शब्द ही इतना डरावना है कि छुट्टी तो बोलते ही मिल जाती है । इसी प्रकार से सप्ताह में एक शिक्षक को जरूरी काम होने के कारण जाना पड़ता है एक शिक्षक को अपने अधिकारियों के पास रजिस्टर लेकर हिसाब किताब समझाने जाना पड़ता है एक शिक्षक को छात्रों को दिए जाने वाले पैसों आदि का हिसाब किताब लगाने के लिए बैठना पड़ता है एक शिक्षक को स्कूली समस्याएँ लेकर विधायक निगम पार्षद आदि के पास लेटर लेकर जाना होता है !शेष एक दो शिक्षक सेवादारों की मदद से लंच के बाद छुट्टी तक घेरे  रखते हैं  बच्चे!?!  
        जिस दिन किसी अधिकारी निगम पार्षद या विधायक टाईप के व्यक्ति को स्कूल में राउंड मारने आना होता है उसकी सूचना शिक्षकों को लगभग पहले ही मिल जाती है इसीलिए सजे सँवरे हँस हँस कर बात करने में स्पर्ट सुन्दर वेल अपटूडेट युवा सदस्य तैयार किए जाते हैं उनके स्वागत के लिए ! सबको समझाया जा चुका होता है कि किसको किस विषय में कितना झूठ बोलना है ।  अच्छे अच्छे होटलों से चाय नाश्ते का सामान मँगाया जाता है इस प्रकार से होती है खूब खातिरदारी उधर अंदर अंदर स्कूल को दर्शनीय बनाया जा रहा होता है अच्छे अच्छे स्लोगन लिखे चिपकाए जा रहे होते हैं बच्चे पढ़ते लिखते दिखाए जा रहे होते  हैं तब तक कुछ पढ़ने लिखने वाले होशियार बच्चों को समझाया जा चुका होता है कि उनसे क्या पूछा जाएगा और उन्हें क्या बताना है इस प्रकार से सब कुछ निश्चित हो जाने पर उन महाशय को खिला पिला कर प्रधानाचार्य अपने साथ संतुष्टि पूर्वक लेकर निकलते हैं उन अधिकारी या जन प्रतिनिधि महोदय को जिनके पेट में पड़े स्कूल के समोसे उन्हें तारीफ करने के लिए बाध्य कर रहे होते हैं । इस प्रकार से स्कूल वालों की पीठ ठोंककर वे चले जाते हैं वहाँ से !
      कुल मिलाकर बीतती बच्चों पर है जो भोग रहे होते हैं लापरवाही का यह दंश ! पैसे वाले तो प्राइवेट में चले जाते हैं किंतु न चाहते हुए भी गरीबों को तो वहीँ बिताने होते हैं  अपने दिन ! आखिर क्या करें बेचारे ! 

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    सरकारी स्कूलों में शिक्षकों के साथ तो सारी सरकार किंतु अभिभावक अकेला होता है !उसे कोई कुछ भी बोल सकता है किंतु वो किसी को कुछ बोलने लायक ही नहीं होता है वो ऐसे डाँट दिया जाता है कि जैसे शिक्षक अपनी जेब से उसे सरकारी सुविधाएँ दे रहे हों !see more... http://samayvigyan.blogspot.in/2015/05/blog-post.html
                                                                                                                                                                                                              

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