केजरीवाल के विरुद्ध बवाल तो चलता ही रहेगा इस बालू के घरौंदे को समेट कर रखना सबसे बड़ी जिम्मेदारी !-ज्योतिष
पार्टी के शीर्ष शिखरों में तैयार हुई तपिश प्रयास पूर्वक रोकी जानी चाहिए अन्यथा आमआदमीपार्टीसरकार रूपी हिमालय न जाने कब पिघलने लगे और दे जाए कभी न पटने वाली चौड़ी दरारें !-ज्योतिष
आम आदमी पार्टी में 'अ' और 'स' अक्षर से जिन नेताओं के नाम प्रारंभ होते हैं ऐसे नेता बड़ी मधुरता पूर्वक पार्टी में पहले अपना प्रभुत्व बढ़ाएँगे इस प्रकार से औरों को किनारे करते जाएँगे और धीरे धीरे चुनौती देने वाले लोगों को किनारे करके जब केवल 'अ' और 'स'अक्षर वाले लोगों का ही पार्टी पर प्रभुत्व बच जाएगा तो प्रेम पूर्वक आपसे में पार्टी बाँट लेंगे और अपना अपना हिस्सा ले लेकर अपनी अपनी सुविधानुशार अन्यान्य पार्टियों में सप्रेम प्रस्थान कर जाएँगे !इसलिए यदि अभी से ही ऐसी परिस्थिति पैदा ही न देने दी जाए और सहनशीलता पूर्वक सबको मिलाकर चलने का सामूहिक प्रयास किया जाए तभी पार्टी ,प्रतिष्ठा एवं समाज को दिए गए विश्वास को बचाया जा सकता है ! जो देश एवं समाज के लिए बहुत आवश्यक है ।
बंधुओ !ज्योतिष में दो या दो से अधिक लोगों के नाम यदि एक अक्षर से ही प्रारंभ होते हैं तो उनके आपसी संबंध पहले तो अत्यंत मधुर होते हैं किंतु फिर कभी न मिटने वाली दरार डाल देते हैं और संबंध समाप्त हो जाते हैं !
जैसे -'अरविंदकेजरीवाल, अन्नाहजारे,अग्निवेष और असीम त्रिवेदी !तब मात्र ये चार 'अ' थे जो एक साथ नहीं ररह सके और एक आंदोलन बीच में ही दम तोड़ गया ।आज आम आदमी पार्टी में यही तेरह 'अ' हैं जिन्हें समेत कर चल पाना अरविन्द केजरीवाल के लिए बहुत कठिन ही नहीं अपितु असम्भव भी होगा ! यहाँ तक कि आम आदमी पार्टी और अरविन्द केजरीवाल के भी आपसी सम्बन्ध इसी अ के कारण तनावपूर्ण ही रहेंगे !
( नाम विज्ञान ज्योतिष का बहुत बड़ा विज्ञान है जो सात प्रकार से देखा जाता है जिसका चुनावों के समय नाम चयन में बहुत महत्त्व होता है किस पार्टी से जुड़ना है उसके अध्यक्ष के साथ ताल मेल कैसा रहेगा , जिसके सामने चुनाव लड़ना है उसके साथ ताल मेल एवं जिस देश ,प्रदेश या संसदीय सीट से चुनाव लड़ना होता है उसका प्रभाव , जिस पार्टी एवं प्रत्याशी को प्रमुख रूप से पराजित करना हो उसे देखने के कई प्रकारों एवं उनसे निपटने के उपायों में से केवल एक प्रकार की चर्चा यहाँ कर रहे हैं आप भी ध्यान दीजिए और देखिए कि ज्योतिष के नाम विज्ञान का कितना प्रभाव मानव जीवन पर होता है हमारे राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान में ऐसे ही विषयों को शोध की विषय वस्तु बनाते हैं ।)
जो अरविंदकेजरीवाल, अपने नाम की 'अ' के साथ तीन 'अ' नाम वालों को जोड़ कर नहीं रख सके और ध्वस्त हो गया भ्रष्टाचार विरोधी अन्ना आंदोलन !
'अरविंदकेजरीवाल, अन्नाहजारे,अग्निवेष और असीम त्रिवेदी !तब मात्र ये तीन 'अ' थे ।
अब आमआदमीपार्टी के 'अ' के लिए अरविंदकेजरीवाल स्वयं में एक समस्या और समाधान भी हैं किंतु आशुतोष ,अलकालांबा, आशीष खेतान,अंजलीदमानियाँ , आदर्शशास्त्री,असीम अहमद इसी प्रकार से अजेश,अवतार ,अजय,अखिलेश,अनिल,अमान उल्लाह खान आदि 'अ' से प्रारम्भ नाम वाले लोग न जाने कब किस बात को प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लें और कितने बड़े भाग को प्रभावित करके कितनी बड़ी समस्या तैयार कर दें कहना कठिन होगा !इससे पार्टी तो प्रभावित होगी ही सरकार भी प्रभावित होगी क्योंकि ये छोटी समस्या नहीं तैयार करेंगे !
आप स्वयं देखिए काँग्रेस में अरविंदर सिंह लवली और अजय माकन के आपसी टकराव से दिल्ली में पार्टी का क्या हश्र हुआ ! दूसरी ओर अजय माकन पार्टी के अंदर तो अरविंदर सिंह जी से और बाहर अरविंदर केजरीवाल से जूझ रहे थे तीसरी ओर अमितशाह जी ने अप्रत्यक्ष रूप से मोर्चा सँभाल रखा था !जो सामने मजबूती से डटे नहीं और पीछे हटे नहीं इसी ढुलमुल रवैए का पार्टी को नुक्सान हुआ यही रवैया अजयमाकन का भी रहा । इस प्रकार से अमितशाह और अजयमाकन की ढुलमुलता का लाभ मजबूती से खड़े अपनी पार्टी के सर्वे सर्वा अरविन्द केजरी वाल को मिलना ही था ढुलमुल वाले ढुलमुल रह गए और हीरो बन गए अरविन्द केजरीवाल !
अरविन्द केजरी वाल,अमितशाह और अजयमाकन समेत तीन 'अ'आमने सामने आ जाने से ये चुनाव कम और प्रतिष्ठा का प्रश्न अधिक बन गया था जिससे निपटने की मजबूत तैयारी अमितशाह और अजयमाकन की नहीं थी जितनी अरविन्द केजरीवाल ने की थी !
इसी 'अ' ने अमर सिंह को कहाँ से कहाँ तक भटका दिया उनकी जितने लोगों से मित्रता हुई है वो सब अ अक्षर वाले हैं - अमिताभबच्चन अनिलअंबानी अभिषेक बच्चन आदिऔर सब से सम्बंध बिगड़े !मुलायम सिंह जी अ वाले नहीं हैं तो उनसे निभती रही किन्तु आजम खान से नहीं पटी और अमर सिंह के प्रभाव से ही एक बार उन्हें बाहर कर दिया गया किन्तु सपा में जब अखिलेश का प्रभाव बढ़ा तो अमर सिंह बाहर कर दिए गए इसी प्रकार से दोबारा भी बाहर तो आजम खान भी कर दिए जाते किन्तु ठहरे सपा के एक मात्र मुश्लिम चेहरा इसलिए मुलायम सिंह जी ने मजबूरी में ही सही उन्हें बेमन भी पकड़ तो रखा है जब कि अखिलेश सरकार बनने से लेकर जब तक चलेगी तब तक वो सरकार के लिए समस्याएँ ही खड़ी करते रहेंगे !
जहाँ तक बात जयप्रदा जी की है ज्योतिषीय दोष के कारण ही उनकी जयाबच्चन जी से नहीं बननी थी चूँकि अमर सिंह जी जयप्रदा जी का पक्ष लेते रहे इसीलिए जयप्रदा जी के साथ साथ अमर सिंह जी से भी जयाबच्चन जी ने दूरी बना ली !इसी क्रम में उधर अमर सिंह जी एवं अमिताभ बच्चन जी एवं अभिषेक बच्चन जी का भी अ टकरा गया इस प्रकार से बढ़ गई पारिवारिक दूरी और सम्बन्ध बिगड़ते चले गए !
अब बात अमर सिंह एवं अजीत सिंह की जो नया नया गठ बंधन हुआ है उसमे अमर सिंह जी को और तो कुछ मिलना नहीं है केवल इतना सर्टिफिकेट अवश्य मिल जाएगा कि अमर सिंह हैं ही ऐसे कि उनसे किसी की पटरी ही नहीं खाती है ।
बंधुओ !किन्हीं दो या दो से अधिक लोगों का नाम यदि एक अक्षर से ही प्रारंभ होता है तो ऐसे सभी लोगों के आपसी संबंध शुरू में तो अत्यंत मधुर होते हैं बाद में बहुत अधिक खराब हो जाते हैं, क्योंकि इनकी पद-प्रसिद्धि-प्रतिष्ठा -पत्नी-प्रेमिका आदि के विषय में पसंद एक जैसी होती है। इसलिए कोई सामान्य मतभेद भी कब कहॉं कितना बड़ा या कभी न सुधरने वाला स्वरूप धारण कर ले या शत्रुता में बदल जाए कहा नहीं जा सकता है।
जैसेः-राम-रावण, कृष्ण-कंस आदि। इसी प्रकार और भी उदाहरण हैं।
इसीप्रकार जैसे -अन्नाहजारे-अग्निवेष-अरविंद-असीम त्रिवेदी
जब को एक साथ नहीं रखा जा सका तो नितीशकुमार-नरेंद्रमोदी-नितिनगडकरी को एक साथ कैसे रखा जा सकता था? मोदी जी का प्रभाव बढ़ते ही नितिनगडकरी को पहले ही इसी के तहत अध्यक्ष पद से हटना पड़ा था ।इसके अलावा जो कारण बनाए गए वो सब तो राजनीति में चला ही करता है।
इसीप्रकार फिर मोदी जी का प्रभाव बढ़ते ही नितीशकुमार जी को भी राजग से हटना पड़ सकता है। अभी भी समय है नितीशकुमार जी एवं नरेंद्रमोदी जी को आमने सामने पड़ने एवं पारस्परिक वाद विवाद से बचाया जाना चाहिए।श्री शरद यादव जी एवं श्री राजनाथ सिंह जी को आगे आकर आपसी बातचीत से राजग की रक्षा कर लेनी चाहिए!
इसी प्रकार जैसे भारत वर्ष में भाजपा राजग बनाकर ही सत्ता में आ पाने में सफल हो सकी।अबकी बार सदस्य संख्या भले ही अधिक है किंतु चुनाव 'राजग' के नेतृत्व में ही लड़ा गया है इसी प्रकार से अटलजी से बहुत कमजोर व्यक्तित्व वाले लोग भी यहाँ प्रधानमंत्री बनते रहे हैं।कई प्रदेशों में भाजपा की सरकारें भी अच्छी तरह से चल भी रही हैं किन्तु केंद्र में राजग बनाकर ही सत्ता मिल पाई !
जैसे - दिल्ली भाजपा के 5 विजयों के समूह का एक साथ एक क्षेत्र में एक समय पर काम करना चुनावी की दृष्टि से कभी सफलता प्रद नहीं रहा ! विजयेंद्रजी -विजयजोलीजी -विजय शर्मा जी
विजयकुमारमल्होत्राजी - विजयगोयलजी
इसी प्रकारऔर भी उदहारण हैं -
कलराजमिश्र-कल्याण सिंह
ओबामा-ओसामा
अरूण जेटली- अभिषेकमनुसिंघवी
मायावती-मनुवाद
नरसिंहराव-नारायणदत्ततिवारी
लालकृष्णअडवानी-लालूप्रसाद
परवेजमुशर्रफ-पाकिस्तान
भाजपा-भारतवर्ष
मनमोहन-ममता-मायावती
उमाभारती - उत्तर प्रदेश
अमरसिंह - आजमखान - अखिलेशयादव
अमर सिंह - अनिलअंबानी - अमिताभबच्चन
प्रमोदमहाजन-प्रवीणमहाजन-प्रकाशमहाजन आदि और भी हैं -
अन्नाहजारे-अग्निवेष-अरविंद-असीम त्रिवेदी -
अन्ना हजारे के आंदोलन के तीन प्रमुख ज्वाइंट थे अन्ना हजारे,
अरविंदकेजरीवाल,असीमत्रिवेदी एवं अग्निवेष जिन्हें एक दूसरे से तोड़कर ये आंदोलन ध्वस्त
किया जा सकता था। इसमें अग्निवेष कमजोर पड़े और हट गए। दूसरी ओर जनलोकपाल के
विषय में लोक सभा में जो बिल पास हो गया वही राज्य सभा में क्यों नहीं पास
हो सका इसका एक कारण नाम का प्रभाव भी हो सकता है। सरकार की ओर से
अभिषेकमनुसिंघवी थे तो विपक्ष के नेता अरूण जेटली जी थे। इस प्रकार ये सभी
नाम अ से ही प्रारंभ होने वाले थे। इसलिए अभिषेकमनुसिंघवी की किसी भी बात
पर अरूण जेटली का मत एक होना ही नहीं था।अतः राज्य सभा में बात बननी ही
नहीं थी। दूसरी ओर अभिषेकमनुसिंघवी और अरूण जेटली का कोई भी निर्णय अन्ना
हजारे एवं अरविंदकेजरीवाल को सुख पहुंचाने वाला नहीं हो सकता था। अन्ना
हजारे एवं अरविंदकेजरीवाल का महिमामंडन अग्निवेष कैसे सह सकते थे?अब अन्ना
हजारे एवं अरविंदकेजरीवाल कब तक मिलकर चल पाएँगे?कहना कठिन
है।असीमत्रिवेदी भी अन्नाहजारे के गॉंधीवादी बिचारधारा के विपरीत आक्रामक
रूख बनाकर ही आगे बढ़े। आखिर और लोग भी तो थे। अ अक्षर से प्रारंभ नाम वाले
लोग ही अन्नाहजारे से अलग क्यों दिखना चाहते थे ? ये अ अक्षर वाले लोग
ही अन्नाहजारे के इस आंदोलन की सबसे कमजोर कड़ी हैं।
रामदेव -
रामलीला मैदान में पहुँचने से पहले तो रामदेव को मंत्री गण मनाने पहुँचे फिर रामलीला मैदान में पहुँचने के बाद राहुल को ये पसंद नहीं आया तो रामदेव वहाँ से भगाए गए।
दूसरी बार फिर रामदेव रामलीला मैदान पहुँचे इसके बाद राजीवगाँधी स्टेडियम जा रहे थे फिर राहुल को पसंद न आता और लाठी डंडे चल सकते थे किन्तु अम्बेडकर स्टेडियम ने बचा लिया।
इसप्रकार से जब रा अक्षर वालों ने रा अक्षर वालों का साथ नहीं दिया तो राहुल और राजनाथ राम मंदिर का समर्थन कितना या कितने मन से करेंगे कैसे कहा जा सकता है? राम मंदिर प्रमुख रामचन्द्र दास परमहंसजी महाराज एवं उस समय के डी.एम. रामशरण श्रीवास्तव के और राम मंदिर इन तीनों का आपसी तालमेल सन 1990 में अच्छा नहीं रहा परिणामतः संघर्ष चाहें जितना रहा हो किन्तु मंदिर निर्माण की दिशा में कोई विशेष सफलता नहीं मिली।
राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध संस्थान की अपील
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